यादों के झरोखों से—निश्छल प्रेम (7) Asha Saraswat द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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यादों के झरोखों से—निश्छल प्रेम (7)





संसार में कुछ लोगों का सानिध्य ठंडी फुआर की तरह जीवन में ठंडक दे जाता है ।महाराज जी ऐसे ही व्यक्ति थे।वह कोई पीले ,नारंगी या केसरिया कपड़े नहीं पहनते थे।साधारण सफ़ेद धोती और कुर्ता पहनते लेकिन उनका व्यवहार और आचरण ऐसा था कि उन्हें सब आदर से महाराज जी ही कहते थे।


महाराज जी का भरा-पूरा परिवार था।बड़ी तीन बेटियों की उन्होंने शादी कर दी थी ।बड़े बेटे की शादी हो चुकी थी ,वह बाहर रहते अपने परिवार के साथ ।


बेटियों की शादियाँ उन्होंने बड़े ही धूमधाम से की।उसके बाद सब कुछ अच्छा ही चल रहा था ।एक दिन अचानक उनकी पत्नी की तवियत ख़राब हुई तो वह उन्हें अस्पताल ले गये वहॉं उन्हें दिल्ली ले जाने की सलाह दी गई ।महाराज जी घबरा गए क्योंकि उनके बाक़ी बच्चों को घर पर अकेले कैसे रखा जाए ।


तभी उन्हें अपनी विवाहित बिटिया का ख़्याल आया ।ससुराल से बिटिया को लाकर उन्होंने बच्चे उनके पास रखें और इलाज के लिए दिल्ली चले गए ।


वहॉं जाकर सारे चेकअप हुए तो डॉक्टर ने बताया कि उनकी पत्नी के उल्टा फोड़ा कमर पर है जिसका आपरेशन जल्दी ही करना होगा ।बात बहुत वर्षों पुरानी है,आधुनिक सुविधाएँ नहीं थी ।कैंसर जैसी बीमारी भी कोई नहीं जानता था,शायद वही हो ।


इलाज कराने में लगभग छह महीने वहॉं रहना पड़ा ।महाराज जी आते पैसे का इंतज़ाम करते और बच्चों का राशन रखते फिर चले जाते ।


तीनों विवाहित बिटिया नंबर से छोटे भाइयों की देखभाल कर रही थी ।


महाराज जी आते और पैसे का इंतज़ाम करते चले जाते ।इलाज में पैसा इंतज़ाम करते-करते उन पर क़र्ज़ बहुत हो गया ।उनका दूध का कारोबार था वह भी ठप होने से बंद करना पड़ा ।नौकरों से उनका कार्य नहीं संभला।


उनकी स्थिति ख़राब होने पर उन्होंने घर और दुकान भी बेच दी ।पत्नी के स्वास्थ्य में सुधार होने पर उन्हें घर ले आये ,बच्चों को देख कर और सेवा से वह स्वस्थ हो गई ।


महाराज जी किराए के मकान में रहने लगे ।समाज में उनका व्यवहार बहुत अच्छा था ।लोग मदद को तैयार रहते थे लेकिन वह कोशिश करते किसी की मदद न ली जाए ।


उन्होंने नौकरी करने का फ़ैसला किया और नौकरी करने लगे ।उस समय सौ रुपये की प्राईवेट नौकरी करने लगे ।


एक दिन अपने काम से घर लौट कर जा रहे थे,रास्ते में खचेडूराम मोची की फड़ पर पहुँचें ही थे ,उन्होंने महाराज जी से कहा—पॉय लागू महाराज जी,ख़ुश रहो कहकर वह जा रहे थे। तभी फिर आवाज़ लगा कर कहा—महाराज जी मेरे यह पच्चीस पैसे बाबू लाल को दे देना,मुझे घर जल्दी जाना है रात होने वाली है; यह कहकर पैसे उनको दे दिए ।


महाराज जी अपने घर गये तो घर पर मेहमान बैठे थे ।जब सब गये तो रात हो चुकी थी उन्होंने सोचा—सुबह दे आऊँगा।


सुबह ही दरवाज़े पर किसी ने आवाज़ दी तो वह बाहर निकलें देखा खचेडूमल खड़े थे , वह बोले—हमारे पैसे बाबू लाल को दे दिए महाराज जी ।


महाराज जी बोले—मेरे पास जेब में है अभी दे देता हूँ ।
खचेडूमल ने बताया-मैंने सट्टा लगाने को दिये थे ।मेरे नंबर पर निकला है मैं नंबर बता चुका था पैसे देने बाक़ी थे जो आप के द्वारा भेजे थे।पच्चीस पैसे के पच्चीस रुपये हो गये।
गलती आपकी है आपको देने होंगे ।महाराज जी सट्टा प्रणाली से अनभिज्ञ थे ।उन्होंने अपनी गलती मानते हुए सौ रुपये की नौकरी से पच्चीस रुपये ,वेतन मिलते ही देने का वायदा किया ।वेतन मिलने पर क़र्ज़ चुकाया।


अनजाने में की गई गलती की सज़ा सरलता से स्वीकार कर ली।महाराज जी का सभ्य,सरल स्वभाव हमारे ह्रदय पटल पर अंकित है ।🙏🙏🙏🙏🙏
आशा सारस्वत