Gomti Tum Bahati Rahna book and story is written by Prafulla Kumar Tripathi in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Gomti Tum Bahati Rahna is also popular in जीवनी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
गोमती, तुम बहती रहना - उपन्यास
Prafulla Kumar Tripathi
द्वारा
हिंदी जीवनी
अपने जन्म वर्ष 1953 से अपने जीवन की युवावस्था और दाम्पत्य तथा नौकरी शुरुआत तक की अवधि का आत्मगंधी लेखा- जोखा मैंने अपनी आत्मकथा के पहले खंड “ आमी से गोमती तक “ में दे दिया है जिसे आप पाठकों ने “मातृ भारती " के इन पृष्ठों पर पढ़ा है| इसे अब पुस्तक का रूप दे दिया गया है | इस पुस्तक की अंतिम प्रूफ रीडिंग और कवर पेज चयन के काम को मैंने रविवार 11 फरवरी 2024 को अपने पैतृक और अब लगभग उजड़ रहे घर अरविन्द आवास,बेतियाहाता गोरखपुर (उ.प्र.) में सम्पन्न कर दिया था |लखनऊ से लैपटॉप साथ लाने और अपने मोबाइल में पर्याप्त इंटरनेट डाटा होने के कारण ही यह काम सम्पन्न हो सका था | जिस समय यह काम सम्पन्न हुआ मुझे लगा जैसे मैंने अपनी बिटिया को शादी उपरांत विदा करने का शुभ काम सम्पन्न कर दिया है | चूंकि लैपटॉप पर मुझ नाचीज़ को काम चलाऊ ज्ञान है इसलिए थोड़ी दिक्कतें अवश्य हुईं लेकिन जूझता रहा और तगादा कर रहे प्रकाशक को अपनी विवशता बताते हुए अंतत: यह काम निपटा दिया | यह पुस्तक अब अमेजन पर उपलब्ध है |
अपने जन्म वर्ष 1953 से अपने जीवन की युवावस्था और दाम्पत्य तथा नौकरी शुरुआत तक की अवधि का आत्मगंधी लेखा- जोखा मैंने अपनी आत्मकथा के पहले खंड “ आमी से गोमती तक “ में दे दिया है जिसे आप ...और पढ़ेने “मातृ भारती " के इन पृष्ठों पर पढ़ा है| इसे अब पुस्तक का रूप दे दिया गया है | इस पुस्तक की अंतिम प्रूफ रीडिंग और कवर पेज चयन के काम को मैंने रविवार 11 फरवरी 2024 को अपने पैतृक और अब लगभग उजड़ रहे घर अरविन्द आवास,बेतियाहाता गोरखपुर (उ.प्र.) में सम्पन्न कर दिया था |लखनऊ से लैपटॉप साथ
साहिर लुधियानवी का एक बहुत खूबसूरत शेर है - “वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना ना हो मुमकिन , उसे एक खूबसूरत मोड देकर छोड़ना अच्छा | ” अपनी ज़िंदगी मे ढेर सारे ऐसे प्रसंग आते रहे जिन पर ...और पढ़ेजाए , बहस मुबाहिसा की जाए तो पूरी ज़िदगी ही छोटी पड़ जाएगी |लेकिन उनका संदर्भित किया जाना आत्मकथा में आवश्यक भी है क्योंकि तभी आप अपने साथ उन लम्हों के साथ न्याय कर पाएंगे | जैसा पहले ही बताया चुका हूँ कि मेरी दो संतानें हो चुकी थीं – दोनों पुत्र | बड़े दिव्य आदित्य जिनका पुकार नाम है
चमक पैदा करती उम्मीद की किरणें – वर्ष 2000 शुरू हो रहा है और शुरू हो रहा है अपनी नौकरी का अब उत्तरार्ध | हम उस पीढ़ी के भाग्यशाली लोग हैं जो एक सदी का अंत और दूसरी सदी ...और पढ़ेशुरुआत देख पा रहे हैं | याद आ रहा है 30 अप्रैल 1977 को इलाहाबाद ( अब प्रयागराज) से अपनी नौजवानी में प्रारंभ आकाशवाणी की सेवा और उसके बाद गोरखपुर वापस जाने की छटपटाहट | फिर आकाशवाणी गोरखपुर पहुंचना लेकिन एक अदृश्य घटनाक्रम में एक बार फिर से इलाहाबाद कि पोस्टिंग पर जाना और फिर गोरखपुर आकर प्रमोशन पाकर आकाशवाणी