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सौगन्ध - उपन्यास
Saroj Verma
द्वारा
हिंदी क्लासिक कहानियां
रात्रि का दूसरा पहर,आकाश में तारों का समूह अपने धवल प्रकाश से धरती को प्रकाशित कर रहा है,चन्द्रमा की अठखेलियाँ अपनी चाँदनी से निरन्तर संचालित है,चन्द्रमा बादलों में कभी छुपता है तो कभी निकलता है एवं कभी किसी वृक्ष की ओट में छिप जाता है,वहीं एक वृक्ष के तले वसुन्धरा अपने प्रेमी देवनारायण की गोद में अपना सिर रखकर उससे वार्तालाप कर रही है,वो उससे कहती है.... देव!मैं सदैव सोचा करती थी कि मैं कभी किसी से प्रेम नहीं करूँगीं,मेरे पिताश्री जिससे भी मेरा विवाह करना चाहेगें तो मैं उसी से विवाह कर लूँगी,किन्तु अब मुझे भय लगता है कि
रात्रि का दूसरा पहर,आकाश में तारों का समूह अपने धवल प्रकाश से धरती को प्रकाशित कर रहा है,चन्द्रमा की अठखेलियाँ अपनी चाँदनी से निरन्तर संचालित है,चन्द्रमा बादलों में कभी छुपता है तो कभी निकलता है एवं कभी किसी वृक्ष ...और पढ़ेओट में छिप जाता है,वहीं एक वृक्ष के तले वसुन्धरा अपने प्रेमी देवनारायण की गोद में अपना सिर रखकर उससे वार्तालाप कर रही है,वो उससे कहती है.... देव!मैं सदैव सोचा करती थी कि मैं कभी किसी से प्रेम नहीं करूँगीं,मेरे पिताश्री जिससे भी मेरा विवाह करना चाहेगें तो मैं उसी से विवाह कर लूँगी,किन्तु अब मुझे भय लगता है कि
समय बीत रहा था और संग संग वसुन्धरा की प्रतीक्षा भी,उसे अभी भी विश्वास था कि कदाचित देवनारायण का हृदयपरिवर्तन हो जाएं और वो उसके पास लौट आएं,वसुन्धरा कभी अश्रु बहाती तो कभी विचलित हो उठती,ज्यों ज्यों उसके गर्भ ...और पढ़ेशिशु का आकार बड़ा हो रहा था त्यों त्यों उसकी चिन्ता बढ़ती जाती,वो कभी कभी अपने जीवन से निराश भी हो उठती थी,किन्तु जब शिशु उसके गर्भ में भाँती भाँति की गतियाँ करता तो वो प्रसन्नता से रो पड़ती,वो सोचती यदि इस समय देवनारायण उसके पास होता तो वो शिशु की गतिविधियों के विषय मेँ उससे चर्चा करती,वो भी कितना
नीलेन्द्र के तलवार निकालते ही वीरबहूटी ने अपने सैनिकों को आदेश दिया कि वें शीघ्रता से नीलेन्द्र को बंदी बना लें,सैनिकों ने वीरबहूटी के आदेश पर नीलेन्द्र को बंदी बना लिया और उसे बंदीगृह में डाल दिया,इस बात से ...और पढ़ेकी क्रोध की सीमा का पार ना था,उसने मन में प्रण कर लिया था कि मैं अपने अपमान का प्रतिशोध लेकर रहूँगा,वो बंदीगृह में यही विचार बना रहा था और इधर वीरबहूटी ने अपनी पुत्री वसुन्धरा से ये कह दिया कि तुम्हारा पति अत्यधिक लालची प्रवृत्ति का है एवं उसने इस राज्य का उत्तराधिकारी बनने हेतु मेरी हत्या करने का
साँझ हो चुकी थी,अँधेरा गहराने लगा था,झोपड़ी के भीतर शम्भू की पत्नी माया अपने पुत्र लाभशंकर की प्रतीक्षा कर रही थीं,उसने शम्भू से लाभशंकर के विषय में पूछते हुए कहा.... ए..जी!शंकर तुमसे भी कुछ कह कर नहीं गया कि ...और पढ़ेजा रहा है? मुझसे तो कुछ भी नहीं बताकर गया,इतनी क्यों विचलित हुई जाती हो पगली?अभी आ जाएगा?जाओ...बाहर जाकर उसके मामा देवव्रत से क्यों नहीं पूछती कि उसका लाड़ला भान्जा कहाँ गया है?शम्भू बोला।। हाँ!उसे देवव्रत भ्राता ने ही बिगाड़ रखा है,मैं उन्हीं से जाकर पूछती हूँ,माया बोली।। और माया झोपड़ी से बाहर आई तो उसने देखा कि देवव्रत उदास
मनोज्ञा ने भी जैसे ही लाभशंकर को देखा तो बोल पड़ी.... तुम वही हो ना!जिसने उस मृग को मूर्छित कर दिया था, जी!वो तो भूलवश हुआ था मुझसे,मैं तो केवल लक्ष्य साधकर ये ज्ञात करना चाहता था कि मैं ...और पढ़ेयोग्य हूँ या नहीं,लाभशंकर बोला।। मुझे तुम पर विश्वास नहीं है,मनोज्ञा बोली।। पुत्री मनोज्ञा!तुम्हें इसे जानने में कोई भूल हुई है,देवव्रत बोला।। अच्छा!तो आपका नाम मनोज्ञा है,लाभशंकर बोला।। नहीं!रक्त पीने वाली पिशाचिनी नाम है मेरा,मनोज्ञा बोली।। पुत्री!इस पर इतना क्रोध मत करो?देवव्रत बोला।। परन्तु!काका श्री!आप इसे नहीं जानते,ये अत्यधिक निर्दयी व्यक्ति है,इसने मृग को मूर्छित किया था,मनोज्ञा बोली।। पुत्री!मैं इसे