यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम - (2) Asha Saraswat द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम - (2)

जैसे ही मैं नहाकर आई तभी मेरे ही मोहल्ले की लड़की मुझे बुलाने के लिए मेरे घर पर आई और कहने लगी बड़ी ताईजी ने तुम्हें बुलाया है दीदी ।मैंने कहा ठीक है मेरे बाल गीले है ,सूख जायें तो चलेंगे और कपड़े घर के पहने हैं बदल लेती हूँ ।
भाईसाहब की जो पेंट छोटी होगई थी वह मैंने पहन रखी थी उसके ऊपर ढीला कुर्ता पहना था ।
उसने कहा नहीं दीदी देर हो जाएगी जल्दी चलना है वरना ताईजी डॉंटेंगी।ताईजी मोहल्ले में ही अगली गली में रहतीं थी और श्रृंगार का सामान अपनी दुकान पर बेचा करतीं थीं ।हमारी किसी की हिम्मत नहीं थी कि बड़ों का कहना न मानें ।
जब मैं दौड़ती हुई उनकी दुकान पर उसी हाल में पहुँची तो ताईजी ने एक छोटा सा कपड़ा मुझे दिखाया और बोली-क्यों लाली इसमें मेरा ब्लाउज़ बन जायेगा क्या? मैंने ताईजी की ओर देख कर कहा नहीं ताईजी यह कपड़ा छोटा है आप दूसरा ले आना इसमें आपका ब्लाउज़ नहीं बनेगा ।
जैसे ही मैं घर जाने के लिए चली तो वहाँ बैठीं महिला बोल पड़ी शायद बन जायेगा ,मैंने कपड़ा खोल कर उसकी नाप उनको बताई तो वहाँ बैठे सज्जन बोले -कोशिश करके देखो ।मैंने उनसे भी कहा ताईजी का नाप बड़ा है इसलिए नहीं बनेगा,छोटा ब्लाउज़ बन सकता है ।मैं अपनी बात कह कर नमस्कार करके अपने घर आ गई,घर के कामों में व्यस्त हो गई ।
कुछ दिनों बाद एक पत्र ताईजी के पास आया जोकि पिता जी को सम्बोधन करके लिखा गया था।ताईजी ने वह पत्र भाईसाहब को पिता जी को देने को कहा ।
वह पत्र जब पढ़ा तो पिताजी आश्चर्य चकित रह गये ।उसमें लिखा था आपकी बिटिया हमें अपने भाई के लिए पसंद है।घड़ी लड़के पर है,साइकिल की आवश्यकता नहीं,रेडियो भी है ,आप शादी की तारीख़ निकलवा लीजिए ।आपको जो देना है अपनी बिटिया को दें ।पत्र द्वारा सूचना अवश्य दे दीजिएगा ।
यह सब पढ़कर पिता जी आश्चर्य में थे कि बिटिया तो दिखाई ही नहीं फिर पसंद कैसे,ताईजी के पास गये तो उन्होंने बताया कि बिटिया हमने दिखादी थी ।आपसे ज़्यादा हमारा अधिकार है,आप तैयारी करियेगा सब ठीक होगा ।जिस दिन ब्लाउज़ के लिए ताईजी ने बुलाया, बिना बताए ही सब तय कर लिया ।
जिन की बेटी की शादी होनी थी उन्हें भी नहीं बताया ।पत्र आने के बाद बताया पढ़ें-लिखे लोग है,लड़के की सरकारी नौकरी है उसके भाई-भाभी ने देखा और पसंद कर लिया है बाक़ी लोग भी देख लेंगे ।
अगले महीने भाईसाहब की शादी थी हम सब तैयारी में जुट गए ।भैया की शादी होने के बाद हम सब तैयार होकर कंगना खुलने की तैयारी कर रहे थे और मौज मस्ती भी तभी दीदी ने कहा जाओ मोहल्ले में कहकर आओ कंगना खुलेगा और पूजा होगी ।सब जगह कहने के बाद जब ताईजी की गली में कहते हुए उनके घर पहुँचे तो एक बुजुर्ग महिला कुछ सवाल भैया की शादी के संबंध में करने लगी हमने सब बता दिया ।
कुछ दिनों बाद पता चला वह हमारी सालूँ मॉं थी ।
धन्य हो ताईजी................🙏🙏🙏🙏🙏🙏
आशा सारस्वत