शकराल की कहानी - 4 Ibne Safi द्वारा जासूसी कहानी में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
  • अनोखा विवाह - 10

    सुहानी - हम अभी आते हैं,,,,,,,, सुहानी को वाशरुम में आधा घंट...

  • मंजिले - भाग 13

     -------------- एक कहानी " मंज़िले " पुस्तक की सब से श्रेष्ठ...

  • I Hate Love - 6

    फ्लैशबैक अंतअपनी सोच से बाहर आती हुई जानवी,,, अपने चेहरे पर...

  • मोमल : डायरी की गहराई - 47

    पिछले भाग में हम ने देखा कि फीलिक्स को एक औरत बार बार दिखती...

  • इश्क दा मारा - 38

    रानी का सवाल सुन कर राधा गुस्से से रानी की तरफ देखने लगती है...

श्रेणी
शेयर करे

शकराल की कहानी - 4

(4)

"यह क्या कर रहे हो--?" राजेश बोला ।

"अगर उसने छिन कर कोई हरकत की तो तुम जिन्दा नहीं रहोगे।"

"उस बेचारे को पता ही न होगा कि हम पर क्या गुजरी ।"

"क्यों ?"

"वह उधर वालों की निगरानी कर रहा है-" चलो उसे भी साथ ले लो।"

"पहले रिवाल्वर तो हटाओ।" राजेश ने कहा । "नहीं तुम्हें इसी तरह चलना होगा।”

'यानी नालें मेरी कनपटियों से लगी रहेंगी ?"

"हां...!" उत्तर मिला । "इस तरह तो मैं नहीं चल सकता - राजेश ने कहा।

"यह क्या कह रहे है--?" खानम ने पूछा । वह शकराली भाषा नहीं जानती थी ।

"कह रहे हैं कि औरत से कहो कि वह बोलती चले-कम से औरत तो मालूम हो-।"

"तुम्हें इस वक्त भी शरारत सूझ रही है-।" राजेश कुछ नहीं बोला ।

"क्या बात है—?" दोनों शकरालियों में से एक ने पूछा । वह का खानम की भाषा नहीं जानते थे ।

"पूछ रही है कि यह लोग आदमखोर तो नहीं है-?" राजेश ने शकराली में कहा ।

"उससे कह दो कि पूरे शकराल में कोई भी शकराली किसी औरत पर हाथ नहीं उठाते-उनकी हिफाजत की जाती है।",

"कह दूँगा-जल्दी क्या है-?" राजेश ने कहा।

"अच्छा चलो-बताओ तुम्हारा साथी कहां है?"

राजेश उन्हे भट वाली दराड़ तक लाया था। उन्होंने आश्चर्य से देखा चारों ओर फिर एक ने कहा। "इधर तो कुछ भी नहीं है-।"

"मैंने कब कहा था कि इधर भी कुछ है।" राजेश ने कहा फिर चीख चीख कर कहने लगा।

"हम घर लिये गये हैं—मेरी दोनों कनपटियों से रिवाल्वर लगे हुये है-वापस आ जाओ और अपने आप को इनके हवाले कर दो वर्ना मैं मुफ्त में मारा जाऊंगा।" थोड़ी ही देर बाद प्रोफेसर दारा दिखाई दिया था और राजेश के आदेशानुसार कार्य किया था। मशीन पिस्तोल उससे ले लिया गया । दोनों कैदियों के समान चल रहे थे। अन्त में वह शकराली  दूसरे साथियों से जा मिले और उनमें से एक ने कहा।

"ठीक है इनके हाथ इनकी पीठों पर बांध दो-"

"इसकी जरूरत नहीं है।" राजेश ने शकराली में कहा। वह चौंक कर राजेश को घूरने लगा फिर कोमल स्वर में पूछा।

"तुम किस बस्ती के रहने वाले हो भाई?"

"शंकराली नहीं हूँ।" राजेश ने कहा।

"मगर तुम्हारी शक्ल सूरत कुछ जानी पहचानी सी लग रही है-।" उसी आदमी ने कहा।

"इसलिये कह रहा हूँ कि हमें कैदियों को तरह न ले चलो वर्ना बाद में तुम सब को पछताना पड़ेगा।"

"तुम लोग आखिर कहां से आये हो और क्या चाहते हो?"

"वह आदमी जो बस्ती में मदद लेने गया है वह उस ओर का एक दुखी आदमी है— मगर यह उसकी किस्मत की खराबी है कि उसके दोनों जान-पहचान वाले इस वक्त बस्ती में मौजूद नहीं हैं ।"

"वह तो उपर का है मगर तुम?"

"मैं पकलाकी हूँ-" राजेश ने कहा।

"पहचान लिया पहचान लिया।" बातें करने वाला शकराली अचानक उछल पड़ा और फिर उसके सामने घुटने टेक कर उसके हाथ चूमने लगा ।

न केवल खानम और दारा बल्कि दूसरे शकराली भी आश्चर्य से मुंह खोले खड़े थे——और राजेश इस प्रकार खड़ा था जैसे यह उसका अधिकार हो ।

वह शकराली तेजी से उठा और अपने साथियों की ओर मुड़ कर बोला।

"अरे नालायको ! यह शकराल के सरदारों के सरदार——सरदार बहादुर का मुंह बोला भाई और दोस्त सूरमा है— इसके हाथ चूमो वरना तुम्हारे बाप कब्रों में कराहने लगेंगे ।"

फिर खानम और दारा ने देखा कि वह सब बारी बारी से राजेश के हाथ चूम रहे हैं।"

"जादूगरी — पूरी पूरी जादूगरी—" खानम बड़बड़ाई और राजेश ने उसी आदमी से शकराली में पूछा जिसने उसे सूरमा की हैसियत से पहनाना था । “तुम लोगों ने मेरे साथी के साथ कोई बुरा व्यवहार तो नहीं किया—?"

"मुझे अत्यन्त दुख है सूरमा-" उसने कहा "मगर यह सब कुछ, अनभिज्ञता के कारण हुआ— अगर उसने तुम्हारा नाम ले लिया होता तो इस वक्त बस्ती का बच्चा बच्चा तुम्हारे स्वागत के लिये यहां मौजूद होता- मुझे बहुत अफसोस है-।"

“मैंने पूछा था कि तुम लोगों ने मेरे साथी पर कोई जुल्म तो नहीं किया?"

“जुल्म तो जरूर हुआ है—जुल्म करने पर ही उसने तुम्हारी निशानदेही की थी।"

"मर गया या जिन्दा है?" राजेश ने बौखला कर पूछा।.

"अगर जिन्दा भी होगा तो मौत की दुआये मांग रहा होगा—तुम खुद ही क्यों नहीं चले आये थे वस्ती में-?"

"यह बातें होती रहेंगी- चलो चलकर उसकी खबर लें-।" राजेश कहा। खानम और दारा मौन खड़े थे। शकराली तो समझ नहीं सकते बस बोलने वालों का मुंह देख रहे थे ।

आठ घोड़ों में से तीन उनके हवाले किये गये और उनके सवारों से कहा गया कि वह मेहमानों के सामान उठाकर पैदल चलें। खानम का घोड़ा राजेश के बराबर चल रहा था उसने धीरे से कहा । "आखिर यह सब क्या हो रहा है?"

"जो कुछ भी हो रहा है ठीक ही हो रहा है-।" राजेश ने कहा ।

"आखिर तुमने उससे क्या कह दिया था कि यह खून के प्यासे तुम्हारे हाथ चूमने लगे थे ?"

“जादू के तीन शब्द—''और वह भी अंग्रेजी में 'आई लव यु!' राजेश ने कहा—मगर तुम किसी से यह न कह बैठना 'औरतों से यह लोग यह सुनना पसन्द नहीं करते--जान तक मार डालने के लिये तैयार हो जाते हैं।"

"बातों में न उड़ाओ-"

“यह सब बातें तुम्हारी समझ में नहीं आयेंगी इसलिये दिमाग ठन्डा ही रखो-"

"तुम आखिर हो कौन-?"

"यह तो अभी तक मेरे मां-बाप को भी नहीं मालूम हो सका कि  मैं कौन हूँ।"

"अरे ! तुम्हारे बाप मां भी हैं।" खानम ने हंसी उड़ाने वाले भाव में कहा।

"किसके नहीं होते?"

"होते तो हैं सभी के मगर मुझे ऐसा लगता है जैसे तुम अभी आ आस्मान से टपके हो ।"

"मेरे साथ यह लोग चाहे जैसा भी व्यवहार करें' तो आश्चर्य न प्रकट करना—मेरी यह बात हर वक्त तुम्हें याद रहनी चाहिये ।"

"आखिर क्यों तुम खुल कर बताते क्यों नहीं?"

"मेरा ख्याल है कि खान शहबाज की अच्छी खासी पिटाई हुई है।" राजेश ने बात टालते हुये कहा । "मगर क्यों ?"

"यह मालूम करने के लिये वह अकेला है या उसके साथ और कुछ लोग भी हैं।"

"आखिर उसने बता ही दिया।"

"खान शहबाज छिछोरा आदमी नहीं है खानम।" राजेश ने कहा। "जुल्म की हद होने पर ही उसने मुंह खोला होगा ।"

"जब तुम इन लोगों में इतने पूज्य थे तो फिर खुद ही क्यों नहीं गये थे बस्ती में शहबाज को क्यों जाने दिया था?" खानम ने पूछा।

"तुम्हारे पहले सवाल का जवाब यह है कि मैं उन लोगों से मिले बिना खामोशी से निकल जाना चाहता था और दूसरे सवाल का यह जवाब है कि मैंने शहवाज को नहीं भेजा था मैंने तो उसे बस्ती में जाने से रोका था मगर वह अपनी अकड़ में हमसे कुछ कहे बिना चला गया था और उसकी इस अकड़ की सजा भी उसे मिल गई।" राजेश ने कहा "जो लोग मेरी बात नहीं मानते उनका यही नतीजा होता है।"

"तुम खामोशी से क्यों निकल जाना चाहते थे जब कि यह लोग....,"

"जब चार पांच महीने तुम्हें यहीं ठहरे रहना पड़ेगा तब तुम्हें मालूम होगा कि मैं इन लोगों से मिले बिना खामोशी से क्यों निकल जाना चाहता था।"

"ठहरना क्यों पड़ेगा-" खानम ने पूछा ।

"मुनासिव यही है कि तुम अपनी इस "क्यों" को लगाम दो वर्ना घोड़े भड़कने लगेगे। यहां के लोग घोड़ों को एड़ के बजाये "क्यों" लगाते हैं।"

"उड़ा लो मजाक बेबस हूँ ना-"

"औरत और बेबस !" राजेश ने तीखे स्वर में कहा। "नारी जगत के इतिहास को गलत साबित करने की कोशिश न करो— जिसकी जबान वश में न हो उसे बेबस कहना किसी तरह भी ठीक नहीं ।"

"हालांकि मैं बहुत कम बोलती हूँ फिर भी तुम्हें यही शिकायत रहती है कि मैं बहुत ज्यादा बोलती हूँ- "

"सबसे बड़ी ट्रेजडी तो यही है कि बोलती है बहुत अधिक और दावा करती हैं कि बहुत कम बोलती है।"

"तुम औरतों के बारे में अच्छी राय नहीं रखते-" "एक औरत ही ने मुझे पैदा करके इस मुसीबत में डाल रखा है—"

"मुझसे ज्यादा तो तुम बकवास करते हो" खानम ने झल्ला कर कहा। राजेश कुछ कहने ही जा रहा था कि प्रोफेसर दारा का घोड़ा भी उनके बराबर आ गया और उसने राजेश से पूछा।

"आखिर यह सब वश हो रहा है--?"

"तुम तो कान न चाटो —यह खानम हो क्या कम है?" राजेश ने कहा

"मेरी खोपड़ी..."

"ठण्डी हो रही है या गर्म ?" राजेश ने बीच ही में प्रश्न कर डाला ।

"मेरी बात तो सुनो-"

"बात क्या सुनु।" राजेश ने कहा। "क्या यह कम सम्मान की बात है कि जो लोग हमें पकड़ने आये थे वह पैदल चल रहे हैं और हम उनके घोड़ों पर सवार हैं—साथ ही नौकरों के समान उन्होंने हमारे सामान भी उठा रखे हैं-"

"यही तो मालूम करना चाहता हूँ कि पांसा अचानक पलट कैसे गया?" दारा ने कहा ।

"मैंने इन्हें बताया था कि मैं चंगेज खान के खान्दान का आदमी हूँ और मेरे बाप की सूरत बिल्कुल चंगेज खान से मिलती है— बस पांसा पलट गया।"

"मुझे बहलाने की कोशिश न कीजिये -" दारा ने कहा ।

"अपने काम से काम रखो और यह भी सुन लो कि मेरे साथ इनके किसी प्रकार के व्यवहार पर आश्चर्य न प्रकट करना। मैं यहां सूरमा नाम से जाना पहचाना जाता हूँ और पकलाक का रहने वाला हूँ । मेरे देश का नाम भी तुम्हारी जबान से न निकलने पाये ।"

"मुझे शकराली आती ही नहीं—' दारा ने कहा । “फिर भी यहां तुम्हारी भाषा जानने वाला कोई न कोई मिल ही जायेगा ।"

"खान शहवान के बारे में नया मालूम हुआ ।"

राजेश ने जो कुछ सुना था उसे बताने के बाद कहा।

"यहां जो मेरी बात नहीं मानेगा वह अवश्य मारा जायेगा।"

"जब आप शकरालियों में इतने प्रिय थे तो फिर पहले ही बस्ती की ओर क्यों नहीं गये थे?"

"शीघ्र ही इसका कारण भी तुम्हें मालूम हो जायेगा—" राजेश ने कहा।

"तुम यही महसूस करोगे कि यह शकराल नहीं बल्कि मेरी ससुराल है - आज नहीं कल चले जाना और इस आज कल में एक साल भी बीत सकता है।"

“यही तो जानना चाहता हूँ कि ऐसा क्यों है?"

"ऊपर वाले की मर्जी। तुम कौन होते हो बोर करने वाले।"

"द्वारा कुछ नहीं बोला- यस मुंह बना कर रह गया ।

जब बस्ती कुछ ही दूर रह गई तो पथ प्रदर्शक ने राजेश से शकराली में कहा ।

"तुन लोग यहीं रुको मैं बस्ती के लोगों को तुम्हारे स्वागत के लिये लाऊंगा।"

"राजेश ने स्वीकारात्मक ढंग में सिर हिला दिया था।

वह घोड़ा दौड़ा हुवा नगरों से ओझल हो गया। राजेश ने खानम की ओर देखा और इस भाव में मुस्कुराया जैसे नये प्रश्नों के लिये उसे प्रोत्साहन दे रहा हो।

"क्यों जला रहे हो—?" खानग ने क्रोध भरे स्वर में पूछा।

"पूछो — पूछो कि अब क्या हो रहा है-?" राजेश ने सिर हिला कर कहा।

"मैंने फैसला कर लिया है कि अब बिल्कुल खामोश रहूंगी।"

"यह तो बड़ी अच्छी बात है-" राजेश ने कहा।

"खैर मैं ही बताये देता हूँ । वह इसलिये गया हैं कि बस्ती के लोगों को मेरी पेशवाई के लिये ले आये ।"

"कहाँ के बादशाह हो?" खानम जलकर बोली। "काफी हाउस का-। "

बहरहाल उन्हें शीघ्र ही राजेश के कथन की सच्चाई को परखने का अवसर मिल गया था। वह लोग न केवल स्वागत को आये थे बल्कि राइफलों से हवाई फायर करके राजेश को सलामी भी दी थी।

"अब तो तुम से डर लगने लगा है-" खानम ने कहा।

"डरने की जरुरत नहीं।" राजेश ने कहा ।

"अब कुछ न बोलना " दारा ने खानम से कहा। वह बस्ती में दाखिल हुये। लड़कियां अभिनंदन गीत गा रही थीं। सचमुच ऐसा ही लग रहा था जैसे किसी देश के राष्ट्रपति का स्वागत किया जा रहा हो ।

बस्ती का सरदार वही व्यक्ति साबित हुआ जिसने राजेश को पहचाना था। खान शहबाज के सिलसिले में उसकी ग्लनि नेत्रों से प्रकट हो रही थी। राजेश के पूछने पर उसने बताया कि खान शहबाज अभी तक बेहोश है।

"मुझे उसके पास फौरन ले चलो―" राजेश ने शंकराली भाषा में कहा फिर खानम को भी अपने साथ आने का संकेत किया था।

"क्या यह तुम्हारे सर्कस में काम करती है सूरमा - " शकराली सरदार ने पूछा ।

"नहीं..." राजेश ने कहा। "यह उसी की भतीजी है जो तुम लोग की मार से अब तक बेहोश है ।"

"मुझे बहुत अफसोस है सूरमा - बहुत ही अफसोस।" राजेश कुछ नहीं बोला।

फिर वह उस खेमे में आये थे जहां खान शहबाज बेहोश पड़ा हुवा था। उसका माथा रक्त रंजित था। कदाचित मोटी रस्सी के शिकंजे उसके सिर की यह दशा हुई थी। शकराल में यातना देने की पुरातन प्रणाली रस्सी का शिकंजा ही था ।