(3)
"दो-" शहबाज ने उत्तर दिया । "अगर वह बस्ती में मौजूद न हुये तो?"
"देखा जायेगा—” शद्बाज ने लापरवाही से कहा ।
"क्या देखा जायेगा –?" राजेश आंखें निकाल कर बोला ।
"यह सब तुम मुझ पर छोड़ दो।"
"अगर बस्ती में तुम्हें कोई न पहचान सका तो गोलियां हमारे सीने छलनी कर देंगी।" राजेश ने कहा “नहीं—मैं केवल दो आदमियों के परिचय को काफी नहीं समझता ।"
"तो फिर इसी गुफा में मर कर सड़ गल जाना होगा- " शहबाज ने कहा ।
"शायद तुम अब अपने किये पर पछता रहे हो।"
"नहीं—ऐसा नहीं है-" शहवाज बिगड़ कर बोला।
“मैंने ठीक कदम उठाया था ।"
"तो फिर खामोश रहो- हम उस बस्ती में नहीं जायेंगे -" राजेश ने कहा ।
"तुम उस बस्ती से गुजरे बिना वहां तक पहुँच ही न सकोगे जहां से तुम्हें अपने देश में दाखिल होना है-" शहवाज ने कहा ।
"मैं इससे पहले भी शकराल आ चुका हूँ — इसलिये ऐसे रास्ते भी जानता हूँ कि हम पर किसी की नजर ही न पड़ सके ।"
"मगर वह रास्ते पैदल तो नहीं त हो सकेंगे--।"
"सवारी कहां मिल जायेगी तुम्हें?" राजेश ने झल्ला कर कहा ।
"उसी वस्ती से"
'अच्छा अच्छा" राजेश ने हाथ हिला कर कहा "यह सब सोचने के लिए पूरी रात पड़ी हुई है।"
भाव ऐसा ही था जैसे किसी कान काटने वाले बच्चे को टाला गया हो । शहबाज के चेहरे पर पहले तो शर्मिन्दगी के लक्षण नजर आये थे फिर क्रोध से उसकी सांस फूलने लगी थी मगर उसने कुछ कहा नहीं— खामोशी से वहां से छूट गया ।
"आखिर तुम गुस्सा दिलाने वाली बातें क्यों करने लगे हो--?" खानम ने राजेश के कन्धे पर हाथ रखकर कहा।
"अभी तक तो ऐसा नहीं हुआ ।"
"खान शहवाज तुम से नाराज हो गये हैं।"
"मुझसे खुश कौन है?" राजेश ने कहा ।
"चलो- -चलो-इन्हें अकेले छोड़ दो" दारा ने कहा । "यह थोड़ी देर मेरे ही पास रहेंगी" राजेश ने कहा । दारा ने फिर कुछ नहीं कहा—खामोशी से वहां से चल दिया ।
"खैरियत ।" खानम हंसकर बोली – “मुझसे क्या कहना चाहते हो? "
"यही कि तुमने एक बार भी अपने घर बालों को याद नहीं किया ।" राजेश ने कहा ।
“उन्हें याद करने से फायदा -?"
"तुम्हारा दिल नहीं दुख रहा है-?"
"बस एक नसीहत मिली है।" खानम ने कहा ।
“अच्छा– वह क्या –?" राजेश ने आश्चर्य से पूछा।
“हां- और नसीहत यह मिली है कि बहुत ज्यादा जिद्दी होना अच्छी बात नहीं" खानम ने ठन्डी सांस लेकर कहा।
“यह जिद ही का नतीजा तो है कि घर बार छूटा अपने बेगाने छूटे और ऊपर से यह दर दर की ठोकरें खानी पड़ रही हैं-पता नहीं तुम्हारे मुल्क पहुँच सकूंगी भी या नहीं—इसके लिये मुझे अपना नाम भी बदलना पड़ा और भेस भी बदलना पड़ा ।"
राजेश कुछ नहीं बोला ।
"क्या यही कहने के लिये तुमने मुझे रोका था?" खानम पूछा।
"नहीं - वह दूसरी बात है-" राजेश ने कहा।
"तो बताओ वह बात ?"
"तुमको फिर से औरत बनना पड़ेगा।" राजेश ने कहा ।
"मगर प्रोफेसर-।"
"खान शहनाज या प्रोफेसर दारा-शकराल के बारे में उतना नहीं जानते जितना मैं जानता हूँ—हम मार डाले जायेंगे मगर तुम्हें कोई हाथ भी न लगा सकेगा-मर्द बनी रहोगी तो तुम भी मार डाली जाओगी।"
" मान लो मैं बच भी गई तो क्या होगा?"
"वह तुम्हें इज्जत के साथ जिन्दगी गुजारने का मौका देंगे ।"
"तब तो मुनासिब यही होगा कि मैं भी तुम लोगों के साथ मर जाऊँ ।"
राजेश कुछ नहीं बोला ।
दिन समाप्त हुआ-रात आई। ठन्ड बढ़ गई थी इसलिये उन्हें रात भर आग जलाये रखनी पड़ी थी। दूसरे दिन सबसे पहले खानम जागी थी। खान शहबाज का स्थान खाली नजर जाया । दारा और राजेश सो रहे थे ।
वह कुछ देर तक बिस्तर पर ही बैठी रही फिर उठकर उस जगह आई जहां आग जल रही थी।
आखिर राजेश और दारा भी उठ गये थे मगर शहवाज की वापसी नहीं हुई थी । खानम ने पहले यही समझा था कि यह जरुरत से बाहर गया होगा।
फिर दारा और राजेश ने बाहर निकल कर उसे खोजना आरम्भ दिया था मगर थक हार कर असफल वापस आये थे ।
"मेरे ऊपर किसी तरह की जिम्मेदारी नहीं-" राजेश ने खानम की ओर देख कर कहा।
"मैंने पहले ही आगाह कर दिया था ।"
"तत ....तुम क....क क्या यह कहना चाहते हो?"
"हां" राजेश ने बात काट कर कहा "मैं यही कहना चाहता हूँ। कि अगर बस्ती में उसके यह दोनों जान पहचान वाले मौजूद न हुये तो फिर उसकी वापसी भी न हो सकेगी ।"
"फिर क्या होगा?"
"मैं कुछ नहीं जानता-" राजेश ने गुर्रा कर कहा । खानम कुछ नहीं बोली। राजेश का क्रोध से लाल चेहरा देखकर दारा को भी हिम्मत नहीं हुई कि वह कुछ कहता । गुफा में गहरा सन्नाटा छा गया था । थोड़ी देर बाद राजेश ने खुद ही दारा से कहा । “सामान समेटो और फिर ऊपर ही बढ़ चली। इस गुफा में तो हम मार लिये जायेंगे ।"
"मगर तुमने तो यह कहा था कि तुम अपने तौर पर हमें हिफाजत के साथ अपने मुल्क में पहुँचा दोगे इसी बादे पर मैंने अपना घर छोड़ा तो था।"
"यह सब सही मगर शहबाज को क्या करू --?" राजेश ने कहा उसने हम सबकी मौत का सामान कर दिया- चलो—ऊपर चलो ।"
फिर उसने सूट केस से अपनी दामी गन निकाली- सामान उठाये गये और सब ऊपर चढ़ने लगे । राजेश इसी प्रयत्न में था कि उन्हें कोई देख न सके। ऊपर पहुँच कर राजेश ने दारा से कहा ।
“तुम उधर नजर रखो और मैं शकराल की ओर देखता हूँ-।"
“और मुझे चाहिये कि मैं सलामती के लिये दुआ मांगना शुरू कर नहीं दूँ — क्यों?" खानम ने राजेश से कहा।
"तुम मुझे ताने और कोसने भी दे सकती हो।" राजेश ने कहा ।
"तुमने अभी तक इस तरह दिल नहीं दुखाया कि मैं तुम्हें ताने और कोसने दूँ ।"
"शुक्रिया — मगर आवाज ऊंची न होने पाये" राजेश ने कहा "हवा का रुख शकराल ही की ओर है--"
"मान लो अगर तुम्हीं दोनों होते तो क्या होता?" खानम ने पूछा।
"मैं सब से पास वाली बस्ती से दो घोड़े चुरा लाता और फिर बस-। "
"क्या तुम पकड़े न जाते—?”
"या तो चोर पकड़े जाते हैं या ऐश करते हैं—कोई तीसरी बात नहीं होती।"
"यह भी तो हो सकता है कि तुम्हारे दिल में जो शक है बहुत गलत हो!"
"हो सकता है-" राजेश ने कहा।
"मगर यह कभी नहीं हो सकता की कोई औरत किसी भी हाल में चुप रहे—।''
"तो क्या में ज्यादा बोल रही हूँ ?"
“हो सकता है यह भी मेरा शक हो और तुमने सचमुच अपने होंठ सी लिए हों।"
"अच्छा- अब मैं बिल्कुल नहीं बोलूंगी ।"
“अगर मुझे तुम्हारी इस बात पर सुकीन आ जाये तो गोली मार देना।"
खानम बुरा सा मुँह बना कर दूसरी ओर देखने लगी और दारा रेंगता हुआ राजेश के पास आ गया।
"क्या कोई खास बात ?" राजेश ने धीरे से कहा ।
"उधर दस पन्द्रह फौजी मौजूद हैं-" दारा ने फुसफुसा कर कहा ।
"उन पर नजर रखो -" राजेश ने कहा फिर फौरन ही बोला "नहीं-नीचे उतर कर उसी सुराख के निकट जा बैठो —अगर वह इस ओर आयें तो फायरिंग आरम्भ कर देना ।"
दारा मशीन पिस्तौल संभाले हुये दरें में उतर गया।
"मैं खाली हाथ हूँ — " खानम ने कहा।
“मेरे हाथ में भी कुछ होना चाहिये ।"
"अपने खाली हाथ से मेरी गर्दन दबोचे रखो-
"सचमुच बहुत संगदिल हो—तुम्हीं दोनों की वजह से मैं इस हाल को पहुँची ।"
"तो फिर दूसरे खाली हाथ को भी काम में लाना न भूलना – । राजेश ने कहा। "प्रोफेसर द्वारा की गर्दन कुछ ज्यादा मोटी नहीं है—।"
"तुम्हारा वायां हाथ उसके लिये काफी होगा ।"
"इस वक्त की बकवास का बदला जरूर लूंगी ।"
"शी" राजेश धीरे से बोला “मेरा ख्याल गलत नहीं था – वह आ रहे हैं-।"
दूरबीन उसकी आंखों से लगी हुई थी और वह साफ देख रहा था। आठ घोड़े तेजी से दरें की ओर बढ़ते चले आ रहे थे ।
थोड़ी ही देर बाद खानम ने भी घोड़ों की टांपों की आवाजें सुन ली थी मगर राजेश के आदेशानुसार उसके निकट ही औधी पड़ी थी। यह 'तत्त्वज्ञान' उसकी समझ में आ गया था कि औधे पड़े रहने कष्ट कदापि नहीं हो सकता जितना खोपड़ी में सुराख हो जाने सकता है-।"
"टापों की आवाजें क्रमशः निकट होती जा रही थीं।
"इसी तरह चुपचाप पड़ी रहो।" राजेश ने धीरे से कहा।
"क्या वह हमें पकड़ ले जायेंगे ?"
"खाली हम दोनों को तुम साथ जाना चाहोगी तो ले जायेंगे वर्नां यहीं छोड़ जायेंगे।"
"मैं साथ जाऊंगी।"
"अच्छा- अब मुंह बन्द रहे ।" कदाचित घुड़सवार दर्रे तक पहुँच गये थे।
"यह कैसे मालूम हो कि खान शहबाज पर क्या बीती-।" खानम ने धीरे से पूछा।
"तुम्हारी जवान रुकेगी या नहीं?"
"अच्छा अब नहीं बोलूंगी" खानम ने बौखला कर कहा और दोनों हाथों से अपना मुंह दबा लिया ।
ऐसा लग रहा था जैसे सचमुच डर गई हो—घोड़ों की टापों की आवाजें बहुत निकट होकर विलुप्त हो गई थीं ।
राजेश ने दूरबीन थैले में डाल ली थी और टामीगन संभाल कर दर की ओर रेंग गया था । पांच आदमी दर्रे में दाखिल हुये थे और उसी गुफा के मुख के निकट रुक गये थे जिसमें उन्होंने रात व्यतीत की थी फिर एक मुख ही पर ठहरा रहा था और चार आदमी गुफा में प्रविष्ट हुये थे ।
राजेश ने कुल आठ आदमी गिने थे- उनमें से तीन शायद दरें के सिरे ही पर रुक गये थे ।
राजेश दरें में झांकता रहा। उसकी धारणा थी कि वह गुफा से निकल कर उधर ही का रुख करेंगे। कहीं उनमें से कोई उस मार्ग पर भी न चल पड़े जिसकी समाप्ति लोमड़ी के भट के मुख पर हुई थी। अगर ऐसा हुआ तो प्रोफेसर द्वारा बेखबरी में मारा जायेगा— फिर इस सिलसिले में वह कुछ करने ही वाला था कि पीछे से आवाज आई।
"अपनी बन्दूक फेंक कर खड़े हो जाओ और हाथ ऊपर उठा दो ।" यह आदेश शकराली भाषा में दिया गया था। अगर खानम और दारा की रक्षा का विचार न रहा होता तो कदाचित राजेश कुछ कर गुजरता - मगर अब आदेश को मानने के अतिरिक्त कोई दूसरा चारा नहीं था। उसने दामीगन रख दी और दोनों हाथ उठाये हुये उठ खड़ा हुआ ।
"अब मुड़ जाओ" शकराली भाषा में कहा गया । राजेश आवाज की ओर मुड़ा। दो रिवाल्वर उसकी ओर उठे हुये थे मगर एक आदमी की नजर खानम पर भी थी ।
"वह खाली हाथ है।" राजेश ने शकराली में कहा । दूसरे आदमी ने आगे बढ़ कर राजेश की टामी गन उठा ली।
राजेश को मालूम नहीं था कि दूसरी ओर से दर्रे के अलावा भी ऊपर आने का कोई और मार्ग मौजूद है वर्ना वह दारा को लोमड़ी के भट की ओर न भेजता बल्कि उसी मार्ग की निगरानी पर लगाता- मगर अब तो भूल हो चुकी थी।
खानम से भी उठने को कहा गया । "वह तुम्हारी भाषा नहीं समझ सकती" राजेश ने कहा फिर।
खानम से कहा "खेल खत्म हो गया- खामोशी से खड़ी हो जाओ - वैसे इस बात की खुशी भी है कि कुछ देर के लिये तुम्हारी जबान तो रुकी।
"तुम शकराली बोल तो लेते हो और समझ भी लेते हो— मगर शकराल की बस्ती के नहीं मालूम होते।" एक आदमी ने कहा ।
“मैंने कब कहा है—?" राजेश ने शकराजी में कहा।
"तुम्हारा एक आदमी हमारे पास कैद है-"
"यह तो होना ही था दावा करके गया था कि इस बस्ती के दो शकराली उसके दोस्त हैं।"
"अगर उसने हम में से दो के नाम न लिये होते तो अब तक मा डाला गया होता।"
"उसे मार डालने के बाद ही तुम लोगों को इधर आना चाहिए।"
"नहीं—वह उन दोनों की बारसी तक जिन्दा रखा जायेगा।"
"चलो ।"
"कहां चलु–?" राजेश ने तेज आवाज में पूछा । "तुम्हें भी बस्ती में चल कर जबाबदेही करनी है।" "किस बात की?"
"इसी बात की कि तुम हमारी सरहद में क्यों दाखिल हुये हो?"
"यह क्या बात हुई— ?" राजेश आंखें निकाल कर बोला ।
"हम अपनी सरहद में किसी ऐसे आदमी को देखना पसन्द नहीं करते जो शकराल का रहने वाला न हो।"
राजेश ने बाई ओर हाथ उठा कर कहा । "हम उधर से आये हैं और तुम्हें मालूम ही होगा कि उधर क्या हो रहा है।"
"बहस मत करो वर्ना यहां गर्दन उतार ली जायेगी।" उस आदमी ने आँखें निकाल कर कहा। "बस खामोशी से चले चलो।"
फिर वह नीचे उतर कर दर्रे की दूसरी ओर बढ़ने लगे थे।
"हमारा एक आदमी और भी है-" राजेश ने कहा । "वह भी पकड़ा जा चुका होगा।"
"वह गुफा में नहीं था।" राजेश ने कहा ।
"फिर कहां है-।" दोनों चलते चलते रुक गये और उनके रिवाल्वर की नालें राजेश की दोनों कनपटियों से जा लगीं ।