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तीसरे लोग - उपन्यास
Geetanjali Chatterjee
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
नर्मदा नदी के तट पर जलती चिता की लपटों का आग्नेय रंग अस्ताचल में ढलते सूरज की लालिमा में विलीन होता चला जा रहा था। फाल्गुनी के विलाप के संग आज नर्मदा की लहरें भी " छाजिया " (मृत्यु पर किए जाने वाला समूह संताप) गा रही थी। उन लहरों में आज प्रणय का मधुर संगीत कहां ? बस थी तो केवल दग्ध हृदय का करुण क्रंदन। कुछ दिनों पहले तक यही लहरें साक्षी थी फाल्गुनी के प्रेम एवं स्मारक की बांसुरी से उठती मधुर तान की। शायद इसलिए लहरे आज उनके चिर बिछोह से हाहाकार करती प्रतीत हो
1. नर्मदा नदी के तट पर जलती चिता की लपटों का आग्नेय रंग अस्ताचल में ढलते सूरज की लालिमा में विलीन होता चला जा रहा था। फाल्गुनी के विलाप के संग आज नर्मदा की लहरें भी " छाजिया " ...और पढ़ेपर किए जाने वाला समूह संताप) गा रही थी। उन लहरों में आज प्रणय का मधुर संगीत कहां ? बस थी तो केवल दग्ध हृदय का करुण क्रंदन। कुछ दिनों पहले तक यही लहरें साक्षी थी फाल्गुनी के प्रेम एवं स्मारक की बांसुरी से उठती मधुर तान की। शायद इसलिए लहरे आज उनके चिर बिछोह से हाहाकार करती प्रतीत हो
2. वो-जनखा-सा देखनेवाला छोकरा किसना आज फिर गली के नुक्कड़ पर मसखरी करते आवारा लड़कों के बीच घिर गया। "अय ! हय ! ए किसना ! उफ ! तेरी चाल तो किसी दिन हम सबकी जान ले लेगी। " ...और पढ़ेदूसरा टुच्चाई शक्लवाला छाती पर एक हाथ धरे, किसना कौन रखा रे, तेरा नाम तो राधा होना चाहिए था राधा, क्यों भाई लोग ?" कहकर उसने अपने बाईं आंख दबाई तो बाकी लड़के उसके इस भद्दे मजाक पर मुंह फाड़े हंसने लगे। एक और शोहदा-सा दिखनेवाला लौंडा, उसने कुछ ज्यादा ही जोश दिखाते हुए किसना की कमर में चिटकोटी काटी,
3. डॉ. स्मारक कोठी की छत की मुंडेर पे बैठा एक के बाद एक सिगरेट फूंकता चला जा रहा था। पूर्णिमा का चांद समुंदर की लहरों पर चांदी-सी छटा बिखेर रहा था और उन्मादिनी लहरें किसी जहरीले भुजंग-सी फुंकार ...और पढ़ेसाहिल पर सिर पटकते हुए श्वेत-फेन उगल रही थी। यूं तो चंद्रमा की धवल ज्योतस्ना गहन तमस को चीरते हुए स्फटिक-सी छटा बिखेर रही थी स्याह पृथ्वी पर, लेकिन क्या स्मारक के मन के गहन तिमिर को भेदने कोई आशा की किरण उपजी न थी या फिर उसके जीवन के चंद्रमा को ग्रहण ने सदा के लिए लील लिया था
4. पूर्णिमा का चांद अपने यौवन की पामीर पर था और समस्त अवनि एवं व्योम उसकी दूधिया आभा से नहा उठे थे, किंतु अपार रूप को स्वामिनी, नववधू के समक्ष चंद्रमा भी स्वयं को हीन महसूस करता दिखाई दे ...और पढ़ेथा। फाल्गुनी की प्रतीक्षारत उनींदीं पलकें पिया दरस को व्याकुल थी। तभी किसी की पदचाप से उसके हृदय की धड़कनें बढ़ गईं। धीमे-से पलकों को उठाया तो स्वामी के गौर युगल चरणों के दर्शन से धन्य हो उठी। लजाते हुए सेज से उठकर उसने श्रद्धा सहित पति की चरण रज को अपने मस्तक से लगाया । स्मारक के हाथ उसे
5. उस दिन चाचा का लठैत मंगलू पहलवान किसना का बुलावा लेकर उसके घर की चौखट पर लाठी पटकते हुए आ खड़ा हुआ। अम्मा सुरसतिया ड्योढ़ी पर बैठी बथुए क साग बीन रही थी। मंगलू की ओर उसने प्रश्नसूचक ...और पढ़ेसे देखा। " परनाम चाची, किसनवा है का ? मालिक बुलाए हैं ऊका। कहे की छोरा ऐसे ही फजूल में धूम के बखत बिगाड़ रहा, चाहे तो मालिस (मालिश) ओर लिखा-पढ़ी का काम में लगाय देंगे। " भोली अम्मा ऐसे ही मिसिरजी के अहसानो तले दबी थी, यहां तक की उन्हें देवता का दर्जा दे डाला था। मिसिरजी का नाम