झंझावात में चिड़िया - 4 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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झंझावात में चिड़िया - 4

धुआंधार सफलताओं की इस आंधी के बाद प्रकाश का अब एक पैर भारत में और दूसरा विदेश में रहने लगा। उसका दिल कोई भी प्रतियोगिता छोड़ने के लिए तैयार न होता, चाहें राष्ट्रीय हो या अंतरराष्ट्रीय।
कहते हैं जब इंसान ज़मीन पर हो तो वो शिखर की ओर उठने का सपना देखता है और जब कुछ ऊंचाई पर पहुंचता है तो शिखर की चोटी पर पहुंचने का। लेकिन चोटी पर पहुंच जाने पर भी इंसान की ख्वाहिशों पर लगाम नहीं लगती। फ़िर वो शिखर पर बने रहने का ख़्वाब देखता है।
प्रकाश के कदम भी रुके नहीं। पद्मश्री से सम्मानित हो जाने के बाद उसने अगली विश्व चैम्पियनशिप की तगड़ी तैयारी करने की बात सोची। उसका मन सन उन्नीस सौ तिरासी में होने वाली विश्व चैम्पियनशिप को जीतने के लिए छटपटाने लगा।
प्रकाश को ये अच्छी तरह मालूम था कि भारत में एक बार स्टार बन जाने के बाद किसी भी कठिन मुहिम की तैयारी करना बहुत ही मुश्किल है। बल्कि ये नामुमकिन है क्योंकि यहां का अतिउत्साही मीडिया किसी वीआईपी को अकेला छोड़ कर इतनी मोहलत नहीं दे सकता कि वो शान्ति से चुपचाप अपने लक्ष्य संधान की तैयारी कर सके। मीडिया उसकी पल - पल की करनी लोगों तक पहुंचाए बिना मान ही नहीं सकता। और फिर लोग भी उस पर पल - पल छींटाकशी किए बिना नहीं रह सकते।
ऐसे में कोई आदमी अर्जुन की भांति चिड़िया की आंख को देखकर निशाना साधने की एकाग्रता भला कैसे जुटाये?
इसका एक ही उपाय था कि प्रकाश अब अपने कठिन अभ्यास और ट्रेनिंग विदेश में पूरे करे।
प्रकाश ने इसके लिए अपने पसंदीदा यूरोप के डेनमार्क को ही चुना।
वहां रहने में कोई भी परेशानी नहीं थी। आर्थिक, पारिवारिक और सरकारी सभी तरह का सहयोग उपलब्ध था। मॉर्टन फ्रॉस्ट जैसे नामी गिरामी खिलाड़ी अब उसकी मित्र मंडली में शामिल थे। अतः उन्होंने वहां रहने का मन बनाया ताकि एक पंथ दो काज साधे जा सकें। प्रशिक्षण भी हो और बड़ी स्पर्धाओं के लिए खेलना भी सुगम रहे।
लेकिन किसी भी इन्सान की ज़िन्दगी में कोई भी बात अकेली तो नहीं होती। इंसान सामाजिक प्राणी है जिसके पारिवारिक सरोकार हैं।
प्रकाश ने अपना बल्ला खेल के उच्चतम शिखर तक लहरा कर उठा तो लिया, पर अब घर वालों के दिल में एक नई खलबली सिर उठाने लगी।
लड़के ने जीवन में किसी को कभी नज़र उठा कर देखा तक नहीं, अब कहीं ऐसा न हो कि जवान जहान लड़के का ये उठा हुआ बल्ला परदेस में रहते हुए कहीं किसी विदेशी मेम के सामने झुक जाए!
प्रकाश कर्नाटक के एक छोटे से ज़िले के छोटे से गांव से आया परंपरावादी परिवार का सुपुत्र था। उसके ख़ून में ही वो आधुनिकता नहीं थी कि कहीं आते- जाते किसी को अपना जीवन साथी ख़ुद अपनी मर्ज़ी से चुन ले।
घरवालों को ये एहसास भी था कि जब उसके हाथ में बल्ला खेलाधिकारी पिता ने ख़ुद पकड़ाया है तो अब उसका घर बसाने के लिए किसी सुशील सुकन्या का हाथ भी माता- पिता को ही पकड़ाना होगा। अर्थात आज्ञाकारी बेटे की अरेंज्ड मैरिज अरेंज करनी होगी।
प्रकाश ने कभी कोई ऐसा संकेत नहीं दिया था कि वो किसी को चाहता है या जीवन साथी बनाने के विषय में सोचता है।
आम भारतीय परिवारों की तरह प्रकाश के घर वालों ने भी पूरे परंपरागत रस्मो रिवाज के साथ उसका विवाह उज्ज्वला नामकी एक घरेलू लड़की से कर दिया। हिंदू रीति से सम्पन्न हुए इस विवाह से हमेशा रैकेट पकड़े रहे मज़बूत हाथ में एक कोमल कलाई आ गई।
कोपेनहेगन, डेनमार्क में हुई विश्व चैम्पियनशिप स्पर्धा में सन उन्नीस सौ तिरासी में प्रकाश को एकल वर्ग में कांस्य पदक प्राप्त हुआ और उसका स्थान तीसरा रहा।
प्रकाश का अंग्रेज़ी और कन्नड़ भाषा पर अच्छा अधिकार रहा। कन्नड़ तो उसकी मातृभाषा ही थी। प्रकाश ने भारत में आयोजित अंतरराष्ट्रीय थॉमस कप स्पर्धा भी जीती।
खिलाड़ी, मॉडल, सिने अभिनेता आदि प्रोफ़ेशन ऐसे हैं जहां कैरियर स्पान बहुत छोटा सा ही होता है। इन सभी कार्यों में शारीरिक दम खम या सौन्दर्य और युवावस्था की दरकार रहती है जो किसी के पास भी लंबे समय तक नहीं टिकते। यद्यपि फ़िल्म जगत में तो अब एक सुखद बदलाव आया है कि अच्छे एक्टर्स बड़ी उम्र तक भी स्क्रीन पर पसंद किए जाते हैं। यह प्रभाव हॉलीवुड में तो काफ़ी पहले से ही है क्योंकि वहां सजावटी लुभावनी फ़िल्मों की तुलना में सख़्त रियलिस्टिक सिनेमा का ज़्यादा प्रभाव है। इस वजह से कलाकारों की अभिनय क्षमता उनकी उम्र की सीमा नहीं बनती। वो देर तक स्क्रीन शेयर करते रह पाते हैं।
प्रकाश ने कभी अपनी उपलब्धियों को व्यावसायिक विदोहन के लिए नहीं इस्तेमाल किया।
नवें दशक के आरंभिक वर्षों में अपने यूरोपियन मित्रों के संपर्क सान्निध्य में डेनमार्क में रहते हुए प्रकाश ने लगातार खेल पर अपना ध्यान केंद्रित किया और इस बीच लगातार पदक प्राप्त किए। उसे उन्नीस सौ बयासी में डच ओपन टूर्नामेंट में गोल्ड मेडल मिलने के साथ डेनमार्क ओपन तथा स्कैंडिनेवियाई ओपन टूर्नामेंट में दूसरा स्थान हासिल हुआ।
उसकी ये उपलब्धि उन्नीस सौ तिरासी में भी जारी रही जब चाइना ताईपे ओपन, जापान ओपन, डच ओपन तथा इंडिया ओपन में भी उसे एकल मुकाबले में उपविजेता का ताज हासिल होता रहा। अगले साल सन चौरासी में उसने थाईलैंड ओपन खेला। इसमें भी वो एकल रनर्स अप की अपनी पोजीशन को बरकरार रखते हुए उपविजेता रहा।
सन पिचासी में एक बार फिर चाइनीज़ ताईपे ओपन खेलते हुए उपविजेता का ताज उसकी झोली में आया।
प्रकाश ने डबल्स में भी उन्नीस सौ इक्यासी में जापान और उन्नीस सौ अट्ठासी में यूएस ओपन में रजत पदक हासिल किए।
ये एक शानदार कंसिस्टेंट सफ़लता का दौर था जो इस महान खिलाड़ी के हिस्से में आया। इतनी बड़ी कामयाबी किसी भी खेल में किसी भी खिलाड़ी को भारत में शायद हासिल नहीं हुई होगी।
डेनमार्क प्रवास ने प्रकाश को खेल की अपनी चमत्कारिक उपलब्धि के अलावा और भी बहुत कुछ दिया।
अपने विवाह के बाद गहन प्रशिक्षण के चलते यहां रहते हुए प्रकाश ने अपने परिवार को भी यहां अपने साथ ही रखा और इसी बीच अपनी पहली संतान के रूप में एक प्यारी सी बिटिया को जन्म भी उनकी धर्मपत्नी उज्ज्वला ने यहीं डेनमार्क में दिया।
इस तरह डेनमार्क सदाबहार महान खिलाड़ी प्रकाश पादुकोण के लिए एक प्रकार से दूसरा घर ही बन गया।
जहां उनपर पदकों की बौछार तो हुई ही, परिवार को संतान के रूप में पहला तोहफ़ा भी इसी देश की ख़ूबसूरत वादियों में हासिल हुआ।
भारत का प्रकाश डेनमार्क में भी छा गया!