Darshinek Drashti book and story is written by बिट्टू श्री दार्शनिक in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Darshinek Drashti is also popular in मनोविज्ञान in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
दार्शनिक दृष्टि - उपन्यास
बिट्टू श्री दार्शनिक
द्वारा
हिंदी मनोविज्ञान
देखा ही है की, हर लड़का कितना भी ज्ञान प्राप्त करके सफलता को प्राप्त नहीं हो पाता। कितनी भी सावधानी बरतने के बाद भी वह सफल नहीं हो पाता। यहां तक की अत्यंत दुष्कर कार्य को अच्छे से संपूर्ण करने के बाद भी उसे उतना सम्मान नहीं मिल पाता।
ऐसा आखिर क्यों होता है!?
कहां समस्या आती है ?!
किसी भी व्यक्ति को अपनी सफ़लता से रोकने में उस व्यक्ति का स्वयं का अभिमानी अथवा क्रोधी स्वभाव उतना महत्व नहीं रखता।
यहां देखा गया है की उस उस लड़के के साथ हो रहा पारिवारिक बर्ताव, उस व्यक्ति पर किया जाने वाला अकारण अविश्वास, यह उस व्यक्ति को स्वयं की गलतियां ढूंढने पर मजबूर करता है। बार बार प्रतिदिन यह क्रिया होते रहने पर, हर परिस्थिती में वह व्यक्ति अपनी गलती ढूंढने लगता है। यह बात उस व्यक्ति का स्वयं पर से विश्वास कम कर देता है।
समाज मे युवाओं पर भरोसे के हालातदेखा ही है की, हर लड़का कितना भी ज्ञान प्राप्त करके सफलता को प्राप्त नहीं हो पाता। कितनी भी सावधानी बरतने के बाद भी वह सफल नहीं हो पाता। यहां तक की अत्यंत ...और पढ़ेकार्य को अच्छे से संपूर्ण करने के बाद भी उसे उतना सम्मान नहीं मिल पाता।ऐसा आखिर क्यों होता है!?कहां समस्या आती है ?!किसी भी व्यक्ति को अपनी सफ़लता से रोकने में उस व्यक्ति का स्वयं का अभिमानी अथवा क्रोधी स्वभाव उतना महत्व नहीं रखता।यहां देखा गया है की उस उस लड़के के साथ हो रहा पारिवारिक बर्ताव, उस व्यक्ति पर
स्त्री शिक्षा कहां तक सही?मित्रो आज के समय में स्त्रियां शिक्षण, नौकरी और धंधे के क्षेत्र में अच्छी - खासी तरक्की कर रही है। अधिकतर स्थानों में पुरुषों से अधिक स्त्रियां कार्यरत है। पिछले कुछ दशकों के मुकाबले यह ...और पढ़ेबात है की स्त्रियां प्रयास करने लगी है, उनका शोषण कम होगा।हालाकी यह भी देखने में आ रहा है की पुरुषों में बेरोजगारी बढ़ती जा रही है और अधिकतर पुरुषों की आय परिवार का स्वतंत्र रूप से पालन पोषण करने लायक नहीं हो पा रही।शिक्षा का सीधा अर्थ है शिक्षण। अर्थात कुछ ऐसा सीखना जो सब के लिए शुभ हो
आज के शिक्षित समाज की यह विचार धारा बढ़ रही है की पढ़ाई पूरी होने के बाद अच्छी आमदनी होने लगे तब जा कर लड़के और लड़की के ब्याह के विषय में सोचा जाता है।वैसे यह आवश्यक भी है ...और पढ़ेविवाह उपरांत जीवन चलाने के लिए धन होना अनिवार्य है। यहां धन की अपेक्षा संसाधन होना अधिक इच्छनीय है। आज के समय में संसाधन प्राप्त करने के लिए भी धन की ही अवश्यकता रहती है। स्त्री से धन संसाधन की अपेक्षा करी नहीं जाती और पुरूष यदि उसके लिए प्रयास करे तो उसके प्रयासों पर किसी कारण कोई विश्वास नहीं
अधिकतर ऐसा होता है की जो भी कार्य आरंभ होता है अथवा किया जाता उसमे कुछ न कुछ समस्या आती है। उस समस्या का कोई न कोई समाधान भी होता है। यह समाधान अधिकतर परिस्थितियों में वास्तविक कार्य रेखा ...और पढ़ेभिन्न अथवा विपरित होता है। ठीक वैसे ही समाधान की खोज और कार्य सरल करने हेतु व्यक्ति को विचार का बदलाव लाना आवश्यक हो जाता है।जब कभी समाज अथवा संगठन अथवा देश अथवा कोई समुदाय में कोई बदलाव आता है अथवा लाया जाता है तो उसके लिए कोई न कोई नियम और मर्यादा सुनिश्चित करी जाती है।किसी भी समुदाय, समाज
हम सब यह जानते हैं कि आज से कुछ दशक पहले स्त्रीयों को बाज़ार जा कर आमदनी करने नही करने दिया जाता था। यह बात को अचानक से स्त्री सशक्तिकरण और स्त्री स्वाभिमान के नाम पर रद्द किया जा ...और पढ़ेहै।यदि वास्तविकता देखे तो उस समय की अधिकतर स्त्रियां गृह उद्योग चलाकर आय करती थी। आज कदाचित ही कहीं किसी गृह में गृह उद्योग चल रहा होगा। हां स्त्रियां अपने परिवार को भावनात्मक सहयोग करने में आगे रहती है तथा अपना हल्का सा भी अपमान सह नहीं पाती।बाज़ार में अक्सर ऐसा होता है की सब अपने धंधे रोजगार के संबंध