Meri Janhit Yachika book and story is written by Pradeep Shrivastava in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Meri Janhit Yachika is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मेरी जनहित याचिका - उपन्यास
Pradeep Shrivastava
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
आम की बाग को आखिरी बार देखने पूरा परिवार गया था। मेरा वहां जाने का मन बिल्कुल नहीं था। मां-पिता जिन्हें हम पापा-अम्मा कहते थे, की जिद थी तो चला गया। पापा ने अम्मा की अनिच्छा के बावजूद बाग को बेचने का निर्णय ले लिया था। बाग यूं तो फसल के समय हर साल बिकती थी। और फसल यानी आम की फसल पूरी होने पर खरीददार सारे आम तोड़कर चलता बनता था। और पापा अगली फसल की तैयारी के लिए फिर कोशिश में लग जाते थे।
आम की बाग को आखिरी बार देखने पूरा परिवार गया था। मेरा वहां जाने का मन बिल्कुल नहीं था। मां-पिता जिन्हें हम पापा-अम्मा कहते थे, की जिद थी तो चला गया। पापा ने अम्मा की अनिच्छा के बावजूद बाग ...और पढ़ेबेचने का निर्णय ले लिया था। बाग यूं तो फसल के समय हर साल बिकती थी। और फसल यानी आम की फसल पूरी होने पर खरीददार सारे आम तोड़कर चलता बनता था। और पापा अगली फसल की तैयारी के लिए फिर कोशिश में लग जाते थे।
मंझली भाभी ने थाने में धारा 498। (दहेज प्रताड़ना कानुन)के तहत हम तीनों भाइयों, पापा-अम्मा के खिलाफ एफ.आई.आर. दर्ज कराई थी। साथ ही जान से मारने का प्रयास भी जुड़ा था। हम सब गिड़गिड़ाने लगे कि यह सब झूठ ...और पढ़ेघर में दहेज का तो कभी नाम ही नहीं लिया गया। यह मामूली घरेलू कलह के अलावा कुछ नहीं है। बड़ी भाभी को भइया ने सामने लाकर खड़ा कर दिया। कहा कि ‘घर की ये बड़ी बहू हैं। इन्हीं से पूछताछ कर लीजिए, क्या इन्हें एक शब्द भी कभी दहेज के लिए कहा गया है।’
पापा के साथ खाना खाते समय मेरी बातें होती रहीं। मैंने देखा कि पापा दोनों भाइयों के बारे में बात करने के इच्छुक नहीं हैं। वही पापा जो पहले बच्चों की बात करते नहीं थकते थे। पापा खाना खाकर ...और पढ़ेऔर जल्दी ही सो गए। मैं थका था। लेकिन इन्हीं सब बातों को लेकर मन में चल रही उलझन के कारण नींद नहीं आ रही थी। दोनों भाइयों, भाभी और अनु की बातें घूम रही थीं। उन सारी बातों का मन में एक विश्लेषण सा होने लगा।
मैंने सोचा कि यह तो अकेले थी। इसने यह तो बताया ही नहीं कि मुझे दो को सर्विस देनी है। जब एक अंदर घर में थी तो गेट पर बाहर से ताला लगाने का क्या मतलब है? हालांकि दोनों ...और पढ़ेबॉडी लैंग्वेज, हाव-भाव बड़े अच्छे थे। बेहद शालीन, सभ्य, सुसंस्कृत लग रही थीं। दोनों ने ऐसे बात शुरू की जैसे हम बहुत पहले से मित्र रहे हैं। पांच मिनट की बात में ही दोनों ने ही मेरे मुंह से सच निकलवा लिया कि मैं इस फ़ील्ड में न्यूकमर हूं, यह मेरा पहला दिन है। मेरे सॉरी बोलने पर वह दोनों मुस्कुरा कर रह गईं। इस बीच मुझसे यह पूछ लिया गया कि क्या मैं दोनों को सर्विस दे सकता हूं। क्षण भर में मैंने सोच लिया कि मैंने ना किया तो कमज़ोर साबित होऊंगा। अनाड़ी तो साबित हो ही चुका हूं।
प्रोफ़ेसर साहब की बात मुझे सही लगी। शंपा जी की कहानी जानने के बाद मेरे मन में उनके लिए सम्मान भाव उत्पन्न हो गया। मैंने कहा कि मैं उनके पास किसी ऐसी-वैसी भावना के साथ जाना भी नहीं चाहता। ...और पढ़ेथीसिस मिलने के बाद उनसे मिलते रहना चाहूंगा। एक मित्र के नाते। यदि वह चाहेंगी तो नहीं तो नहीं।