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कैक्टस के जंगल - भाग 17

17

हॉटस्पॉट

रात के ग्यारह बजे थे। राधारमन अपने कमरे में सो रहे थे। तभी उनकी पत्नी ने आकर जगाया। राधारमन अचकचा कर उठ बैठे। “क्या बात है माधुरी तुम इतनी घबराई हुई सी क्यों हो ?“ उन्होंने अपनी पत्नी की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखते हुए पूछा।

“जल्दी उठो विक्रम की बहू के दर्द उठना शुरू हो गया है। उसे तुरन्त किसी नर्सिंग होम में डिलीवरी के लिए लेकर चलना होगा।“ माधुरी ने घबराए स्वर में कहा।

“मगर इस समय तो लॉकडाउन है। अपना एरिया तो हॉटस्पॉट होने की वजह से कई दिन से सील है। ऐसे में नर्सिंग होम कैसे जा पाएंगे ?“ राधारमन ने चिन्तित स्वर में कहा।

“आपकी बात तो ठीक है मगर बहू की हालत को देखते हुए जैसे भी हो उसे किसी नर्सिंग होम तो ले जाना ही पड़ेगा।“ माधुरी बोली।

राधारमन चिन्ता मंे पड़ गए। उन्होंने माधुरी से पूछा-“विक्रम कहां है ?“

“वह आटो लेने गया है। आता ही होगा तब तक आप कपड़े पहन लो। मैं बहू के पास जा रही हूँ।“ यह कहकर माधुरी चली गई।

राधारमन ने कपड़े पहन लिए और विक्रम के आने का इन्तजार करने लगे। राधारमन की रेडीमेड गार्मेन्ट की दुकान थी। लाॅकडाउन के कारण इन दिनों दुकान बन्द थी और पिता-पुत्र परिवार के साथ घर पर ही समय बिता रहे थे।

राधारमन को विक्रम के इन्तजार में बैठे हुए काफी देर हो चुकी थी। अब उन्हें विक्रम की चिन्ता होने लगी। विक्रम कहां रह गया, वे मन ही मन बुदबुदाए।

तभी उन्हें बाहर से किसी के आने की पदचाप सुनाई दी। वे उठकर बाहर आए। विक्रम को सामने देख वे बोले-“आटो ले आए बेटा ?“

“नहीं पापा। लॉकडाउन के कारण कोई ऑटो वाला रात में आने जाने के लिए तैयार नहीं हो रहा है।“

“क्या ?“ राधारमन गहरी सोच में डूब गए। तभी माधुरी बहू के कमरे से निकल कर बाहर आई। वे काफी घबराई हुई सी लग रही थी। उन्होंने कहा-“जल्दी करो, बहू की हालत बिगड़ती ही जा रही है वह दर्द से तड़प रही है।

क्या किया जाए राधारमन को कुछ समझ में नहीं आ रहा था। उनके घर तो सिर्फ मोटरसाइकिल थी। मोटरसाइकिल से बहू को ले जा पाना सम्भव नहीं था। वह विक्रम से बोले-“अपनी गली में मन्दिर के पास एक ई-रिक्शा वाला किराए पर कमरा लेकर दो-तीन साल से रह रहा है वह हम सबको जानता है। जाओ जल्दी उसे बुला लाओ।“

विक्रम ई-रिक्शा वाले के यहां पहुंचा। सारी बात सुनने के बाद वह बोला-“भईया इस माहौल में मैं तो नहीं जा सकता, मगर पड़ोस का मामला है इसलिए आप अगर चला सको तो मेरा ई-रिक्शा ले जाइए।

मरता क्या न करता। विक्रम उसका ई-रिक्शा ले आया। पिछली सीट पर सबने मिलकर कामिनी को लिटा दिया। राधारमन और माधुरी सामने वाली सीट पर बैठ गए और विक्रम रिक्शा लेकर चल दिया।

आगे गली के नुक्कड़ पर दो सिपाही खड़े थे। वे तुरन्त रिक्शे के पास आए, मगर कामिनी को दर्द से छटपटाता देख उन्होंने उन लोगों को जाने दिया।

अब उनका रिक्शा मेन रोड पर पहुंच गया। आगे दूसरे थाने की सीमा शुरू होने वाली थी, इसलिए पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर रास्ता सील कर रखा था। पाँच-छः सिपाही और दो सब इंस्पेक्टर कुर्सियों पर बैठे हुए थे। उन्होंने ई-रिक्शा रोक कर पूछताछ शुरू कर दी।

राधारमन ने रिक्शे से उतर कर उन लोगों को सारी बात बताकर उनसे रिक्शा जाने देने के लिए अनुनय-विनय की।

राधारमन की बातों की तसदीक करने के लिए दोनों सब इंस्पेक्टर रिक्शे के पास आए। रिक्शे में कामिनी के दर्द से छटपटाता देख वे गहरी सोच में पड़ गए।

“हाॅटस्पाट का मामला है। अगर यह खबर कहीं अधिकारियों तक पहुँच गई कि हमने तुम लोगों को रोड सील होने के बावजूद शहर जाने दिया तो हमारी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी।“ एक सबइंस्पेक्टर राधारमन से बोला।

राधारमन और विक्रम ने उनकी फिर खुशामद की और कामिनी की लगातार बिगड़ती जा रही हालत का वास्ता दे, जाने की अनुमति मांगी। विक्रम तो दोनों के सामने हाथ जोड़कर खड़ा हो गया और बोला-“मेरी पत्नी की जिन्दगी का सवाल है साहब, हमें जाने दो।

दोनों सब इंस्पेक्टर आपस में सलाह करने लगे। जो इंस्पेक्टर उम्र दराज था वह बोला-“मरीज की हालत काफी सीरियस है। नौकरी किसी की जिन्दगी से तो बड़ी नहीं हो सकती। ठीक है तुम लोग ले जाओ रिक्शा, जो कुछ होगा देखा जाएगा।“

उसके आदेश पर सिपाहियों में वेरिकेटिंग हटा दी। विक्रम उन सबको धन्यवाद देता हुआ रिक्शा लेकर चल दिया। कुछ ही देर में वे एक नर्सिंग होम में पहुंच गए।

नर्स की मदद से माधुरी ने कामिनी को बेंच पर लाकर लिटा दिया। नर्स ने अन्दर जाकर लेडी डॉक्टर को बताया। उन्होंने विक्रम को एक फार्म भरने के लिए दिया। विक्रम ने फार्म भरकर डाक्टर को वापस लौटा दिया। फार्म में विक्रम का एड्रेस देख डाक्टर के माथे पर बल पड़ गए वह बोली-“साॅरी, मैं इनका इलाज नहीं कर सकती। आपका मोहल्ला तो कोरोना का हाॅटस्पाट है। इन्हें भर्ती कर मैं अन्य मरीजों की जिन्दगी दाँव पर नहीं लगा सकती। जितनी जल्दी हो सके आप इन्हें यहां से ले जाइए।“ इतना कहकर वह अन्दर चली गई। उन्होंने विक्रम या राधारमन जी को कहने-सुनने का मौका ही नहीं दिया। विक्रम और राधारमन ने नर्स की बहुतेरी खुशामद की। मुँह मांगी फीस देने की बात कही। मगर नर्स ने कहा-“जब डाक्टर मैडम ने साफ इनकार कर दिया है तो मैं आपकी कोई मदद नहीं कर सकती।“

कुछ देर तक वे लोग ऊहापोह की स्थिति में खड़े रहे फिर वे दूसरे नर्सिंग होम के लिए चल दिए। वहां पहुंचकर विक्रम अन्दर गया और सारी बात बताकर उनसे मरीज को भर्ती करने का अनुरोध किया। विक्रम के द्वारा अपने मोहल्ले का नाम बताते ही डाक्टर ने कामिनी की डिलीवरी कराने से साफ इनकार कर दिया।

वह दो तीन प्राइवेट अस्पतालों में और गए मगर सबने वही टका से जवाब दिया।

राधारमन विक्रम से बोले-“चलो किसी एक और अस्पताल में चलते हैं वहां अपने मोहल्ले के बजाय दूसरी जगह का पता लिखा देते हैं।“

“हाँ, यही ठीक रहेगा।“ विक्रम ने उनकी बात का समर्थन करते हुए कहा।

मन ही मन यह योजना बनाकर वे अगले अस्पताल पहुंचे। वइ अन्दर जाकर डाक्टर साहब से एडमिट करने की बात करने ही वाले थे कि डाक्टर साहब खुद ही बोल पड़े-“आप लोग उसी मोहल्ले से आए हैं ना, जो हाॅटस्पाट होने के कारण सील है।“

यह सुनकर उन लोगों को बड़ी हैरानी हुई। राधारमन ने उनसे पूछा-“डाक्टर साहब आपको हमारे मोहल्ले का नाम कैसे पता चला।“

“देखिए जब आप लोग पहले नर्सिंग होम में गए थे और फार्म पर अपना नाम लिखा था, तभी वहां की डॉक्टर ने सी.एम.ओ. के यहां बने कन्ट्रोल रूम को पूरी बात की जानकारी दे दी थी। मामला कोरोना से जुड़े होने के बारण कन्ट्रोल रूम से शहर के सभी प्राइवेट अस्पतालों को आप लोगों का हुलिया बताकर यह हिदायत दी गई कि यह लोग हाॅटस्पाट एरिया के हैं इसलिए इन्हें अस्पताल में भर्ती नहीं किया जाये। कोई अस्पताल वाला आपको भर्ती नहीं करेगा।“ डाक्टर साहब ने उन्हें बताया।

यह सुनकर राधारमन सिर पकड़कर बैठ गए। उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि वे क्या करें, कहां जायें। वे मन ही मन बुदबुदाए यह सही है कि कोरोना का संकट बहुत गम्भीर है मगर कोरोना के अलावा भी तो जिन्दगी में बहुत सी परेशानियाँ हैं उनका समाधान भी तो सरकार को निकालना चाहिए।

“चलो बेटा घर चलते हैं। अब वही होगा जो भगवान की मर्जी है।“ राधारमन गहरी श्वांस लेते हुए बोले।

विक्रम ई-रिक्शा लेकर घर की ओर चल दिया। कामिनी दर्द से तड़पते-तड़पते बेहोश हो गई थी। तीन लोग गहरे विषाद में डूबे हुए थे।

जब वे अपने मोहल्ले की वेरिकेटिंग के पास पहुंचे तो वही सब इंस्पेक्टर उनके पास आया। उसने राधारमन से पूछा-“क्यों इतनी जल्दी कैसे लौट आए ? मरीज को एडमिट क्यों नहीं कराया ?“

राधारमन ने भारी मन से उसे आप बीती सुना दी। सब इन्सपेक्टर काफी देर तक कुछ सोचते रहे फिर बोले-“इसी मोहल्ले में यहां से लगभग एक किलोमीटर दूर सिस्टर डिसूजा रहती हैं। वे इन मामलों में बहुत होशियार हैं, अगर आप लोग चाहें तो उनके यहां चले जाइए। अगर भगवान ने चाहा तो सब कुछ ठीक हो जाएगा।“

डूबते को तिनके का सहारा होता है। सब इंस्पेक्टर की बात सुनकर राधारमन के मन में आशा की एक नई किरण जागी।

विक्रम ने कहा-“सब इन्सपेक्टर साहब आप मेहरबानी करके हमारे साथ चले चलिए। मिसेज डिसूजा आपको जानती हैं। आप साथ होंगे तो शायद वह डिलीवर के लिए मना नहीं करेंगी।“

विक्रम के बार-बार अनुनय-विनय करने पर इन्सपेक्टर साहब अपनी मोटरसाइकिल स्टार्ट कर उनके साथ चल दिए।

संयोग से मिसेज डिसूजा घर पर ही मिल गईं। सब इंस्पेक्टर के आग्रह पर वे डिलीवर के लिए तैयार हो गईं। माधुरी और विक्रम कामिनी को उठाकर अन्दर ले गए।

मिसेज डिसूजा ने सबको बाहर बैठक में बैठने के लिए कहा और अन्दर के कमरे का दरवाजा बन्द कर लिया। थोड़ी देर बाद कामिनी को होश आ गया। उसकी चीखें और कराहें गूंजने लगीं।

बैठक में सब लोग दम साधे बैठे थे। सबके चेहरे पर चिन्ता की गहरी लकीरें थीं। सबको एक-एक मिनट घन्टे के समान लग रहा था।

लगभग पौन घन्टे बाद मिसेज डिसूजा बाहर आईं। उनके चेहरे पर सन्तोष की छाया झलक रही थी। वे बोलीं-“आप लोगों के लिए खुशखबरी है, बेटा हुआ है।“

सबके चेहरे पर खुशी से चमक उठे थे। राधारमन बोले-सब इंस्पेक्टर साहब आप और सिस्टर डिसूजा हमारे परिवार के लिए फरिश्ते बनकर आए हैं। हम लोग आप दोनों का यह अहसान कभी नहीं भूलेंगे। विक्रम ने तो भाव विह्वल होकर सब इंस्पेक्टर और सिस्टर डिसूजा के पैर छू लिए थे।

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