कैक्टस के जंगल - भाग 14 Sureshbabu Mishra द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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कैक्टस के जंगल - भाग 14

14

प्यार की सरगम

सेमीनार समाप्त हो गई थी। मैं आटो में बैठकर स्टेशन के लिए चल दिया। आटो ड्राइवर बार-बार मुड़कर मेरी ओर देख रहा था। मुझे बड़ी हैरानी हुई। मैंने उससे पूछा-“तुम बार-बार मुड़कर मेरी ओर क्यों देख रहे हो ?“

उसने उत्तर देने की बजाय मेरी ओर देखते हुए पूछा-“क्या आप कहानीकार हैं साहब।“

“हाँ, मैंने कहा, फिर मैंने उससे पूछा-“मगर तुम यह क्यों पूछ रहे हो ?“

उसने आटो सड़क की साइड में खड़ा कर मेरी ओर देखते हुए पूछा-“क्या आप मेरे दोस्त दीपक की कहानी लिखेंगे ?“

“दीपक कौन था और उसकी क्या कहानी है।“ मैंने उससे पूछा। मेरी दिलचस्पी उसमें बढ़ती जा रही थी।

उसने कहा-“बड़ी दर्द भरी कहानी है उसकी, चलिए साहब कहीं बैठकर सुनाते हैं।

मैंने घड़ी पर नजर डाली। अभी सात बजे थे। मेरी टेªन साढ़े नौ बजे की थी। अभी मेरे पास दो ढाई घन्टे का समय था। इसलिए मैंने उससे कहा-ठीक है चलो कहीं बैठकर चाय पीते हैं और तुम्हारे दोस्त की कहानी सुनते हैं।“

उसने एक रेस्टोरेन्ट पर पहुँचकर आटो खड़ा कर दिया। हम दोनों एक तरफ एकान्त में पड़ी बैंच पर जाकर बैठ गए। चाय पीने के बाद मैंने उससे पूछा-“तुम्हारा क्या नाम है ?“

“मेरा नाम शंकर है साहब।“ वह बोला। फिर शंकर ने अपने दोस्त दीपक की कहानी सुनाना शुरु की।

आज से दस साल पहले शंकर और दीपक बी.ए. में साथ-साथ पढ़ते थे। दोनों गहरे दोस्त थे तथा एक-दूसरे से कोई बात नहीं छिपाते थे।

दीपक के पिताजी शहर के जाने-माने व्यवसायी थे। बीच शहर में उनकी विशाल कोठी थी। दीपक अपने माता-पिता का बहुत लाड़ला था। और जीवन की सारी सुख-सुविधाएं उसके पास थीं। शंकर सामान्य परिवार का था। मगर इससे उनकी दोस्ती में कभी कोई अन्तर नहीं आया। कक्षा छः से ही दोनों साथ-साथ पढ़े थे।

बी.ए. क्लास में एडमिशन लिए हम लोगों को अभी पन्द्रह-बीस दिन ही हुए थे। अभी क्लासें पूरी तरह शुरु नहीं हुई थीं इसलिए हम लोग कॉलेज में पूरे दिन मटरगश्ती करते। क्लास में लड़के-लड़कियाँ दोनों थे। एक दिन हमारे क्लास में एक लड़की ने एडमीशन लिया। वह बला की खूबसूरत थी और उसका नाम था हिना। लम्बी, छरहरा वदन, गोरा रंग, आकर्षक नयन नक्श और बाॅवकट बाल कुल मिलाकर वह सौन्दर्य की सजीव प्रतिमा थी। जब वह बातें करती तो ऐसा मालूम पड़ता मानो फूल झर रहे हों। कुछ ही दिनांे में हम लोगों की उससे दोस्ती हो गई।

एक दिन कालेज में आयोजित कल्चरल प्रोग्राम में जब हिना ने अपना एक गीत प्रस्तुत किया तो सब लोग वाह-वाह कर उठे उसके संगीत में मानो जादू था। दीपक तो उसका दीवाना हो गया और उसे दिल दे बैठा।

दीपक सुन्दर था, अमीर था और शाहखर्च भी इसलिए हिना भी उसके करीब आती चली गई दोनों के बीच में प्यार की सरगम बजने लगी। अब दीपक और हिना घन्टों एक दूसरे के साथ रहते। साथ-साथ घूमते, पिक्चर देखने जाते और कभी-कभी होटल में खाना भी साथ-साथ खाते। मुलाकातों का यह सिलसिला कब प्यार में बदल गया दोनों को पता ही नहीं चला। अब दोनों प्यार की मजबूत डोर में बंध चुके थे। अब दीपक बहुत सारी बातें शंकर से भी छुपाने लगा।

कहते हैं कि इश्क और मुश्क छिपाए नहीं छिपते। धीरे-धीरे दीपक और हिना के प्यार की चर्चा पूरे कालेज में होने लगी। पता नहीं कैसे इसकी उड़ती-उड़ती भनक दीपक के पिता जी तक पहुँच गई। एक दिन उन्होंने दीपक को बैठाकर इस बारे में बात की। दीपक ने उन्हें अपने और हिना के बारे में सारी बातें सच-सच बतला दीं। उसने कहा-“पापा मैं हिना से बहुत प्यार करता हूँ और उससे शादी करना चाहता हूँ।“

दीपक अपने माता-पिता का इकलौता बेटा था। दोनों उससे बहुत प्यार करते थे। दीपक की खुशी के लिए वे उसकी शादी हिना के साथ करने के लिए तैयार हो गए। उन्होंने दीपक से कहा-“ठीक है अगले रविवार को हिना के पिता को शादी के बारे में बात करने के लिए बुला लो। उसके बाद मैं और तुम्हारी माँ हिना से मिलेंगे, यदि तुम्हारी माँ को हिना पसन्द आयेगी तो हम लोग तुम्हारी शादी उसके साथ कर देंगे।“

यह सुनकर दीपक की खुशी की कोई सीमा नहीं थी। उसने कालेज जाकर यह बात हिना को बताई। वह भी खुशी से फूली नहीं समा रही थी। अब दोनों का प्यार और गहरा हो गया था।

अगले रविवार को हिना के पापा उसकी शादी का प्रस्ताव लेकर दीपक के घर आए। दीपक के पापा हिना के पापा को देखकर चौंक गए। वे हिना के पापा को अच्छी तरह जानते थे। दीपक की फर्म के पास ही हिना के पापा की टेलरिंग की दुकान थी। वे शहर के अच्छे टेलरों में शुमार थे और शहर के जाने-माने लोगों में उनका उठना-बैठना था। मगर कुछ साल पहले उनकी पत्नी किसी रईसजादे के साथ भाग गई थी। काफी दिनों तक किसी का कोई अता-पता नहीं चला बाद में सुनने में आया कि दोनों ने शादी कर ली और वे बम्बई मे रहने लगे।

इससे हिना के पिता की बड़ी बदनामी हुई थी। कई महीनों तक वे घर से नहीं निकले। लोग उनसे कन्नी काटने लगे। उनकी दुकान पर भी ग्राहकों का आना काफी कम हो गया था।

काफी देर तक दीपक के पिता अनिश्चय की स्थिति में खड़े रहे फिर दीपक की खातिर उन्होंने हिना के पापा को ड्राइंग रूम में बैठाया और नौकर से उनके लिए चाय और नाश्ता लाने के लिए कहा। नाश्ते के दौरान हिना के पिता ने दीपक के पिता को अपने आने का प्रयोजन बताया।

दीपक के पिता ने कहा दीपक ने हमें आपकी पुत्री के बारे में सब कुछ बता दिया है। हम आपके प्रस्ताव पर विचार कर शीघ्र आपको सूचित करेंगे।

हिना के पिता संतुष्ट होकर वापस लौट गए। मगर उधर दीपक के पिता के मन में विचारों का झंझावत चल रहा था। वे अपने इकलौते बेटे की शादी ऐसी लड़की से नहीं करना चाहते थे जिसकी माँ ने अपने पति को छोड़कर अपने प्रेमी के साथ घर बसा लिया था। दीपक की माँ को जब उन्होंने यह बात बताई तो वे भी असमंजस में पड़ गईं।

दीपक के पिता की शहर में बड़ी प्रतिष्ठा थी और उनके पास धन-दौलत की कोई कमी नहीं थी। दीपक अगर किसी गरीब संस्कारी लड़की से शादी का प्रस्ताव रखता तो शायद उन्हें कोई आपत्ति नहीं होती, परन्तु दीपक की शादी हिना से करके अपने परिवार की प्रतिष्ठा को धूल में नहीं मिलाना चाहते थे।

माता-पिता दोनों ने दीपक को समझाने का हर सम्भव प्रयास किया मगर दीपक पर तो हिना के प्यार का भूत सवार था। इसलिए उस पर उन दोनों के समझाने-बुझाने का कोई असर नहीं हुआ। वह किसी भी कीमत पर हिना को खोना नहीं चाहता था। इसलिए एक दिन वह घर से ढेर सारा रुपया लेकर हिना के साथ वहां से बहुत दूर बम्बई चला गया।

बम्बई जाकर उसने हिना के साथ मन्दिर में शादी करली और एक फ्लैट किराए पर लेकर रहने लगा। दीपक पर ढेर सारे रुपए थे इसलिए एक-दो महीने खूब मौज मस्ती में बीते मगर लाया हुआ रुपया कब तक चलता। दो-तीन महीने बाद ही दोनों के सामने रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई।

दीपक ने नौकरी की तलाश करना शुरू की मगर बम्बई जैसे शहर में नौकरी मिलना बहुत टेढ़ी खीर थी। दीपक रोज सुबह को नौकरी की तलाश में घर से निकलता और शाम को हताश होकर वापस लौट आता। धीरे-धीरे दो महीने और गुजर गए। अब घर का खर्चा कहां से चले। यह समस्या मुँह बाए खड़ी थी। फ्लैट का किराया देने के भी पैसे नहीं थे। थक-हार कर दीपक ने एक राइस मिल में ट्रक-ड्राइवर की नौकर कर ली। लाड़-प्यार और विलासिता के बीच पला-बढ़ा दीपक हिना के प्यार में ट्रक ड्राइवर बन गया और किसी तरह घर-गृहस्थी की गाड़ी चलने लगी। आर्थिक कठिनाई और अभावों में उनका प्यार और गहरा हो गया था और दोनों बड़े खुश रहते।

कुछ महीने इसी प्रकार बीत गए। दीपक अपना काम बड़ी लगन और ईमानदारी से करता था इसलिए राइस मिल के मालिक उससे बड़े खुश थे।

कुछ दिनों बाद फ्लैट के मालिक ने दीपक से फ्लैट खाली करने को कहा जिससे दीपक बड़ा परेशान रहने लगा। एक दिन बातों ही बातों में दीपक ने अपनी परेशानी अपने मालिक को बताई। कुछ सोचने के बाद मालिक ने कहा-“तुम चाहो तो तुम अपनी पत्नी के साथ मेरी कोठी में बने सर्वेन्ट क्वार्टर में रह सकते हो।“ यह सुनकर दीपक बड़ा खुश हुआ। उसने मालिक को धन्यवाद दिया और कुछ दिनों के बाद वह हिना के साथ मालिक की कोठी में बने सर्वेन्ट क्वार्टर में रहने लगा। दोनों बड़े खुश थे।

मालिक क्वार्टर का किराया नहीं लेते थे इसलिए दीपक उनके घर के छोटे-मोटे काम कर देता। मिल जाने से पहले वह मालिक की कार से उनके बच्चों को स्कूल छोड़ आता। मालिक को कहीं समय-असमय कार से जाना होता तो वे दीपक को बुला लेते और उसे अपने साथ ले जाते।

समय का पंछी पंख लगाकर उड़ता जा रहा था। दीपक को कोठी में रहते हुए तीन-चार महीने बीत गये थे।

एक दिन मालिक को सुबह कहीं जल्दी जाना था। जब मोबाइल पर कई बार काल करने के बाद भी दीपक ने कॉल रिसीव नहीं की तो मालिक खुद उसे बुलाने उसके क्वार्टर पर पहुंच गए। दीपक रात काफी देर से मिल से लौटा था, इसलिए वह सो रहा था। हिना ने उठकर दरवाजा खोला।

दरवाजे पर मालिक को देखकर हिना सकपका गई। उधर हिना की वेपनाह सुन्दरता को देखकर मालिक अपनी सुध-बुध खो बैठे थे। वे अपलक उसे निहारे जा रहे थे। तभी हिना ने मालिक से पूछा-“क्या दीपक को कहीं अपने साथ ले जाना है साहब ?“

“हां-हां मुझे एक जरूरी काम से जाना है। दीपक से कहना जल्दी तैयार होकर आ जाए।“ यह कहकर मालिक चले गए।

दीपक को यह बात बताकर हिना अपने घर के कामों में लग गई।

इस घटना के कुछ दिन बात मालिक ने दीपक के सामने एक प्रस्ताव रखा। उन्होंने कहा कि यदि तुम्हारी पत्नी सुबह शाम मेरे बच्चों की देखभाल कर दिया करे तो इसके एवज में मैं तुम्हें पाँच हजार रुपए देता रहूँगा। इससे तुम्हें भी अपनी घर-गृहस्थी चलाने में मदद मिलेगी और मैं भी बच्चों की तरफ से निश्चिंत हो जाऊँगा।

दीपक को मिल में साथ काम करने वाले लोगों से मालूम हुआ था कि तीन-चार साल पहले मालिक की पत्नी का एक कार एक्सीडेन्ट में निधन हो गया था। उनके दो छोटे-छोटे बच्चे थे। बड़ा सातवीं क्लास में और छोटा पाँचवीं क्लास में। मालिक को चालीस साल की उम्र मंे ही यह गहरा सदमा लगा था जिससे वे अभी भी पूरी तरह उवर नहीं पाए थे।

दीपक को मालिक का यह प्रस्ताव ठीक लगा इसलिए उसने खुशी-खुशी उसे स्वीकार कर लिया। उसने सोचा कि हिना पूरे दिन सर्वेन्ट क्वार्टर मंे अकेले पड़े-पड़े बोर हो जाती है उसे खाली समय में मालिक के बच्चों की कम्पनी मिल जायेगी तो वह भी खुश रहेगी।

अब हिना का ज्यादातर समय कोठी में बीतने लगा। बच्चे जल्दी ही उससे घुलमिल गये। हिना का चेहरा हर समय खिला-खिला सा रहता जिसे देखकर दीपक को बड़ा सुकून मिलता। दोनों अपनी इस छोटी दुनिया में बड़े खुश थे। इसी प्रकार काफी समय बीत गया।

मालिक ने दीपक की पगार बढ़ा दी थी और वे उसे ट्रक लेकर लम्बी-लम्बी ट्रिप पर भेजने लगे। अक्सर उसे आसाम की ट्रिप पर भेजते जहां से वापस लौटने में कम से कम एक सप्ताह लग जाता। उधर हिना पर मालिक की मेहरबानी कुछ अधिक ही बढ़ती जा रही थी। दीपक जब भी ट्रिप से वापस लौटता हर बार वह हिना के शरीर पर कोई नहीं साड़ी या गहना पाता। दीपक ने कई बार इसके बारे में हिना से पूछने की कोशिश की मगर वह बड़ी खूबसूरती सेे बात को टाल जाती। धीरे-धीरे यह चीजें दीपक को खटकने लगी, मगर अपने प्रति हिना के अगाध प्रेम को देखकर वह कभी इस बारे में हिना से साफ-साफ पूछने का साहस नहीं जुटा पाया।

एक रात दीपक कई दिन बाद ट्रिप से वापस लौट कर आया। साढ़े ग्यारह बज रहे थे। हिना को सर्वेन्ट क्वार्टर मंे न पाकर वह कोठी में चला गया। हिना के वहां काम करने के कारण दीपक के कोठी में आने-जाने पर कोई रोक-टोक नहीं थी।

अन्दर जाकर दीपक ने देखा कि दोनों बच्चे अपने कमरे में सो रहे थे मगर वहां हिना नहीं थी। वह सोचने लगा कि हो सकता है बच्चों को सुलाने के बाद हिना क्वार्टर के लिए चली गई हो। वह लौटने लगा तभी मालिक के बैडरूम से हिना की खनकती हुई हंसी उसे सुनाई दी। उसे अपने कानों पर विश्वास नहीं हुआ। उसने देखा कि मालिक के बैडरूम का दरवाजा भिड़ा हुआ था अन्दर से बन्द नहीं था। उसने धीरे से दरवाजा खिसका कर अन्दर झांककर देखा। अन्दर का दृश्य देखकर वह सन्न रह गया। बैड पर मालिक और हिना लेटे हुए थे और हंस-हंस कर बातें कर रहे थे।

दीपक के तन-बदन में आग लग गई थी। उसकी हालत घायल नाग जैसी थी। हिना की बेवफाई ने उसके सपनों के महल को चकनाचूर कर दिया था। बहुत सोच-विचार करने के बाद वह चुपचाप क्वार्टर पर लौट आया और लेट गया। एक डेढ़ घन्टा बाद हिना भी क्वार्टर पर आ गई थी। दीपक ने हिना को यह बात नहीं बताई कि उसने उसे मालिक के साथ बैड पर देख लिया था।

हिना की बेवफाई से दीपक बिल्कुल टूट चुका था, उसे समझ मंे ही नहीं आ रहा था कि वह क्या करे कहां जाए। अपने पापा की कही यह बात रह-रह कर याद आती बेटा माता-पिता के संस्कारों का प्रभाव उनकी संतान पर जरूर पड़ता है। इसलिए मेरी बात मान और हिना से शादी करने की जिद छोड़ दे।“ वह जब भी अपने मम्मी-पापा की बातों को याद करता उसके कलेजे में एक हूक सी उठती।

इसी बीच एक दिन सुबह-सुबह मालिक ने दीपक को बुलाकर कहा-“एक घन्टे बाद मैं तुम्हारे साथ बम्बई से बीस किलोमीटर दूर स्थित देवी माँ के मन्दिर जाऊँगा। अगर तुम्हें कोई आपत्ति नहीं हो तो हिना को भी साथ लेते चलें।“

कुछ देर सोचने के बाद दीपक बोला-“इसमें मुझे क्या आपत्ति हो सकती है। हिना साथ चलेगी तो मुझे अच्छा लगेगा। मैं और हिना भी देवी माँ के दर्शन कर लेंगे।“

कुछ देर बाद वह कार लेकर चल दिया। हिना मालिक के साथ पीछे की सीट पर बैठी थी। दोनों आपस में बातें कर रहे थे। दीपक का चेहरा बिल्कुल भावहीन और सपाट था। उसके मन में दोनों से बदला लेने की शायद कोई भयानक योजना चल रही थी।

बम्बई से बाहर निकलते ही उसने कार की स्पीड बढ़ा दी। वह एक सौ बीस किलोमीटर की रफ्तार से कार चला रहा था। अचानक दीपक ने पूरी ताकत से कार के पावर ब्रेक लगा दिए और कार से बाहर कूद गया। इससे पहले कि ट्रक का ड्राइवर कुछ समझ पाता तब तक ट्रक कार पर चढ़ चुका था।

कार पूरी तरह से कुचल गई थी। मालिक और हिना की लाशों को कार की बाॅडी काटकर कई घन्टे की मशक्कत के बाद निकाला जा सका था। घटनास्थल पर ही दीपक पड़ा हुआ था। उसके एक हाथ और एक पैर में फ्रैक्चर हो गया था मगर उसे इस बात का सुकून था कि उसने हिना से उसकी बेवफाई का बदला ले लिया था।

बम्बई पुलिस ने इसे एक्सीडेंट का केस मानकर दोनों डेड बॉडी पोस्टमार्टम के लिए भेज दी थीं और दीपक को इलाज के लिए सरकारी अस्पताल में भर्ती करा दिया था।

यह कहकर शंकर चुप हो गया था। मैंने गहरी श्वांस ली। दीपक की कहानी सुनकर मन का पोर-पोर गहरी वेदना से भर उठा था।

फिर अचानक मेरे मन में एक सवाल बिजली की भाँति कौंधा और मैंने शंकर की ओर देखते हुए पूछा-“मगर तुम दीपक के बारे में यह सब बातें इतनी अच्छी तरह से कैसे जानते हो ?“

कुछ देर तक वह चुप रहा फिर वह बोला-“वह अभागा दीपक मैं ही हूँ साहब।“

“क्या ?“ मैंने हैरत से उसकी ओर देखते हुए कहा।

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