इरफ़ान ऋषि का अड्डा - उपन्यास
Prabodh Kumar Govil
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
- यार सुन, आज आज रुक जा।
- पर क्यों..?
- मैं कह रहा हूं न कल तेरा काम आधा रह जायेगा।
- वो तो वैसे भी आधा ही रह जायेगा, अगर आज आधा निपटा लेंगे।
- अरे यार, मेरी बात समझ। आज करेंगे तो आज और कल, दो दिन में पूरा होगा। पर आज रहने दे, आराम कर ले, फ़िर भी कल पूरा हो जायेगा।
- यार तू भी जाने क्या तमाशा करवा रहा है, अब चाहे करो या मत करो, वो साला देवा तो पूरा दो दिन का किराया ही लेगा।
- लेने दे। दे देंगे। एक दिन का तेल तो बचेगा। ... और तेल ही क्यों, पसीना भी तो बचेगा।
आर्यन हंसा। फ़िर लापरवाही से बोला - जवानी में पसीना बचाएगा तो क्या बुढ़ापे में बहायेगा? ले, छोड़ दिया। अब क्या करेंगे बैठे- बैठे?
कह कर करण ने स्टार्ट खड़ा ट्रैक्टर बंद कर दिया और झटके से कूद कर नीचे उतर गया।
आर्यन उसी तरह मिट्टी में उकडूं बैठा अंगुली से ज़मीन पर कुछ लिख रहा था।
वह भी उठ खड़ा हुआ और दोनों पास ही बह रही नहर के समीप लगे हैंडपंप पर नहाने चल दिए।
गमछे को अंगुली में लपेट कर उससे कान खुजाता हुआ आर्यन करण को धीरे - धीरे बोल कर समझाने लगा कि उसने आज काम क्यों रुकवा दिया।
करण उसकी बात सुनते हुए आंखों को ऐसे मिचमिचा रहा था जैसे नशे में हो।
असल में नज़दीक की बस्ती में उन दोनों के दोस्त शाहरुख ने एक बड़ा सा प्लॉट खरीदा था। प्लॉट बरसों से खाली पड़ा होने के कारण पूरी बस्ती के लोग वहां कचरा डालते आ रहे थे, जिससे वहां गंदगी का अंबार सा लगा हुआ था।
- यार सुन, आज आज रुक जा। - पर क्यों..? - मैं कह रहा हूं न कल तेरा काम आधा रह जायेगा। - वो तो वैसे भी आधा ही रह जायेगा, अगर आज आधा निपटा लेंगे। - अरे यार, ...और पढ़ेबात समझ। आज करेंगे तो आज और कल, दो दिन में पूरा होगा। पर आज रहने दे, आराम कर ले, फ़िर भी कल पूरा हो जायेगा। - यार तू भी जाने क्या तमाशा करवा रहा है, अब चाहे करो या मत करो, वो साला देवा तो पूरा दो दिन का किराया ही लेगा। - लेने दे। दे देंगे। एक दिन
- अरी मारा क्यों उसे? छोटू की मां की सहेली ने तो पूछ भी लिया, बाकी ये सवाल तो सभी के मन में था। ऐसा क्या हुआ जो अचानक छोटू की मां ने उसके गाल पर ऐसा करारा झापड़ ...और पढ़ेकर दिया? बेचारा चुपचाप बैठा खेल ही तो रहा था और वो ही तो बुला कर लाया था सबको कचरे की मिल्कियत में से माल छांटने को। सब छोटू की मां की तरफ़ देखते रह गए पर उसने किसी की तरफ़ न देखा। बस, अपने साथ चल रही अपनी सहेली के कान के पास मुंह ले जाकर धीरे से फुसफुसाई
करण के पिता अपने सारे आश्चर्य के बावजूद ये चाहते थे कि लड़की भीतर आए, बैठे, बताए कि उसका आना क्यों हुआ, वो करण को कैसे जानती है, उससे क्या काम है आदि - आदि। लेकिन ऐसा कुछ नहीं ...और पढ़ेक्योंकि वो देहरी से नीचे उतर कर उन मोहतरमा की अगवानी कर पाते उससे पहले ही भीतर से उछलता- कूदता हुआ एक छोटा लड़का आया और उसने लड़की के कान के पास मुंह ले जाकर न जाने क्या कहा कि लड़की ने अपने ड्राइवर को गाड़ी वापस लौटा ले चलने का आदेश दिया और गाड़ी घूमने लगी। करण के पिता
आर्यन और करण दोनों उसकी बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे। कुछ युवक और भी थे। लेकिन उनका ध्यान सुनने पर नहीं था। वह बैठे भी कुछ दूरी पर थे। शाहरुख भी आया था लेकिन वो कुछ ही ...और पढ़ेबाद वापस लौट गया था। आर्यन बीच - बीच में कोई सवाल भी कर लेता था किंतु करण उबासी लेता हुआ एक तरह से उसे ये जता देता था कि उसकी दिलचस्पी इस बात में बिल्कुल भी नहीं है। लेकिन इससे उसकी रुचि ज़रा भी कम नहीं होती थी और वो उसी तरह चाव से अपनी बात कहे जा रहा
करण और आर्यन हक्के- बक्के रह गए। वैसे तो नशा ज़्यादा गहरा हुआ ही नहीं था पर जितना भी हुआ था वो उतर गया। उन्हें पछतावा सा हो रहा था कि वो क्या समझे थे और यहां है क्या? ...और पढ़ेमें उनके अलावा वो सभी लड़के गूंगे और बहरे थे, जो न तो कुछ बोल सकते थे और न सुन सकते थे। उन्हें समाज कल्याण विभाग के एक ऐसे छात्रावास से लाया गया था जहां उन्हें अब तक सरकारी खर्च पर निशुल्क रखा जाता था। इन बच्चों का सारा खर्च सरकारी कोश से मिलता था लेकिन केवल उनकी आयु अठारह
शहर की शानदार मॉल। एक से एक चमकती- दमकती दुकानें। गहमा - गहमी से लबरेज़ बाज़ार। युवाओं के खिलते सूर्यमुखी से चेहरे। करण और आर्यन को यही काम दिया गया था कि वो अड्डे के लड़कों को अपने साथ ...और पढ़ेजाकर कुछ कपड़े, जूते और दूसरा ज़रूरी सामान दिलवा लाएं। लड़के ऐसे नहीं थे जिनकी कोई खास पसंद - नापसंद हो। उन्हें तो ज़िंदगी ने जब - जब जो- जो जैसा- जैसा दिया था, वो उन्होंने खुले दिल से अपनाया था। लेकिन अब यहां कोई विवशता नहीं थी। अड्डे के स्वामी ने कहा था कि हर एक को एक -
रात को घर पर रोटी खाने के बाद आर्यन करण से मिलने पैदल ही निकल पड़ा। दोपहर को अचानक जीप- चोरी की घटना के बाद जिस तरह करण अफरा - तफरी में निकल गया था उससे आर्यन अकेला पड़ ...और पढ़ेथा। उसे चिंता थी कि अड्डे के इन बेजुबान लड़कों को सही - सलामत स्वामी जी के सामने पहुंचा सके। आराम से ये सब कर देने और स्वामी जी से दो- चार मिनट बात कर लेने के बाद उसे करण का ख्याल आया था। लेकिन उसने फ़ोन करने की जगह उसके घर ही जाने का सोचा था। साथ ही उसे
पूरा हॉल जगमगा रहा था। उसे हर तरफ़ से सजाया गया था। अभी वहां ज़्यादा लोग नहीं थे लेकिन कहा जा रहा था कि कुछ घंटों के बाद ये हॉल खचाखच भरा हुआ रहने वाला था क्योंकि वहां एक ...और पढ़ेसमारोह होने वाला था। उसी की तैयारियां जारी थीं। उससे कुछ दूरी पर एक छोटे कमरे में भी कुछ चहल- पहल थी। समारोह में शिरकत करने के लिए जो बड़े- बड़े नेता राजधानी से आने वाले थे वही अपने कुछ भरोसे मंद कार्यकर्ताओं के साथ पहले एक गुप्त बैठक यहां करने वाले थे। वहां का केयर - टेकर ज़ोर- ज़ोर
अब अगर कोई गुस्से से किसी को पीटे और मार खाने वाला हंसता जाए तो पीटने वाले को और गुस्सा तथा देखने वालों को और हंसी आयेगी ही न! इसी तरह कक्षा में शाहरुख को लड़के पहचानने लगे। फिर ...और पढ़ेदिन बाद लड़कों को ये भी पता चला कि शाहरुख केवल दिखता छोटा है पर वो उम्र में उन सभी क्लास के साथियों से दो - तीन साल बड़ा है। मास्टर के जाने के बाद लड़के शाहरुख को घेर लेते और उससे तरह- तरह के सवाल पूछते, जैसे - क्या वो कई साल फेल हो गया, पीछे कैसे रह गया?
आर्यन जब करण से मिलने हॉस्पिटल में आया तब एक डॉक्टर और नर्स उसके पास ही खड़े थे। आर्यन एक पल के लिए ठिठका, उसने सोचा कि कहीं कोई गंभीर परेशानी तो नहीं है, लेकिन तुरंत ही उसे पता ...और पढ़ेकि अब से कुछ ही देर बाद करण को यहां से डिस्चार्ज किया जाने वाला है क्योंकि वह अब पूरी तरह ठीक हो चुका था। उसके पैर की पट्टी भी हटा दी गई थी और अब मात्र एक छोटे से टेप से उसके ठीक होते घाव को ढका गया था। क्योंकि ये मामला अपराध और पुलिस से जुड़ा हुआ था