Khel Khauff Ka - 7 books and stories free download online pdf in Hindi

खेल खौफ का - 7

आधी रात को अचानक मेरी नींद खुल गयी. इस घर में आने के बाद शायद ही किसी रात को मैं शांति से सो पायी थी. खिड़की से चांदनी की रोशनी आ रही थी. मैंने खिड़की खोल दी और उनके सामने एक आराम कुर्सी लगा कर बैठ गयी और बाहर का नजारा देखने लगी. गार्डन चांदनी रोशनी में बेहद खूवसूरत लग रहा था. ठंढी हवा के साथ फूलों की भीनी भीनी खुशबू से मुझे अच्छा फील हो रहा था. मगर तभी अचानक मैंने देखा कि एक आदमी गार्डन में घुस आया. वो अकेला नहीं था. उसके साथ एक औरत भी थी जिसे वो बालों से पकड़ कर घसीटते हुए लेकर वहां आया था. उस औरत की चीखों से वातावरण गूंज उठा. मैं बुरी तरह सिहर गयी. वो औरत बुरी तरह चिल्ला रही थी और बार बार उससे खुद को छोड़ देने की भीख मांग रही थी मगर उस आदमी ने उसे नहीं छोड़ा और उसे एक तरफ पटक दिया. इसके बाद उसने वहीं पड़ा एक पत्थर उठाया और उससे उस औरत के चेहरे पर पागलों की तरह वार करने लगा और तब तक करता रहा जब तक वो पूरी तरह शांत नहीं हो गयी.

मैं सांस रोके सदमे से ये सब नजारा देख रही थी. मगर तभी उस आदमी ने अपनी मुट्ठियाँ भींचीं और सीधे मेरी खिड़की की तरफ देखा. उसकी नजर मुझसे मिली और मेरा कलेजा मुंह को आ गया. सामने खड़ा शख्स कोई और नही अंकल कोवालकी थे.

कोवालकी (गुस्से में चिल्लाते हुए) - तुम पूरी तरह हमारा हिस्सा क्यों नही बन जाती?

इसके बाद भी वो नहीं रुके और मुझे गालियां देनी शुरू कर दी. उसके बाद वो गुस्से में घर के अंदर चले गए. मेरी बॉडी जैसे पूरी तरह सुन्न पड गयी थी. मैं कोशिश करके वहां से उठना चाहती थी. मगर उठ ही नहीं पाई. ठीक उसी समय मुझे महसूस हुआ कि मेरे पीछे कोई खड़ा है. मैंने पीछे देखा वहां शायद किसी लड़की का साया था. वो मुझसे कुछ कहने की कोशिश कर रही थी. मगर मुझे जैसे कुछ समझ ही नही आ रहा था. उसके बाल अजीब बेतरतीब तरीके से कटे हुए थे. उसके चेहरे और गले पर कटे के निशान मौजूद थे और कहीं कहीं से खून भी फर्श पर गिर रहा था.

थोड़ी देर बाद जब मैं सदमें से बाहर आई तो मैंने उठने की कोशिश की.

- अवनी....

वो धीमे से फुसफुसाती आवाज में बोली और मुझे अपनी तरफ आने का इशारा किया. मैं जैसे ही उसके पीछे गयी नीचे सीढ़ियों पर से गुस्से में जोर से चिल्लाने की आवाज आई, अवनी....

ये अंकल कोवालकी की आवाज थी. जो गुस्से में बिल्कुल पागल होकर मुझे ढूंढ रहे थे. न जाने आगे क्या होने वाला था. मैंने अपनी आंखें बंद कर ली.

और ठीक उसी समय मेरी नींद खुल गयी. फिर से डरावने सपने. खिड़की से आती हल्की धूप और चिड़ियों की चहचहाहट से पता लग रहा था सुबह हो चुकी है. मेरी धड़कनें बेहद तेज थीं. मैंने खुद को शांत करने की कोशिश करते हुए तसल्ली दी,

"काम डाउन अवनी...इट्स जस्ट अ बैड ड्रीम.."
राहत की सांस लेते हुए जैसे ही मैंने कमरे में इधर उधर नजर दौड़ाई मेरी हालत वापस खराब होने लगी. कमरे की खिड़की खुली हुई थी. और वहां पर कुर्सी भी वैसे ही लगी हुई थी जिस कि मैंने सपने में देखा था. जबकि मुझे अच्छे से याद था सोने से पहले मैंने वो कुर्सी बुक शेल्फ के पास रख छोड़ी थी. मैं घबरा कर फौरन दरवाजे की तरफ बड़ी वहां एक और सदमा मेरा इंतजार कर रहा था. फर्श पर खून के धब्बों के साथ किसी के पैरों के निशान पड़े हुए थे.

"मासी मां..." मैं दहशत से भरकर चिल्लाई.

सुनयना मासी भागती हुई मेरे कमरे में आई.

सुनयना (घबराते हुए) - की होलो शोना? तुमि ठीक आछे न...

"मासी मां... एखौन केउ आयष्चेला की?"

सुनयना - न...यहां तो कोई नहीं आया. किछु प्रॉब्लम आछे?

"तो फिर ये खून और ये पैरों के निशान किसके हैं?" मैंने परेशानी से फर्श की तरफ इशारा किया.

सुनयना (फर्श की तरफ देखते हुए) - कोथाय?

मैंने फर्श की तरफ देखा और हैरानी के मारे बेड से उछल कर खड़ी हो गयी. अभी अभी तो यहां खून के धब्बे थे और अभी पूरा कमरा ऐसा हो गया था मानों वहां कभी कुछ हुआ ही नहीं था.

सुनयना (परेशानी से मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए) - अवनी ... शोना मुझे लगता है तुम अब तक उस रात अपने माँ पापा के साथ हुए हादसे से नहीं उबर पायी हो. इसलिए तुम्हें इल्ल्युजन्स और बुरे सपने आ रहे हैं. अगर कोई परेशानी है तो प्लीज टेल मी. आई एम जस्ट लाइक योर मदर.

"नथिंग ...आई एम ओके." मैंने दूसरी तरफ देखते हुए कहा. जाहिर है किसी को मेरी बातों पर यकीन नहीं था.

अब अगर मैंने एक बार और ऐसा कुछ कहा तो पॉसिबल है ये लोग मुझे मेंटल हॉस्पिटल भेज देंगे. सो मैंने चुप रहना ही बेहतर समझा.

जैसे जैसे दिन बीतते जा रहे थे आशु की नजदीकियां अंकल कोवालकी से बढ़ती जा रही थी. हालांकि उस रात के सपने के बाद से मैं उन्हें कुछ खास पसंद नहीं करती थी. मगर फर भी आशीष को खुश देखकर मुझे भी अच्छा लगता था. आशु तो अब अंकल कोवालकी और सुनयना मासी के इतने करीब आ चुका था कि अब कई बार हफ्ते भर तक मुझसे बात तक नही करता था. अंकल कोवालकी भी अब मुझसे दूर दूर ही रहते थे. हमारो कन्वर्सेशन भी अब 'हाय ...हाऊ आर यू' तक सिमट कर रह गयी थी. सुनयना मासी भी शायद मेरे इन रोज रोज के बुरे सपनों से तंग आ चुकी थी. 2 दिन पहले ही उन्होंने मेरे लिए एक लैपटॉप और एक स्मार्टफोन खरीदा था. अब मैं जब चाहे लिया से बात कर सकती थी. मगर लिया ने भी मुझसे बात करने में कोई खास इंटरेस्ट नहीं दिखाया. कई बार मेरे टेक्स्ट्स का रिप्लाई घंटों बाद आता था. बेसिकली मैं ही सबसे अकेली और बोर थी बाकी सब लोग मेरे बिना बहुत खुश थे. और उनको मेरी बिल्कुल भी जरूरत नहीं थी.

मुझे यहां रहते हुए करीब 2 महीने बीत चुके थे. और इतने दिनों में मुझे हर दिन बिल्कुल एक जैसा ही फील होता था. मैंने कई बार नोटिस किया था अंकल कोवालकी और सुनयना मासी उपर ऊपर से तो सब अच्छा शो करते थे मगर अक्सर उन दोनों के बीच किसी बात को लेकर बहस होती रहती थी. मैं अब ऊब चुकी थी. अक्सर मैं गार्डन में जाकर टहलती रहती थी. वहां से वो इकलौता दूसरा मकान साफ नजर आता था. देखने मे वो मकान बेहद डरावना लगता था मगर मेरे लिए तो वो एडवेंचर का अड्डा था. क्यों न उस घर को अंदर से देखा जाए? मेरे मन में ये ख्याल आने लगा. ठीक उसी समय मुझे अपने पीछे कुछ आवाजें महसूस हुई और मैं पीछे मुड़ गयी. मेरी हैरानी का ठिकाना नहीं रह जब मैंने वहां आफरीन को पौधों में पानी देते हुए देखा. आज भी वो वैसे ही ब्लैक गाउन में थी. उनकी ड्रेस काफी कुछ बुर्के जैसी लगती थी मगर उसने अपना चेहरा कवर नहीं किया हुआ था.

आफरीन - अस्सलाम वाले कुम..सब खैरियत?

"हाँ... सब ठीक. आप कहाँ थी इतने दिनों से? "

आफरीन - जरूरत ही नहीं पड़ी आने की.

मैं अब वहां से निकलने की सोच रही थी. ताकि सुनयना मासी को बता सकूं कि आफरीन यहां आई है. मगर कुछ सोचकर मैं रुक गयी. मुझे अपने कुछ सवालों के जवाब चाहिए थे. मैंने एक नजर घर की तरफ डाली और उसके और करीब आ गयी.

"मैं आपसे कुछ पूछ सकती हूँ?"

आफरीन (मेरी तरफ देख कर मुस्कुराते हुए) - जरूर!

"वो सामने जो घर दिख रहा है वो इतना सुनसान क्यों है? वहां के लोग कहाँ गए?"

आफरीन (हैरानी से) - आपके नए वालिदैन ने आपको अभी तक बताया नहीं कि ये उन्ही का मकान है?

"व्हाट???" मैं हैरान रह गयी.

आफरीन - जी हां... जब आपके वालिद कोवालकी साहब छोटे थे तब वो और उनका पूरा परिवार उसी घर में रहता था. एक हादसे में उनका पूरा परिवार खत्म हो गया था. मगर आपके वालिद इस हादसे में जिंदा बच गए थे. उनके अम्मी अब्बू का भी कत्ल बिल्कुल उसी तरह किया गया था जैसे...

कहते कहते उसने एक नजर मुझपर डाली और चुप हो गयी.

"जैसे??" मैंने उसे घूरते हुए कुरेदने की कोशिश की.

आफरीन - मुझे नहीं मालूम.

हमारे बीच सन्नाटा पसर गया. बस वाटर स्प्रिंकलर से पानी गिरने की आवाज आ रही थी जो आफरीन पौधों पर डाल रही थी.

"जब आप यहां गार्डनर का काम करती थीं तो क्या आपको कभी इस घर में कुछ भी अजीब महसूस हुआ?"

आफरीन (व्यंग्य से) - मैं यहां काम करती थी? अच्छा और क्या बताया आपको सुनयना मैडम ने? कि उन्होंने मुझे निकाल दिया है?

"हां ...मासी मां ने तो यही कहा था . " मैंने झेंपते हुए कहा.

आफरीन (हल्की हंसी हंसते हुए) - हम्म...सही कहा उन्होंने आपसे.

अब उसने पौधों को पानी देना बंद किया और सीधा मेरे सामने आकर खड़ी हो गयी.

आफरीन (मेरी आँखों में देखते हुए) - अपने आसपास चीजें जैसी दिखतीं हैं अक्सर वो वैसी होती नहीं हैं. मैं जानती हूँ अवनी आप खुद ही बहुत जहीन हैं. अपना और अपने भाई का अच्छा बुरा बखूबी समझ सकती हैं. मैं ऊपर वाले से दुआ करूंगी कि इंसान के भेस में छुपे शैतानों और शैतान के अंदर छुपे इंसान को पहचानने में आपकी मदद करे.

उसकी बातों ने मुझे और ज्यादा उलझा दिया था. क्या यहां हमें कोई खतरा था? ठीक उसी समय मैंने देखा अंकल कोवालकी घर से बाहर निकलकर गार्डन की तरफ बढ़ रहे थे. मैं फौरन आफरीन से जितना हो सकती थी दूर हो गयी. कहीं मेरा उससे बात करना मी या उसके लिए मुसीबत न बन जाये.

आफरीन (ऊंची आवाज में) - आपके पास वक्त बेहद कम है...जितनी जल्दी हो सके चले जाइये यहां से. एक बार यहां से निकल जाओ तो दोबारा कभी गलती से भी लौट कर यहां वापस न आइयेगा.

इतना कहकर वो तेजी से गार्डन से बाहर चली गयी. मैंने अंकल की तरफ देखा वो खड़े खड़े मुझे घूर रहे थे. उन्होंने एक बार भी आफरीन की तरफ नहीं देखा मानो वो इस दुनिया में एग्जिस्ट ही नही करती हो. अपनी कमर और हाथ रखकर वो मुझे कुछ पल घूरते रहे और फिर वापस घर के अंदर चले गए.

To be continued...

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