Shakral ki Kahaani book and story is written by Ibne Safi in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Shakral ki Kahaani is also popular in जासूसी कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
शकराल की कहानी - उपन्यास
Ibne Safi
द्वारा
हिंदी जासूसी कहानी
लाल और सफेद गुलाबों का जंगल ढोल और तुरहियों की आवाजों से गुज रहा था।
गुलतरंग के मेले की अन्तिम रात थी। तीर्थस्थान के एक विशिष्ठ चबूतरे को फूलों में बसे हुये जल से धोया गया था और चबूतरे को धोने और स्वच्छ कपड़ों से पोंछने का काम शकराल की सारी बस्तियों से चुनी हुई कुमारी लड़कियों ने किया था । यही यहां की परम्परा थी ।
स्नान करने वाली अर्थात चबूतरे को धोने वाली रात में सरदारों के खेमों में ने तो तीमाल पी जाती थी और न गाना बजाना होता था । केवल तुरहियों पर आस्मान वाले की बन्दना के गीत गाये जाते थे और ढोल बजाये जाते थे । खेमों से सुगन्धित धुएं निकल कर गुलाबों की महक में मिलते जाते थे ।
चबूतरे के सूख जाने पर तीर्थ स्थानं का बड़ा उपासक चबूतरे पर आकर खड़ा हो जाता था। फिर वह हर बस्ती के सरदार को तलब करके उससे वह प्रण दुहराने को कहता जो उसने अपने सरदार बनने से पहले किया था।
इस समय भी यही हो रहा था। बड़ा उपासक चबूतरे पर खड़ा था । बस्ती के सरदार बारी बारी चबूतरे पर आते थे और अपना प्रण दुहराकर चबूतरे से नीचे उतर आते थे । उतरने से पहले बड़ा उपासक उनके सिरों पर हाथ रख कर आशीर्वाद देता था ।
(1) लाल और सफेद गुलाबों का जंगल ढोल और तुरहियों की आवाजों से गुज रहा था। गुलतरंग के मेले की अन्तिम रात थी। तीर्थस्थान के एक विशिष्ठ चबूतरे को फूलों में बसे हुये जल से धोया गया था और ...और पढ़ेको धोने और स्वच्छ कपड़ों से पोंछने का काम शकराल की सारी बस्तियों से चुनी हुई कुमारी लड़कियों ने किया था । यही यहां की परम्परा थी । स्नान करने वाली अर्थात चबूतरे को धोने वाली रात में सरदारों के खेमों में ने तो तीमाल पी जाती थी और न गाना बजाना होता था । केवल तुरहियों पर आस्मान वाले
(2) हमारे बम से बाहर है- शहवाज ने ऊंची आवाज में कहा । तुन लोगों के लिये हवाई जहाज भिजवा रहा हूँ राजेश ने हाथ हिलाकर वहा था और फिर कदाचित ढलान में उतर गया ...और पढ़ेक्योंकि अब वह उन तीनों को दिखाई नहीं दे रहा था। वैज्ञानिक ही नहीं मदारी भी सानम ने कहा । प्रोफेसर दम साधे खड़ा रहा- थोड़ी देर बाद उन्हें राजेश का सिर नजर आया था और फिर वह उसी चट्टान पर उसी जगह दिखाई दिया था जहां पहले खड़ा था । पहले साथरन उसने कमर से रेशम को मजबूत डोर का लच्छा खोलते
(3) दो- शहबाज ने उत्तर दिया । अगर वह बस्ती में मौजूद न हुये तो? देखा जायेगा—” शद्बाज ने लापरवाही से कहा । क्या देखा जायेगा –? राजेश आंखें निकाल कर बोला ...और पढ़े यह सब तुम मुझ पर छोड़ दो। अगर बस्ती में तुम्हें कोई न पहचान सका तो गोलियां हमारे सीने छलनी कर देंगी। राजेश ने कहा “नहीं—मैं केवल दो आदमियों के परिचय को काफी नहीं समझता । तो फिर इसी गुफा में मर कर सड़ गल जाना होगा- शहबाज ने कहा । शायद तुम अब अपने किये पर पछता रहे हो। नहीं—ऐसा नहीं है- शहवाज बिगड़ कर
(4) यह क्या कर रहे हो--? राजेश बोला । अगर उसने छिन कर कोई हरकत की तो तुम जिन्दा नहीं रहोगे। उस बेचारे को पता ही न होगा कि हम पर क्या गुजरी । ...और पढ़े क्यों ? वह उधर वालों की निगरानी कर रहा है- चलो उसे भी साथ ले लो। पहले रिवाल्वर तो हटाओ। राजेश ने कहा । नहीं तुम्हें इसी तरह चलना होगा।” 'यानी नालें मेरी कनपटियों से लगी रहेंगी ? हां...! उत्तर मिला । इस तरह तो मैं नहीं चल सकता - राजेश ने कहा। यह क्या कह रहे है--? खानम ने पूछा । वह शकराली भाषा नहीं
(5) तुम मेरा वह सूटकेस मंगवा दो जिसके ऊपर दो काली धारियाँ पड़ी हुई हैं— ” राजेश ने शकराली सरदार से कहा । अच्छा कह कर शकराली सरदार चला गया । यह सब तुम्हारी वजह ...और पढ़ेहुआ है- खानम गुर्राई । कम से कम इस वक्त तो मुंह बन्द रखो - राजेश ने कहा यह चिन्ता जनक नेत्रों से शहवाज को देखे जा रहा था। तुमने सूट केस क्यों मंगवाया है? खानम ने पूछा इनका इलाज करूंगा उसी सन्ध्या को परिचर्या के मध्य खान शहबाज से खानम उलझ पड़ी क्योंकि शहवाज ने राजेश को बुरा भला कहना आरम्भ कर