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मेरा स्वर्णिम बंगाल - उपन्यास
Mallika Mukherjee
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
देश विभाजन भारतीय उपमहाद्वीप की एक ऐसी त्रासदी है, जिसकी पीड़ा पीढ़ियों तक महसूस की जायेगी। इस विभाजन ने सिर्फ सरहदें ही नहीं खींचीं, बल्कि सामाजिक समरसता और साझा संस्कृति की विरासत को भी तहस-नहस कर दिया। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ा दी गई मनुष्यता को, मानव इतिहास कभी माफ नहीं कर पायेगा। वजह है, विभाजन से उपजा विस्थापन। संबंधों का विस्थापन, जड़ों से विस्थापन और संरक्षा-सुरक्षा के भरोसे का विस्थापन। इन कही-अनकही पीड़ाओं को इतिहास ने आंकड़ों में, तथ्यों में चाहे जितना दर्ज किया हो, लेकिन अपनों को सदा के लिए खो देने का गम, भीतर-ही-भीतर सूख चुके आँसुओं का गीलापन और यादों में दर्ज अपने वतन का नक्शा इतिहास में दर्ज नहीं होता।
मेरा स्वर्णिम बंगाल संस्मरण (अतीत और इतिहास की अंतर्यात्रा) मल्लिका मुखर्जी(1) सादर समर्पित परम पूज्य माता-पिता श्रीमती रेखा भौमिक, श्री क्षितिशचंद्र भौमिक, नानी माँ आभारानी धर तथा उन सभी परिजनों को जिन्होंने देश के विभाजन के परिणामस्वरूप विस्थापन का ...और पढ़ेसहन किया। मल्लिका मुखर्जी प्राक्कथन देश विभाजन भारतीय उपमहाद्वीप की एक ऐसी त्रासदी है, जिसकी पीड़ा पीढ़ियों तक महसूस की जायेगी। इस विभाजन ने सिर्फ सरहदें ही नहीं खींचीं, बल्कि सामाजिक समरसता और साझा संस्कृति की विरासत को भी तहस-नहस कर दिया। राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की भेंट चढ़ा दी गई मनुष्यता को, मानव इतिहास कभी माफ नहीं कर पायेगा। वजह है,
मेरा स्वर्णिम बंगाल संस्मरण (अतीत और इतिहास की अंतर्यात्रा) मल्लिका मुखर्जी (2) हृदयोक्ति आमार सोनार बांग्ला, आमि तोमाय भालोबासि। चिरोदिन तोमार आकाश, तोमार बातास, आमार प्राणे बाजाय बाँशि। मेरे स्वर्णिम बंगाल, मैं तुमसे प्यार करता हूँ। तुम्हारा आकाश, तुम्ह
मेरा स्वर्णिम बंगाल संस्मरण (अतीत और इतिहास की अंतर्यात्रा) मल्लिका मुखर्जी (3) मेरे स्वर्णिम बंगाल आमि तोमाय भालोबासि वर्ष 2012 के नवम्बर माह के पहले सप्ताह में जब रांगा मौसी ने फोन पर कहा कि फरवरी 2013 को वे ...और पढ़ेजाने का सोच रही है, मैंने एक पल का
मेरा स्वर्णिम बंगाल संस्मरण (अतीत और इतिहास की अंतर्यात्रा) मल्लिका मुखर्जी (4) फोन पर जब मैंने श्यामल भैया को मोईनपुर के बारे मे पूछा, वे ख़ुशी से उछल पड़े। उनकी आवाज़ में उनकी ख़ुशी झलक रही थी, ‘अरे, जानती ...और पढ़ेमल्लिका, हमारे गाँव के पास से पक्की सड़क गुजरती ह
मेरा स्वर्णिम बंगाल संस्मरण (अतीत और इतिहास की अंतर्यात्रा) मल्लिका मुखर्जी (5) समय काफ़ी बिगड़ा, उपर से टेक्सी भी बहुत पुरानी एवं खस्ता हाल में थी। न तो दरवाजा ठीक से बंद हो रहा था, न ही खिड़की। सीट ...और पढ़ेसही नहीं थी, पर टेक्सी ड्राइवर बड़ा भला इन्सान लगा। यह सुनकर कि हम भारत से आए हैं, उसके चेहरे पर मैंने अंधेरे में भी एक चमक देखी। रास्ते में हमने ड्राइवर से काफी बातें की। हमने उसे यहाँ आने का उद्देश्य बताया। वह झट से बोला, ‘मैं कोमिल्ला ज़िले का ही रहनेवाला हूँ। आप लोग चाहें तो मैं आप