यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (3) Asha Saraswat द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (3)

यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (1)और(2)आपके लिए प्रस्तुत है ।
जीवन में बहुत से लोगों से हम सब का मिलना होता है ।
उनमें कुछ लोग नकारात्मक सोच के होते है,कुछ सकारात्मक सोच के साथ हमारे जीवन में ख़ुशियाँ बिखेरने के लिए तत्पर रहते है।(यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम में)नायिका की मुलाक़ात जिन लोगों से होती है ,वह
आपके लिए प्रस्तुत है ।
आपको अच्छा लगे तो अवश्य बतायें 🙏🙏


बात उन दिनों की है जब हम बहुत छोटे ,प्राइमरी स्कूल के विद्यार्थी थे ।
प्रतिदिन अपनी तख्ती को सुंदर बनाने की कोशिश किया करते थे,जिस सहपाठी की तख्ती सुंदर नहीं हुआ करती उसको कक्षा में अध्यापकों द्वारा मुर्ग़ा बनाया जाता था।
एक दिन हमारी ही कक्षा में पढ़ने वाले सहपाठी की तख्ती लिखने योग्य न होने पर मुर्ग़ा बनाया गया,उसे देखकर हमें हँसी आ गई,क्योंकि वह हमारी ममेरी भाभी जी का बेटा था।
जब उसने हमें हँसते देखा तो उसने घर जाकर( हमारी भाभी )अपनी मम्मी से शिकायत की ।
उसे लगा कि हमारी शिकायत हो गई है प्रताडना तो मिलेगी लेकिन उन्होंने हमसे कुछ नहीं कहा।
अगले दिन विद्यालय जाते समय उसने बस्ता घुमाया और हमारे बहुत तेज़ी से घुमाकर मारा ,हम ग़ुस्से से तमतमा गये।
नई-नई युक्तियों से विचार करने लगे कैसे विद्यालय में उसकी पिटाई कराई जाये।एक विचार मन को भा गया और हम मध्यावकाश का बेसब्री से इन्तज़ार करने लगे ।
मध्यावकाश में सभी विद्यार्थी अपने जूते चप्पल उतार कर ही भोजन मंत्र के उपरांत भोजन करते थे ।भोजन समाप्त होते ही उसकी चप्पल पहन कर हम कक्षा में आकर बैठ गये,सब जगह ढूँढने के बाद वह कक्षा में आया तो कक्षा में हमारी अध्यापिका पढ़ाने आ चुकी थी ।
देर में आने की वजह से मुर्ग़ा बनने को कहा तो हम बहुत ख़ुश हुए,हमें देखकर उसने हमारे पैरों को देखा ,हमारे पैरों में वही नई चप्पल थीं जो वह आज ही नई पहिन कर आया था।
जब हमारे पैरों में देखी तो अध्यापिका जी को बताया,उन्होंने हमें अपने पास बुलाया बड़े ही प्यार से पूछताछ की चप्पल किसकी है कोई सहपाठी नहीं बता पाया क्योंकि वह नई थीं ।
हम तो सच्चाई बताने के पक्ष में नहीं थे हमने तो उसे भरपूर सजा दिलवाने का मन ही बना लिया था।सच्चाई को छिपाते हुए हमने भी बता दिया कि यह चप्पल हमारी है ,हमारे भाईसाहब लायें थे ।कुछ सच्चाई थी ,भाईसाहब लाये थे क्योंकि उसके पिता हमारे भाईसाहब ही थे।
हमारी अध्यापिका हमें प्यार करतीं थी उन्होंने हमें बैठने को कहा हम जल्दी से बैठ गये ।
उसे मुर्ग़ा बनने की सजा भी मिली और झूठ न बोलने की हिदायत ।
जब हम घर आ रहे थे उसने धमकी दी तुम आना मेरे घर तब बताऊँगा ।घर जाकर शिकायत भी की ,हमारा मन विचलित था कि अब आगे क्या होगा ।
मन की मुराद उसे मुर्ग़ा बनवाने की पूरी हो चुकी थी और हम भाभी को चप्पल देने गये ।भाभी ने हमें माफ़ी माँगने का मौक़ा भी नहीं दिया और कहा-यह हम तुम्हारे लिए ही लाये थे तुम पहनकर स्कूल ज़ाया करो इसकी दूसरी है उन्हें पहिन लेगा और यह बात किसी को भी नहीं बताई .........धन्य हो भाभी 🙏🙏🙏🙏🙏