Cactus ke Jungle book and story is written by Sureshbabu Mishra in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Cactus ke Jungle is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
कैक्टस के जंगल - उपन्यास
Sureshbabu Mishra
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
श्री सुरेश बाबू मिश्रा हिन्दी कथा साहित्य का जाना-पहचाना नाम है। आपकी अनेक रचनाएँ विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में नियमित प्रकाशित होती रहती हैं। आपका नया कहानी संग्रह ‘कैक्टस के जंगल’ नाम से प्रकाशित होेने जा रहा है जिसमें 20 कहानियाँ हैं जिनके शीर्षक हैं-‘आमंत्रण भरी आँखें’, ‘सेल्फ डिफेंस’, ‘हौंसलों का सफर’, ’कैक्टस के जंगल’, ‘लक्ष्मण रेखा’, ‘भंवर’, ‘बदला हुआ आदमी’, ‘पथराई आँखें’, ‘पिंडदान’, ‘कढ़ा हुआ रूमाल’, ‘वतन की खातिर’, ‘नियति का खेल’, ‘सरहद’, ‘प्यार की सरगम’, ‘सरहद का प्यार’, ‘झंझावात’, ‘हाटस्पाट’, ‘क्या करूँ देश भक्ति का’, ‘जीत का सेहरा’ और ‘समय चक्र’।
इन बीस कहानियों में जो बात मुख्य है वह है कहानी के सरोकार। ‘सरोकार’ बहुत विस्तृत शब्द है जिसका परिप्रेक्ष्य ग्रामीण और शहरी समाज दोनों से होता है। श्री सुरेश बाबू मिश्रा जितनी तन्मयता से शहरी वातावरण का सृजन अपने साहित्य में करते हैं, उतनी गहनता से ग्रामीण परिवेश की भी पड़ताल करते हैं।
संग्रह की पहली कहानी ‘आमंत्रण भरी आँखें’ में प्रेम की पराकाष्ठा का चित्रण है। यहाँ कहानीकार की संवेदना अतृप्त आत्मा की पुकार सुनती है तब वे कहते हैं-
रास्ते में मैं सोचने लगा कि अभी थोड़ी देर पहले मैंने जिसे देखा था वह क्या था सुजाता की अतृप्त आत्मा या मेरे मन में बसी हुई उसकी स्मृतियों की परिणति, मेरे मन का बहम या फिर मेरी आँखों का भ्रम?’
दूसरी कहानी सैल्फ डिफेन्स’ समाज में स्त्री के प्रति फैले अनाचार-दुराचार का सामना स्वयं स्त्री को ताकतवर बनकर करना होगा, का संदेश देने वाली है। इस कहानी की नायिका कहती है-“यह बात मुझे अच्छी तरह समझ में आ गयी थी कि लड़कियों के भय और कमजोरी का ही लोग गलत फायदा उठाते हैं। मैं उनके दिलों में बसे भय को दूर कर उनमें आत्म विश्वास भरना चाहती हूँ। इसलिए मैंने यह सेन्टर खोला है।“
कहानी संग्रह सुरेश बाबू मिश्रा **** अपनी बात साहित्य संस्कृति एवं संस्कारों का वाहक होता है। एक पीढ़ी द्वारा अर्जित अनुभव एवं ज्ञान का लाभ साहित्य द्वारा दूसरी पीढ़ी को सहज ही प्राप्त हो जाता है। यह समाज को ...और पढ़ेदिशा देने का कार्य करता है। इस समय पूरा देश और समाज कोरोना आपदा के कठिन दौर से गुजर रहा है। प्रतिदिन लाखों नये संक्रमित मिलना और हजारों लोगों के असमय निधन का समाचार अन्तर्मन को झकझोर कर रख देता है। आपदा के इस दौर में साहित्य मन को संयत रखने का सबसे सरल और सशक्त माध्यम है। साहित्य पढ़ने
2 सैल्फ डिफेन्स आज अंजलि को आवश्यक कार्यवश कालेज से जल्दी घर जाना था। वह शहर के गल्र्स डिग्री कालेज में बी.एस.सी. प्रथम वर्ष मंे पढ़ती थी। अपनी सहेलियों को बताकर वह फिजिक्स क्लास अटेन्ड करने के बाद कालेज ...और पढ़ेबाहर निकली। साइकिल स्टैण्ड से साइकिल लेकर वह घर के लिए चल दी। अंजलि जैसे ही एक सुनसान गली में पहुंची बाइकों पर सवार शोहदों ने उसका रास्ता रोक लिया। इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती दो शोहदों ने उसे साइकिल से खींचकर अपनी बाइक पर बैठा लिया और बाइक स्टार्ट करके चल दिए। अंजलि सहायता के लिए चिल्लाई।
3 हौंसलों का सफर लाॅकडाउन का दूसरा चरण शुरू हो गया था। किशन का काम बन्द हुए लगभग एक महीना हो गया था। वह यहां गुड़गांव में एक प्राइवेट कम्पनी में काम करता था। अपनी पत्नी राजबाला के साथ ...और पढ़ेयहां एक किराए का कमरा लेकर रहता था। उसका दो साल का बेटा था। वे लोग देवरिया जिले के रहने वाले थे। तीन साल पहले उसने अपने छोटे भाई रमेश को भी गाँव से यहीं बुला लिया था। वह यहां फलों का ठेला लगाता था। वह भी किशन के पास ही रहता था। गुजर-वसर आराम से हो रही थी। दोनों
4 कैक्टस के जंगल पहाड़ों की सुरमई वादियों की गोद में दूर-दूर तक फैले हरे-हरे चाय के बागानों को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो किसी ने जमीन पर दूर-दूर तक हरी चादर बिछा दी हो। बागानों के ...और पढ़ेबना था मेजर रमनदीप का खूबसूरत और भव्य मकान। मेजर रमनदीप अब अपने पैरों पर नहीं चलते थे। एक एक्सीडेंट में उनका पैर खराब हो चुका था इसलिए वह व्हील चेयर का सहारा लेते थे और घर की बाॅलकोनी से ही अपने चाय के बागानों की देखा करते थे। उनके बागानों में दजर्नों स्त्री-पुरुष काम किया करते थे। उस दिन
5 लक्ष्मण रेखा शर्मा जी कपड़े पहनकर बाहर जाने के लिए तैयार हो गए। “आप कहां जा रहे हैं ?“ उनकी पत्नी ने प्रश्नवाचक निगाहों से उनकी ओर देखते हुए पूछा। कहीं नहीं ऐसे ही थोड़ी देर बाहर घूमने ...और पढ़ेरहा हूँ। घर में बैठे-बैठे मेरा तो दम घुटने लगता है।“ शर्मा जी बोले। “पापा जी रोज टी.वी. पर बार-बार प्रसारित हो रहा है कि साठ साल से अधिक उम्र के लोगों को कोरोना संक्रमण का खतरा सबसे अधिक है। वे लॉकडाउन में घर से बाहर बिल्कुल नहीं निकलें, फिर आप रोज क्यों बाहर जाते हैं। अगर बाहर से कुछ