Sanvednao ke swar : ek drashti book and story is written by Manoj kumar shukla in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Sanvednao ke swar : ek drashti is also popular in कविता in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि - उपन्यास
Manoj kumar shukla
द्वारा
हिंदी कविता
संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि (1) हे माँ वीणा वादिनी ..... हे माँ वीणा वादिनी, शत् शत् तुझे प्रणाम । हम तेरे सब भक्त हैं, जपते तेरा नाम ।। शांत सौम्य आभा लिए, मुख में है मुस्कान । गूँज रही जयगान की, चर्तु दिशा में तान ।। शुभ्र वसन धारण करें, आभा मंडल तेज । चरणों में जो झुक गये, पाते सुख की सेज ।। मणियों की माला गले, दमकाती परिवेश । आराधक जो बन गये, मिटते मद औ द्वेष ।। मधुर - मधुर वीणा बजे, पुलकित होते प्राण । अमृत के रस पान से, हो जाता कल्याण ।। ग्रंथ
संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि (1) हे माँ वीणा वादिनी ..... हे माँ वीणा वादिनी, शत् शत् तुझे प्रणाम । हम तेरे सब भक्त हैं, जपते तेरा नाम ।। शांत सौम्य आभा लिए, मुख में है मुस्कान । गूँज ...और पढ़ेजयगान की, चर्तु दिशा में तान ।। शुभ्र वसन धारण करें, आभा मंडल तेज । चरणों में जो झुक गये, पाते सुख की सेज ।। मणियों की माला गले, दमकाती परिवेश । आराधक जो बन गये, मिटते मद औ द्वेष ।। मधुर - मधुर वीणा बजे, पुलकित होते प्राण । अमृत के रस पान से, हो जाता कल्याण ।। ग्रंथ
संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि (2) जब-जब श्रद्धा विश्वासों पर ..... जब - जब श्रद्धा विश्वासों पर, अपनों ने प्रतिघात किया । तब - तब कोमल मन यह मेरा, आहत हो बेजार हुआ । मैं तो प्रतिक्षण चिंतित रहता, ...और पढ़ेसुविधा की छाँव दिलाने । मनुहारों की थपकी देकर, अनुरागों के गीत सुनाने । जब -जब नेह भरी सरगम में, चाहा हिल-मिल राग अलापें । तब -तब मेरे मीत रूठ कर, मेरे दुख में खुशियाँ मापें । समझौतों की दीवारों से, कितने मकां बनाये हमने । पल दो पल की खुशियाँ देकर, लगे वही सब हमको ठगने । हर आशा
संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि (3) मित्र मेरे मत रूलाओ..... मित्र मेरे मत रूलाओ, और रो सकता नहीं हूँ । आँख से अब और आँसू, मैं बहा सकता नहीं हूँ ।। जिनको अब तक मानते थे, ये हमारे अपने ...और पढ़े। इनके हाथों में हमारे, हर सुनहरे सपने हैं ।। स्वराज की खातिर न जाने, कितनों ने जिंदगानी दी । गोलियाँ सीने में खाईं, फाँसी चढ़ कुरबानी दी ।। कितनी श्रम बूदें बहाकर, निर्माण का सागर बनाया । कितनों ने मेघों की खातिर,सूर्य में हर तन तपाया ।। धरती की सूखी परत ने, विश्वासों को चौंका दिया । कारवाँ वह
संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि (4) बरखा ने पाती लिखी, मेघों के नाम..... बरखा ने पाती लिखी, मेघों के नाम । जाने कब आओगे, मेरे घनश्याम ।। अॅंखियाँ निहारे हैं, रोज सुबह- शाम । उमस भरी गर्मी से, हो ...और पढ़ेबदनाम ।। सूरज की गर्मी से, तपते मकान । बैरन दुपहरिया ने, हर लीन्हें प्रान । लू के थपेड़ों से, हो गए हैरान । सूने से गली कूचे, हो गए शमशान ।। श्रम का सिपाही भी, कहे हाय राम । हर घर में मचा है, भारी कोहराम ।। नदियाँ सब सूख कर, बन गयीं मैदान । हरे भरे वृक्षों ने,
संवेदनाओं के स्वरः एक दृष्टि (5) कविता मेरे सॅंग ही रहना..... कविता मेरे सॅंग ही रहना, अंतिम साथ निभाना । जहाँ-जहाँ मैं जाऊॅं कविते, वहाँ - वहाँ तुम आना । अन्तर्मन की गहराई में, गहरी डूब लगाना । सदगुण ...और पढ़ेन तू भरमाना, दुर्गुण भी बतलाना । जब मैं बहकूँ तो ओ कविते, मुझको तू समझाना । पथ से विचलित हो जाऊॅं तो, पंथ मुझे दिखलाना । बोझिल मन जब हुआ हमारा, तू ही बनी सहारा । दुख में जब डूबा मन मेरा, तुमने उसे उबारा । मेरे सोये मन को जगाकर, कर्मठ मुझे बनाना । न्याय धर्म और सत्य