यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (5) Asha Saraswat द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (5)

शादी के बाद मुझे ससुराल में रहने का अवसर तो मिला लेकिन जहॉं पैत्रिक घर था , सासू मॉं रहती थीं वहाँ रहने का अवसर मुझे नहीं मिला था।

शादी के समय में परीक्षा थी,परीक्षा अच्छी नहीं हुई।नंबर बहुत कम आये तो ,उसी कक्षा में दोबारा परीक्षा देने का निर्णय लिया गया और फार्म भी गृह जनपद से ही भरा ।
अब सासू मॉं के पास रहकर पढ़ाई करनी थी ,मन में बहुत से प्रश्न उठ रहे थे कैसे हो पायेगा ।

हमारी मॉं बहुत ही साहसी और कर्मठ महिला थीं लेकिन मेरी दो जेठानी जो मुझसे पहले परिवार में आई थी उनकी सोच मॉं के प्रति ठीक नहीं थी वैसा ही उन्होंने मुझे भी बताया ।

जब मैं पहली बार उनके पास रहने गई तो डरी हुई थी कैसे रहना होगा और उनके साथ रहकर कैसे पढ़ाई हो पायेगी।

मेरा डर कुछ ही दिनों में चला गया उनके व्यवहार से।उन्हीं के मोहल्ले में मेरी स्कूल समय की सहेली रहती थी। जब वह मिलने आई तो मैं उससे उसी लहजे में बात कर रही थी जैसे कक्षा में किया करती थी।उसके सामने ही उन्होंने मुझे बहुत डाँटा कि यह अब तुम्हारी ससुराल है तमीज़ से बात करो।मैं उस समय तो सुनकर शांत हो गई लेकिन अंदर से बड़ी ही बेइज़्ज़ती महसूस करने लगी।मॉं के साथ उसका दादी का रिश्ता था वह नमस्ते कर के चली गई और धीरे से सीख दे गई दादी के साथ सँभल कर रहना।

बाद में मॉं ने प्यार से समझाया कि प्रेम से बात किया करो।
अपने सभी बच्चों को मॉं ने बहुत मेहनत करके पढ़ाया था।
सभी अच्छी-अच्छी पोस्ट पर काम कर रहे थे और सभी मॉं का सम्मान करते थे।

एक दिन मॉं ने मेरी ज़रूरत की सभी चीजें मुझे लाकर दी ।मॉं अकेली रहतीं थीं इसलिए वहाँ उनकी ज़रूरत का ही सामान उनके पास था।

गेहूं की टंकी में गेहूं,सभी तरह की दालें,सभी मसाले उन्होंने मंगा कर रख ली थीं ।बिछाने के लिए बिस्तर,ओढ़ने की चादर सब कुछ मंगा लिया था।

किसी भी वस्तु की कोई कमी नहीं थी,मॉं का अपने प्रति प्यार देखकर मेरे मन में उनके लिए बहुत ही सम्मान था।

मॉं जब भोजन करतीं तभी अंगीठी में कोयला डालकर उनके लिए गर्म रोटी सेक देती तो वह ख़ुश हो जाती थीं।वह पूरा समय मुझे पढ़ाई के लिए देतीं ।

अब मैं भी उनसे घुल-मिल गई,उनकी सेवा करती थी।
मुझे बहुत ही आश्चर्य होता कि अनपढ़ मॉं ने अपने सभी बच्चों को इतना काबिल बना दिया कि सभी एक से एक अच्छी जगह पर कार्य कर रहे हैं समाज में सम्मान पूर्वक जीवन-यापन कर रहे है।

एक दिन मैंने मॉं से बातें करते हुए कहा-मॉं आपने बिना पिता के सीमित साधनों में कैसे बच्चों के साथ जीवन-यापन किया होगा।

उन्होंने जो सबक़ मुझे सिखाया कि कैसे एक महिला ससम्मान,संयमित जीवन अपने बच्चों के साथ रह सकती है वह आज भी मैंने गाँठ बांध कर रखा है।मैं तो कॉलेज की पढ़ाई करने गई थी किन्तु मॉं से ज्ञान का पिटारा लेकर आई ,मॉं से बहुत सी व्यवहारिक बातें सीखी।जीवन जीने की कला मुझे अनपढ़ सासू मॉं ने सिखाई।नारी सशक्तिकरण की मिसाल बन गई ंमेरी मॉं.......🙏🙏🙏🙏🙏