ठग लाइफ - 9 Pritpal Kaur द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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ठग लाइफ - 9

ठग लाइफ

प्रितपाल कौर

झटका नौ

वो सुबह रमणीक और रेखा के घर में कयामत की सुबह बन कर आयी थी. रेखा को जैसे आग लगी हुयी थी. वह पूरे घर में तिलमिलाती हुयी तेज़-तेज़ इधर से उधर आ जा रही थी. उसे समझ नहीं आ रहा था कि किस तरह अपने आप को काबू में करे. बेटा आशीष और उसकी नयी नवेली पत्नी आशिमा दोनों परेशान से उसे देख रहे थे. किसी की हिम्मत नहीं हो रही थी उसे रोक कर पूछे कि हुआ क्या है.

आखिर जब आशीष से नहीं रहा गया तो उसने डरते डरते माँ से कहा, “मॉम, मैं डॉक्टर को बुलाऊँ?”

“पागल हुआ है ? डॉक्टर क्या करेगा?” वह चीखी थी.

“मॉम. फिर बताओ क्या हुआ है?” आशीष ने माँ का पकड़ कर रोकते हुआ कहा. रेखा खडी हुयी तो बेटा खींच कर माँ को सोफे पर ले गया और बिठा दिया. बैठते ही रेखा का गुस्सा कुछ ठंडा हुआ.

“अपने पापा को फ़ोन कर और घर बुलाओ. फ़ौरन. इसी वक़्त. जहाँ भी वो हो.” रेखा ने सख्त लहजे में आदेश दिया.

आशीष ने पापा को फ़ोन किया और रेखा का आदेश सुना दिया. रमणीक ने जानना चाहा कि वजह क्या है तो रेखा ने बेटे के हाथ से फ़ोन ले कर काट दिया. दोबारा फ़ोन बजा तो रेखा ने फ़ोन लिया और इतना ही कहा, “तुम्हें कहा न कि घर आ जाओ इसी वक़्त.” और फ़ोन काट दिया.

इसके पच्चीस मिनट के बाद रमणीक घर पर था. इस बीच बेटे और बहु को रेखा सारा किस्सा सुना चुकी थी. सुन कर बेटा भी गुस्से में उबल रहा था. बहु के लिए नए घर की निजी समस्या थी. उसे नहीं समझ आया कि वह कसी तरह अपनी प्रतिक्रिया दे, सो चुपचाप सोफे पर सास के दूसरी तरफ बैठ गयी.

पति पत्नी के बीच बैठी रेखा चुपचाप अंदर ही अंदर उबलती हुयी गुस्से में बार बार पहलू बदलती बैठी रमणीक के घर आने का इंतज़ार कर रही थी. बहु आशिमा ने डरते-डरते सास से पूछा, “मॉम, आपके लिए पीने को कुछ ले आऊँ? थोड़ी वोदका ले लीजिये. दिस विल बी गुड फॉर योर नर्वस. “ रेखा ने प्यार से बहु की तरफ देखा और हामी भर दी.

आशिमा जल्दी से बार की तरफ लपकी. उसने कमरे में मौजूद तीनों लोगों के लिए वोदका ढाली और दो गिलास ले कर सोफे की तरफ आयी. एक सास को दिया दूसरा अपने पति को और खुद के लिए लेने बार की तरफ वापिस गयी.

तभी बाहर रमणीक की गाडी के रुकने की आवाज़ आयी. फिर दरवाज़ा बंद होने की और जल्दी जल्दी चलते हुए क़दमों से रमणीक के अन्दर आने की. रमणीक अन्दर दाखिल हुआ और बदहवास सा रेखा की तरफ लपका.

“क्या हुआ रेखा? तुम ठीक तो हो?”

रेखा रमणीक के चेहरे पर छाई फ़िक्र को देख कर जल-भुन गयी. उसका गुस्सा जो कुछ देर पहले कुछ ठंडा हुआ था एकाएक फिर उबाल खा गया. उसने अपने गिलास में भरी ड्रिंक जोर से रमणीक के चेहरे पर दे मारी. रमणीक इस हमले से घबरा गया.

गीली हुयी शर्ट को एक हाथ से झाड़ता हुआ वह चीखा, "ये क्या कर रही हो रेखा?”

उसी तर्ज में रेखा भी चीखी, “तुमने जो किया है उसका जवाब देना शुरू किया है अभी. चीखो मत. आवाज़ नीची करो.”

रमणीक और घबरा गया. उसने रेखा को कन्धों से सम्भालना चाहा. वह रेखा के गुस्से को पहचानता था. रेखा ने उसके हाथ झटका दिए. उसी तरह चीखते हुए बोली, “ ये सविता के साथ जो गुलछर्रे तुम उड़ा रहे हो सब पता लग गया है मुझे. और सारी दुनिया को पहले ही पता है. मेरी इज्ज़त का जो फालूदा किया है तुमने. तुम छोटे घरों के लोग ऐसे ही होते हो. कुछ भी बन जाओ अपनी जात का नीचपन ज़रूर दिखाते हो.”

इस वक़्त गुस्से के साथ-साथ रेखा की आवाज़ में दर्द भी था. वह बोलते बोलते ढह गयी. गिर गयी सोफे पर और सोफे की पीठ पर सर रख के हाथों में मुंह छिपा कर जोर-जोर से रोने लगी. आशीष ने पास बैठ कर माँ को संभाला. बहु आशिमा चुपचाप खडी रही. उसे समझ नहीं आया कि वो क्या करे. रमणीक जहा खड़ा था वहीं बैठ गया. सोफे के पास ही कारपेट पर. कुछ देर कमरे में रेखा का रुदन गूंजता रहा. फिर रमणीक खिसक कर रेखा के पास पहुंचा.

उसने रेखा के चेहरे से उसके हाथ हटा कर उसकी आँखों में झाँका और बोला, “मुझे माफ़ कर दो डार्लिंग. मैं बहक गया था. ज़िन्दगी में पहली बार मुझसे गलती हुयी है.”

ये कहते के साथ ही रमणीक थोडा अंदर से डर भी गया कि कहीं रेखा को उसकी दूसरी गलतियों की जानकारी न हो. रेखा उसी तरह रोती रही. लेकिन अब उसने रमणीक को इजाज़त दे दी थी कि वो उसे सहलाए और राहत दे. रमणीक उठ कर उसकी बगल में बैठ गया. उसने रेखा को अपने आगोश में ले लिया. वह अभी तक रो रही थी.

बहु ने बेटे को इशारा किया और दोनों वहां से निकल कर अपने कमरे में आ गए.

रेखा और रमणीक के बीच उस दिन काफी कहना सुनना हुआ. रमणीक ने अपनी गलती की

बार-बार माफी माँगी और जताया कि जो हुआ उसमें सविता की ग़लती ज्यादा थी. वह चूँकि मर्द है सो जल्दी ही बहक गया. और रेखा अगर उसे छोड़ कर चार महीनों के लिए घूमने अमरीका नहीं गयी होती तो ऐसा हरगिज़ नहीं होता वगैरह वगैरह. और रेखा जो चाहे वो सजा उसको दे सकती है.

इस पर रेखा का दिल कुछ पसीजा. फिर भी उसने धमकी दे डाली कि वह अपने पिता को इस बारे में सब कुछ बता देगी तो रमणीक बुरी तरह घबरा गया. रेखा के पिता कड़क आदमी थे और लंगोट के बहद पक्के. रमणीक जानता था उन्हें अगर पता लग गया तो उसकी खैर नहीं. उसने रेखा के पैर पकड़ लिए और कसम दिलाई कि वह अपने पिता से इस बारे में कुछ न कहे.

इस पर रेखा ने भी वादा लिया कि वह खुद सविता के साथ इस मसले को सलटायेगी और रमणीक अब ज़िन्दगी भर कभी न तो सविता का मुंह देखेगा और ना ही उसको फ़ोन करेगा.

इन वादों कसमों के बाद ही रेखा ने रमणीक से उसका फ़ोन हासिल किया था और फिर जो तूफ़ान रमणीक और रेखा के घर आया था उसका कहर सविता और रेचल के लंच पर टूटा था.

***