यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (4) Asha Saraswat द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (4)

वर्तमान समय में नारी सशक्तिकरण की बातें चारों ओर सुनाई दे रहीं है।
बात बहुत पुरानी है उस समय कोई इस तरह की बातें नहीं करता था।लेकिन हमारे आस-पास बहुत सी नारियाँ ऐसी थीं जिन्होने हमारे बाल मन पर गहरी छाप छोड़ी।

बात उन दिनों की है जब हम जूनियर कक्षा में थे ।

स्कूल से घर आने पर अल्पाहार लेने के बाद अपना गृहकार्य पूरा कर लेते थे, फिर अपने मित्रों के साथ खूब मस्ती करते हुए खेलते थे।
हमारे घर के नज़दीक एक परिवार रहता था।उस परिवार की महिला बहुत मृदुभाषी,सरल स्वभाव की थीं ।हमारी माता जी को वह सासू मॉं की तरह सम्मान देतीं थी,हम उन्हें भाभीजी कह कर पुकारते तो वह बहुत प्रसन्न होतीं।

उनका व्यवहार हमें बहुत पसंद था और हम उनके पास ख़ाली समय में पहुँच जाते तो वह अच्छी-अच्छी व्यवहार की बातें बताया करतीं थी।

एक दिन हम उनके पास ही बैठे थे,वह बहुत ही सुंदर शाल बना रहीं थीं,हम कहने लगे भाभीजी हमें भी सिखाओगी ।वह हॉं में सिर हिलाते हुए बोली-हॉं तुम्हें भी मैं सिखा दूँगी ।

उस दिन से जब भी हमारा ख़ाली समय होता हम उनके पास जाकर बैठ जाते वह बालसुलभ चीजें हमें सिखाती और हम तन्मयता से सीखते ।

जब हमारी वार्षिक परीक्षा थी हमें मिट्टी के खिलौने,तिरंगा झंडा और क्राफ़्ट में झोंपड़ी बनानी थी ।मन बहुत परेशान था कैसे बनायेंगे, इसी चिंता में उनके पास दो दिन नहीं गये।उन्होंने हमें बुलाया बड़े प्यार से पूछा-हमने अपनी परेशानी उन्हें बताई तो बड़े प्यार से समझाया और सभी सामान सरलता से बनवा दिया ।विशेषता यह थी कि सभी सामान घर में बेकार पड़ी चीजों से ही बन गया ।कुछ उनके द्वारा जुटाया गया और कुछ हम ले गये ।

परीक्षा में जब हमारा बनाया हुआ सामान देखा गया हमारी बहुत प्रशंसा की हमारी अध्यापिका जी ने,हम बहुत खुश थे।घर आकर हम पहले भाभीजी के पास गये और उनकी तारीफ़ करते हुए उन्हें धन्यवाद करके उनसे लिपट गये।
भाभीजी बहुत खुश हुईं।

अब सिलसिला चलता ही रहा ।परीक्षा के बाद छुट्टियों में हम प्रतिदिन उनके पास जाते थे ।उन्होंने हमें एक कपड़े पर बहुत सारी अनेक तरह की कढ़ाई सिखाई ।पहले सरल फिर क्रम से कठिन कढ़ाई सिखाईं,एक मेज़पोश बनवाया ।इस तरह हम सभी तरह की कढ़ाई बड़ी सरलता से सीख गए ।

अब अगली बारी क्रोशिया की थी। सबसे पहले पतली डोरी बनाना सिखाया फिर सरल डिज़ाइन के बाद कठिन से कठिन डिज़ाइन बनाना बड़ी सरलता से सिद्ध खा दिया ।
हमें सीखने की ललक थी और उन्हें सिखाने की।हम तो सीखते ही थे मोहल्ले की हमारी अनेक सखियों को भी भाभीजी बड़े ही प्यार से सिखाती थीं।

तरह-तरह के स्वैटर,शाल,मौजे ,टोपी हम सब सहेलियों ने भाभीजी से बनाना सीखा ।

जब हम बड़े हिये तो सभी को भाभीजी ने मशीन चलानी सिखाई ,पहले छोटे-छोटे गुड़िया के कपड़े फिर फटे कपड़े सही करना बताया ।धीरे-धीरे छोटे कपड़े बनाना हमने भाभीजी से सीखा ।इस तरह समय-समय पर हमें घरेलू ज्ञान भी उनसे मिलता रहता ।

इतना सब सिखाने पर भी वह कभी हम सब से परेशान नहीं होतीं ,उनकी वजह से हम सभी जगह प्रशंसा पाते ।भाभीजी ने बदले में कभी कुछ नहीं चाहा सिर्फ़ प्यार के—-उन्होंने बहुत सी लड़कियों को काबिल बनाया————यह भी है नारी सशक्तिकरण 🙏🙏🙏🙏🙏...............