EXPRESSION book and story is written by ADRIL in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. EXPRESSION is also popular in कविता in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
इज़ाज़त... आज मुझे ये शाम सजाने की इज़ाज़त दे दोदिल-ओ-जान तुम पर लुटानेकी इज़ाज़त दे दोमिले जो दर्द या मिले सुकून - कुबूल है हमेंकभी रिहा ना हो पाए वैसे क़ैद होनेकी इज़ाज़त दे दो कोई ख्वाब सजाने की ...और पढ़ेदे दोअब तो मुझे अपना बनाने की इज़ाज़त दे दोअब भी चुभा करते है तेरे इश्क़ के ज़ख़्मइस वीरान से गुलको खिलाने की इज़ाज़त दे दो कर्ज उतारने की मेरे हमदम हमें इज़ाज़त दे दो वफ़ा का फर्ज निभाने की अब तो इज़ाज़त दे दो लूंटती हुई दुनिया की तमन्नाओ की कसममुकद्दर अपना बनाने की बस आज इज़ाज़त दे दो
नजर.. कैसी नजर है तेरी, की मुझे नजर सी लग गयी, नजर पड़ी जब उस नजर पे, तो नजर मेरी ये भर गयी फिर मेरी नजर, उस नजर को, एक नजर तरस गयीकी किसी और नजर को उस नजर ...और पढ़ेदेखने से डर गयी नजर का कमाल तुम्हारी, एक नजर ही, कर गयी की नजर नजर में बातें सारी नजर में ही बन गयी नजर भरके देखा नजरको तो नज़र नजर से कहे गयी,क्या खूब नजरसे मिली नजर, तेरी नजर कहेर कर गयी नजर से जब नजर हटा दी, तो नजर शिकायत कर गयीनजरसे दूर ना जाने को ये
आखिरी... पहला ये इश्क था मेरा जो आखिरी हो गया,.. देहलीज़ पे अपनी दुल्हन का ख्वाब आखिरी हो गया,.. तेरे नाम का पहला हकदार अब आखिरी हो गया,.. तमाशा ये सरे आम, अब आखिरी हो गया,.. जिसको पा ना ...और पढ़ेउसका खयाल आखिरी हो गया.. उसे भूल जाने का काम आखिरी हो गया.. उसकी रुखसत का जाम आखिरी हो गया मयख़ानेको मेरा सलाम अब आखिरी हो गया,.. ~~~~~~~~~~~ पैगाम दिए थे,.. महेंदीवाले हाथोसे सलाम किए थे यूँ अपना जनाजा उठाए हुए थेबेगाने होकर भी हक़ जताए हुए थे बड़ी ही तमीज़ से उसने पैगाम दिए थे खामोशियोंकी वजह
में नहीं चाहती,... सीता जैसी महान बनकर, में जीना नहीं चाहती फसल की तरह धरती से में पैदा होना नहीं चाहती औरत हू में बेबस नहीं, सिर झुकाना नहीं चाहती कुर्बान होकरराजमहलका, ताज बनना नहीं चाहती ...और पढ़ेबेइंसाफी देखकर में, चूपरहेनानहीं चाहती दिया वचन जो ससुरने में, उसे निभाना नहीं चाहती राजा है तो क्या हुआ में हिस्सेदारी नहीं चाहती अपने पतिसेजुदा होकरकेमै जीना नहीं चाहती किसी और के प्रतिशोध से बंदी होना नहीं चाहती बेवजह में महासंग्राम की वजह बनना नहीं चाहती महल नहीं तो ना सही,जंगल मेकुटिया नहीं चाहती बेघर
इंतकाम,... कसम से इंतकाम का हमें ऐसा सुकून मिले खुदा करे की तुम्हे तुमसा कोई हू-ब-हू मिले जिसे तुम बेपनाह चाहो तुम्हे वो इस तरह मिले जैसे की कोई लाइलाज जानलेवा रोग सा मिले तेरे दिलकेहर ...और पढ़ेनाम सिर्फ उसीकामिले और दर्द तुम्हे उस नाम से बे-इन्तिहा मिले जिनके सपने सजाते रहो तुम रोज तुम्हे वो रात मिले पलक खोलो तो तुम्हे खाख होते सारे जज्बात मिले नाक़ाम ना रहो तूम करने को वो एक ही काम मिले की तुम रुस्वा होकर मर जाओ वैसा तुम्हे नाम मिले और हा, तुम सलीके से