Darshinek Drashti - 6 books and stories free download online pdf in Hindi दार्शनिक दृष्टि - भाग -6 - समुद्रमंथन - १ (2) 1.4k 3.7k दोस्तो, आपने समुद्रमंथन वाली पौराणिक कथा तो सुनी ही होगी।जिसमे देवों और दानवों ने मिलकर पर्वत और शेषनाग जैसे बड़े सांप की मदद समुद्र को मथा था जिससे अमृत तथा लक्ष्मीजी की उत्पत्ति हुई थी। उसके साथ ही प्रक्रिया के दौरान उत्पन्न विष को शिवजी ने पिया था और उन्हें निलकंठ कहा गया।दोस्तों यह कथा अक्सर हम सुनने के बाद दिमाग के किसी कोने में दफन कर देते है। क्योंकि यह कथा हमारे काम जरा भी नहीं आती। किंतु यह कथा क्यों बनाई गई, जिसमे इतने सारे किरदारों ने अलग महत्व पूर्ण कार्य करे थे? आखिर इतनी जटिल कहानी क्यों बनाई गई ? और हर बच्चों को अथवा परिवार को अलग अलग माध्यम से क्यों बताई जाती हैं? इन प्रश्नों पर कभी ध्यान ही नहीं दिया जाता।दोस्तों हमारा देश अच्छी संस्कृति का देश हैं। जहां लक्ष्मीवान अथवा श्रीमान केसे बना जाता है यह शिखाया जाता है। हमने पिछले भाग में "श्री" और "लक्ष्मी" का अर्थ वर्णित किया है।दोस्तों आज हमारे देश में तकरीबन हर समाज में तकरीबन हर एक व्यक्ति कहीं न कहीं नौकरी करता है। और हर किसी को यह ज्ञात होता है की नौकर व्यक्ति कभी धनी नहीं होता। क्योंकि किसी भी नौकर के पास स्वतंत्र निर्णय लेने की और उस पर अमल करने की सत्ता नहीं होती। और उसका वेतन भी कम ही रहता है। ऐसे में वह नौकर व्यक्ति के धैर्य, साहस, आत्मविश्वास, आत्मसम्मान, ख्याति आदि दिव्य गुणों का नाश हो जाता है। कम वेतन और अपने परिवार का पोषण न कर पाने के कारण वह व्यक्ति अपने स्नेही जनों को मदद न कर पाने के कारण उनसे भी तिरस्कार पाता है। जिससे नौकर बने व्यक्ति और उसके परिवार का अध: पतन निश्चित हो जाता है।आज अधिकतर समाज में और अधिकतर परिवार में यह मान्यता रहती है की पढ़ाई के बाद एक अच्छी नौकरी करना ही अच्छे जीवन का लक्षण है। और इसी को लोग "अपने पैरों पर खड़े होना" समझते हैं। किंतु वास्तविकता यह है की जो कोई व्यक्ति एक अथवा अन्य रूप से नौकर है वह स्वतंत्र जीवन कभी जी ही नही पाता। वह अपने पैरों पर खड़ा हो ही नहीं सकता। वो हमेशा अपनी नौकरी के आधीन जीवन जीता है।आज समाज में केवल नौकरी के कारण धीरे धीरे हर एक व्यक्ति नौकर बनता गया है। केवल कुछ डिग्री के काग़ज़ ले कर गुलाम बनाने की दौड़ में लग चुका है। जब की उसे स्वयं मालिक बनने का तरीका सिखना चाहिए।समुद्र मंथन में तीन तरह के लोग सामिल थे।१. देवता - अच्छे चरित्र के लोग जो सज्जन होते है किंतु नकारात्मकता के प्रति ईर्ष्या, द्वेष, घृणा आदि भाव रखते है।२. दानव - दुर्जन लोग जो सज्जनों की बुराई करते थकते नहीं।३. त्रिदेव और त्रिदेवी - यह वो लोग है जो आवश्यक वस्तुओं / नियमों / आविष्कार / सुविधाओं के एक साथ निर्माण से ले कर उसके एक साथ निकाल तक का कार्यभार देखते है।समुद्रमंथन करने का वास्तविक कारण था श्री विहीन हो चुके संसार में श्री की पुन:प्राप्ति। यहां भी श्री का वहीं अर्थ रहेगा जो इससे पहले के भाग में कहा गया है।- बिट्टू श्री दार्शनिक --------------------------------------------------------------#दार्शनिक_दृष्टिआप इसके विषय में अपना मत इंस्टाग्राम पर @bittushreedarshanik पर मेसेज कर के अवश्य बता सकते है।हमे इसके अलावा पढ़ने के लिए YourQuote अपलिकेशन में @bittushreedarshanik पर फोलो कर सकते है।यदि आप भी ऐसे कोई मुद्दे के विषय में विवरण चाहते है तो हमे इंस्टाग्राम पर जरूर बता सकते है। ‹ पिछला प्रकरणदार्शनिक दृष्टि - भाग -5 - स्त्री द्वारा बाज़ार में आमदनी › अगला प्रकरणदार्शनिक दृष्टि - भाग -7 - समुद्र मंथन -भाग २ Download Our App अन्य रसप्रद विकल्प हिंदी लघुकथा हिंदी आध्यात्मिक कथा हिंदी फिक्शन कहानी हिंदी प्रेरक कथा हिंदी क्लासिक कहानियां हिंदी बाल कथाएँ हिंदी हास्य कथाएं हिंदी पत्रिका हिंदी कविता हिंदी यात्रा विशेष हिंदी महिला विशेष हिंदी नाटक हिंदी प्रेम कथाएँ हिंदी जासूसी कहानी हिंदी सामाजिक कहानियां हिंदी रोमांचक कहानियाँ हिंदी मानवीय विज्ञान हिंदी मनोविज्ञान हिंदी स्वास्थ्य हिंदी जीवनी हिंदी पकाने की विधि हिंदी पत्र हिंदी डरावनी कहानी हिंदी फिल्म समीक्षा हिंदी पौराणिक कथा हिंदी पुस्तक समीक्षाएं हिंदी थ्रिलर हिंदी कल्पित-विज्ञान हिंदी व्यापार हिंदी खेल हिंदी जानवरों हिंदी ज्योतिष शास्त्र हिंदी विज्ञान हिंदी कुछ भी बिट्टू श्री दार्शनिक फॉलो उपन्यास बिट्टू श्री दार्शनिक द्वारा हिंदी मनोविज्ञान कुल प्रकरण : 8 शेयर करे आपको पसंद आएंगी दार्शनिक दृष्टि - भाग -1 - समाज मे युवाओं पर भरोसे के हालात द्वारा बिट्टू श्री दार्शनिक दार्शनिक दृष्टि - भाग -2 - स्त्री शिक्षा कहां तक सही? द्वारा बिट्टू श्री दार्शनिक दार्शनिक दृष्टि - भाग -3 - ब्याह कब ? आमदनी के बाद या पहले ? द्वारा बिट्टू श्री दार्शनिक दार्शनिक दृष्टि - भाग -4 - विचारधारा द्वारा बिट्टू श्री दार्शनिक दार्शनिक दृष्टि - भाग -5 - स्त्री द्वारा बाज़ार में आमदनी द्वारा बिट्टू श्री दार्शनिक दार्शनिक दृष्टि - भाग -7 - समुद्र मंथन -भाग २ द्वारा बिट्टू श्री दार्शनिक दार्शनिक दृष्टि - भाग -8 - समुद्रमंथन भाग ३ (समुद्रमंथन का अंतिम भाग) द्वारा बिट्टू श्री दार्शनिक NEW REALESED Adventure Stories शशशशश...... धुंध में कोई राज है?? - भाग 3 Mini Fiction Stories प्यार हुआ चुपके से - भाग 6 Kavita Verma Love Stories पागल - भाग 25 कामिनी त्रिवेदी Love Stories द मिस्ड कॉल - 5 vinayak sharma Horror Stories द्रोहकाल जाग उठा शैतान - 35 Jaydeep Jhomte Moral Stories उजाले की ओर –संस्मरण Pranava Bharti Adventure Stories एक गाँव की कहानी दिनेश कुमार कीर Moral Stories हरसिंगार Bharati babbar Fiction Stories अमावस्या में खिला चाँद - 2 Lajpat Rai Garg Love Stories मेरे हमदम मेरे दोस्त - भाग 2 Kripa Dhaani