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खेल खौफ का - उपन्यास
Puja Kumari
द्वारा
हिंदी डरावनी कहानी
6...7...8...9...10... रेडी????
मेरे 8 साल के भाई ने अपनी तुतलाती सी आवाज में पूछा.
"नहीं आशु ...मैंने कहा था न कम से कम 20 तक काउंट करो."
आशीष - ओके दी...11..12...13....
आशीष की काउंटिंग जारी थी और मैं छुपने के लिए कोई परफेक्ट जगह खोज रही थी. मगर समझ ही नहीं आ रहा था छुपने के लिए कौन सी जगह परफेक्ट होगी. यही प्रॉब्लम होती है हमारे जैसे मिडिल क्लास फैमिली के बच्चों के साथ. 2 कमरे के छोटे से मकान में इतनी जगह तो बिल्कुल नहीं होती कि आप कोई भी फिजिकल एक्टिविटी वाले गेम खेल सकें. ज्यादा से ज्यादा आप लूडो, कैरम, चेस या स्क्रैबल खेल सकते हैं. स्क्रैबल में भी मेरी और मेरे भाई की कम और हमारे पैरेंट्स की खुशी ज्यादा रहती है. माइंड एक्सरसाइजिंग गेम्स यू नो....
मैं आलमारी के पीछे छुपने की सोच ही रही थी कि लिया ने मेरा हाथ पकड़ लिया और मेरे कान में फुसफुसाई, कहाँ छुपने जा रही है?
मैंने आलमारी की तरफ इशारा कर दिया. उसने न में गर्दन हिलाई और धीमे से बोली, वो जगह तो आशीष देख चुका है, झट से खोज लेगा हमे.
"तो फिर क्या करें?"
लिया (मुस्कुराते हुए) - चलो आज एक नई जगह छुपते हैं.
6...7...8...9...10... रेडी???? मेरे 8 साल के भाई ने अपनी तुतलाती सी आवाज में पूछा. "नहीं आशु ...मैंने कहा था न कम से कम 20 तक काउंट करो." आशीष - ओके दी...11..12...13.... आशीष की काउंटिंग जारी थी और मैं छुपने ...और पढ़ेलिए कोई परफेक्ट जगह खोज रही थी. मगर समझ ही नहीं आ रहा था छुपने के लिए कौन सी जगह परफेक्ट होगी. यही प्रॉब्लम होती है हमारे जैसे मिडिल क्लास फैमिली के बच्चों के साथ. 2 कमरे के छोटे से मकान में इतनी जगह तो बिल्कुल नहीं होती कि आप कोई भी फिजिकल एक्टिविटी वाले गेम खेल सकें. ज्यादा से
कमरे में आती कुछ तेज आवाजों से मेरी नींद खुली. मैंने एक नजर टीवी पर डाली. मगर टीवी ऑफ था. अब मेरी नजर घड़ी पर पड़ी. रात के 2 बज रहे थे. "इतनी रात को कौन चिल्ला रहा है?" ...और पढ़ेअपने कमरे का दरवाजा खोलने की कोशिश की मगर ये देखकर मुझे हैरानी हुई कि वो बाहर से लॉक्ड था. आखिर हो क्या रहा है यहां . मैंने बिस्तर पर नजर डाली, आशीष इन सबसे बेखबर सोया हुआ था. तभी मेरी नजर खिड़की से आती नीली लाल रोशनी पर पड़ी. मैं धीरे से खिड़की के पास गई और शीशे से
ये मेरे पैरेंट्स के स्कूल फ्रेंड्स थे. जो कभी हमारे पड़ोसी हुआ करते थे. इनफैक्ट उनकी एक बेटी भी थी जो अक्सर मेरे साथ खेलने हमारे घर आया करती थी. तब मैं शायद 5..6 साल की थी. काफी याद ...और पढ़ेपर भी मुझे उसका नाम याद नहीं आया. मगर एक दिन अचानक वो न जाने कहाँ गायब हो गयी. फिर उसे किसी ने नहीं देखा. उसके कुछ ही वक्त बाद वो शहर छोड़ कर चले गए थे. मुझे भी नहीं मालूम था वो यहां कुपवाड़ा में आ बसे हैं. अच्छी बात ये थी कि जब सारे नाते रिश्तेदारों ने हमसे
मैं घबरा कर उठ कर बैठ गयी. बाहर शायद टेम्परेचर बेहद कम था मगर मैं पूरी तरह पसीने से भीग चुकी थी. तो क्या ये सपना था? इतना अजीब? कौन थी वो लड़की? मैंने दीवार पर टंगी घड़ी पर ...और पढ़ेनजर डाली. रात के 2 बज रहे थे. आशीष सुकून से सो रहा था. मैं भी वापस लेट गयी और फिर से सोने की कोशिश करने लगी. ----------- "आप मां की बहन हैं?" मैंने सुनयना मासी से पूछा. जो इस वक्त मेरे साथ बैठी चाय पी रही थी. सुनयना - बोनेर से यो बेसी... माय बेस्ट फ्रेंड. कहते हुए उनकी
रात को डिनर के लिए हम सब साथ में इकट्ठा हुए. "सुनयना मासी ... आप सच में बहुत ही टेस्टी खाना पकाती हैं." मैंने उनकी तरफ देखते हुए कहा. अंकल कोवालकी (खाना खाते हुए) - अवनी .... आशीष ... ...और पढ़ेदोनों कुछ अपने बारे में बताओ ताकि हम लोग तुम्हारी पसंद नापसंद को जान सकें. इससे पहले कि मैं कुछ बोलती एक चमगादड़ उड़ता हुआ वहां आ घुसा. और बेहद फुर्ती से यहां वहां उड़ने लगा. मैंने घबरा कर आशीष को कस कर पकड़ लिया. मगर मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं रह जब मैंने देखा अंकल कोवालकी ने बड़ी ही