Jhanjhavaat me chidiya book and story is written by Prabodh Kumar Govil in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Jhanjhavaat me chidiya is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
झंझावात में चिड़िया - उपन्यास
Prabodh Kumar Govil
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
गोरा - चिट्टा, गोल - मटोल, आंखों से मुस्कराता सा खड़ा था।
पड़ोस की कोठी में काम करने वाली बूढ़ी औरत बोल पड़ी - काला टीका दे दो माथे पर!
- अरे नहीं - नहीं! ऊपर से नीचे तक बस वो टीका ही टीका दिखेगा। देखती नहीं, सेमल के फूल सा खिला खड़ा है सफ़ेद रंग में। कहीं खेल - खेल में हाथ लग गया तो पूरे माथे पर फ़ैल जायेगी कालिख। वाशबेसिन साफ करती - करती खड़ी हो गई घर की कामवाली बाई बोली।
- खेल - खेल में? अरे खेलने ही तो जा रहा है। उसके चेहरे पर क्रीम लगाती मां ने कहा।
- इतना सा? क्या खेलेगा ये? बूढ़ी ने शंका जताई।
बच्चे ने आग्नेय नज़रों से देखा उस बूढ़ी औरत को।
बच्चे की मां ने अपने आंचल से एक बार मुंह पोंछा बेटे का। फ़िर गर्व से बोली - ओ, ऐसे मत बोल। पैदा होने के दिन से ही तो खेल रहा है। देखती नहीं, सर्दी- गर्मी- बरसात कुछ भी हो खेलना नहीं छोड़ता। दो- तीन घंटे रोज़ पसीना बहाता है। इसके पप्पा थक जायें, ये नहीं थकता है।
गोरा - चिट्टा, गोल - मटोल, आंखों से मुस्कराता सा खड़ा था। पड़ोस की कोठी में काम करने वाली बूढ़ी औरत बोल पड़ी - काला टीका दे दो माथे पर! - अरे नहीं - नहीं! ऊपर से नीचे तक ...और पढ़ेवो टीका ही टीका दिखेगा। देखती नहीं, सेमल के फूल सा खिला खड़ा है सफ़ेद रंग में। कहीं खेल - खेल में हाथ लग गया तो पूरे माथे पर फ़ैल जायेगी कालिख। वाशबेसिन साफ करती - करती खड़ी हो गई घर की कामवाली बाई बोली। - खेल - खेल में? अरे खेलने ही तो जा रहा है। उसके चेहरे पर
ये अपने आप में एक रिकॉर्ड ही था कि पंद्रह सोलह साल की उम्र का किशोर पहले किसी खेल का जूनियर राष्ट्रीय चैम्पियन बने और लगभग उसी साल खेल का सीनियर वर्ग का राष्ट्रीय चैम्पियन भी बन जाए। अपने ...और पढ़ेखेल से दर्शकों का लगातार दिल जीतने वाला प्रकाश एक दिन बैडमिंटन को उस मुकाम पर ले आया जहां उसे क्रिकेट के बाद नई पीढ़ी का सबसे पसंदीदा खेल समझा जाने लगा। सात वर्ष के प्रकाश ने ये चमत्कार कोई एक दिन में नहीं कर दिया बल्कि उसकी लगातार तपस्या जैसी कड़ी मेहनत उसे इस मंज़िल की ओर लाई। पहली
शेर की ये क़िस्म और नस्ल किसी ने कभी भी कहीं भी सुनी या देखी न होगी। न किसी ज़ू में और न किसी टाइगर रिजर्व में! लेकिन उन्हें यही दर्ज़ा दिया गया। छः फुट एक इंच लंबे प्रकाश ...और पढ़ेबैडमिंटन कोर्ट पर "जेंटल टाइगर" अर्थात 'विनम्र सिंह' कहा गया। एक ऐसा शेर जो राजा है पर खूंखार नहीं है। संजीदा, सरल और विनम्र। सातवां दशक बीतते - बीतते प्रकाश को जबलपुर शहर में अपने पसंदीदा, पर बेहद आक्रामक इंडोनेशियाई खिलाड़ी रूडी हर्टोनो के साथ खेलने का अवसर मिला। यहीं प्रकाश को ये एहसास हुआ कि वो ख़ुद काफ़ी रक्षात्मक
धुआंधार सफलताओं की इस आंधी के बाद प्रकाश का अब एक पैर भारत में और दूसरा विदेश में रहने लगा। उसका दिल कोई भी प्रतियोगिता छोड़ने के लिए तैयार न होता, चाहें राष्ट्रीय हो या अंतरराष्ट्रीय। कहते हैं जब ...और पढ़ेज़मीन पर हो तो वो शिखर की ओर उठने का सपना देखता है और जब कुछ ऊंचाई पर पहुंचता है तो शिखर की चोटी पर पहुंचने का। लेकिन चोटी पर पहुंच जाने पर भी इंसान की ख्वाहिशों पर लगाम नहीं लगती। फ़िर वो शिखर पर बने रहने का ख़्वाब देखता है। प्रकाश के कदम भी रुके नहीं। पद्मश्री से सम्मानित
खेल की दुनिया अजब - गजब है। ये युवाओं की दुनिया है। और इंसान की ज़िंदगी में जवानी कब आती है कब जाती है, कोई नहीं जानता। प्रकाश पादुकोण जैसे महान खिलाड़ी भी उम्र का पैंतीसवा साल जाते - ...और पढ़ेये सोचने लगे कि अब नई कोंपलों को जगह देनी चाहिए। खेल के मैदान में तो सपनों और उम्मीदों से लबरेज़ युवा ही चहकते हुए अच्छे लगते हैं। सक्रिय खेल जीवन से संन्यास ले लेने की बात अब इस लीजेंड बन चुके शख़्स के दिमाग़ में भी आने लगी। अब पारिवारिक जिम्मेदारियां भी उनके वक्त की मांग करती थीं। दुनिया