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ठग लाइफ - उपन्यास
Pritpal Kaur
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
सविता ने तली हुयी मछली का एक बड़ा सा टुकड़ा मुंह में डाला था. मछली बेह्द स्वाद बनी हुयी थी. वह जल्दी जल्दी खा रही थी. सविता खाना हमेशा बहुत जल्दी में खाती है. जैसे कहीं भागना हो. इसी चक्कर में ज़रुरत से ज्यादा खा जाती है. उसका बदन भी इस बात की गवाही देता है. तभी टेबल पर रखा उसका फ़ोन बज उठा. ये स्मार्ट फ़ोन पिछले महीने ही लिया है सविता ने और बेहद खुश है इससे. थोड़ी देर पहले इसकी खासियत के बारे में ही बात कर रही थी वो रेचल से.
सविता ने तली हुयी मछली का एक बड़ा सा टुकड़ा मुंह में डाला था. मछली बेह्द स्वाद बनी हुयी थी. वह जल्दी जल्दी खा रही थी. सविता खाना हमेशा बहुत जल्दी में खाती है. जैसे कहीं भागना हो. इसी ...और पढ़ेमें ज़रुरत से ज्यादा खा जाती है. उसका बदन भी इस बात की गवाही देता है. तभी टेबल पर रखा उसका फ़ोन बज उठा. ये स्मार्ट फ़ोन पिछले महीने ही लिया है सविता ने और बेहद खुश है इससे. थोड़ी देर पहले इसकी खासियत के बारे में ही बात कर रही थी वो रेचल से.
रेचल ने देखा है कई बार औरतें ग़लत आदमी का चुनाव कर लेती हैं और फिर ज़िन्दगी भर अपमान के घूँट पीती हुयी मरती रहती हैं तिल-तिल कर के. लेकिन यहाँ तो माजरा ही कुछ और है. सविता के ...और पढ़ेरमणीक एक टिकेट है बेहतर ज़िन्दगी का. उस ज़िन्दगी का जो एक जगह ठहर गयी है. मर्द के न होने से. आर्थिंक आधार पर भी और शारीरिक ज़रूरतों के मद्देनज़र भी. उसे रमणीक में अपना उद्धारक नज़र आता है.
सविता को ज़िंदगी ने कई रंग दिखाए हैं. उसका बचपन रिश्तेदारों के रहमो-करम और हॉस्टल की डोरमेट्री में गुज़रा है. सविता का जब जन्म हुआ तो उसकी माँ गिरिजा देवी लगभग मरते-मरते बचीं. उससे पहले गिरिजा देवी के एक ...और पढ़ेसाल का बेटा भी था जिसकी डिलीवरी में कोई परेशानी नहीं हुयी थी. इस बार जब ये सब हुआ तो उसके पति यानी सविता के पिता ने बच्ची की जनम कुंडली उसी दिन बनवा डाली.
जून के पहले इतवार का तपता वह दिन सविता के जीवन में एक नया मोड़ ले कर आया. पहले तो वह बदहवास हो कर चिल्लाने लगी. फिर देखा कि घर में कोई उस पर ध्यान नहीं दे रहा तो ...और पढ़ेकर रो पडी. जसमीत ने जब माँ को चिल्लाते देखा तो फ़ौरन दादी के पास लपकी और उसकी गोद में दुबक गयी.
इसके बाद क्या हुआ सविता को कुछ भी याद नहीं. सिर्फ देखने वाले बता सकते हैं कि उसने सर उठा कर देखा लेकिन आंसुओं से भरी उसकी आँखों को शायद कुछ दिखाई नहीं दिया. वह रोशनी में नहाए घबराए ...और पढ़ेकी तरह खडी अकबकाई सी आंसुओं को रोकती, रुलाई के किनारे पर ठिठकी, टेढ़े हुए होटों से अपने सामने खड़े शख्स को देखती रही.