अभिव्यक्ति.. - 12 - रेल-वे स्टेशन. ADRIL द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

अभिव्यक्ति.. - 12 - रेल-वे स्टेशन.

मेरे गांव में बाजार के पास ही एक प्राथमिक स्कूल है... 

उसके बराबर बाजू में ही पुलिस-स्टेशन है... 

वहा से आगे चलो तो एक तालाब 

और उसी सड़क पर चलते जाओ तो थोड़ी आगे जाकर हाई-स्कूल.. 

फिर थोड़े आगे एक शिव मंदिर  

और सड़क ख़तम होते ही रेल-वे स्टेशन..   

 

बात थोड़ी पुरानी है ... समजो किसीकी कहानी है .. 

सुनी किसी और ने थी... पर उसीकी जुबानी है.... 

 

~~~~~~~ 

फैसला...

~~~~~~~ 

 

रोज की तरह वो रेल-वे स्टेशन की और गुजर रहा था 

शिव मंदिर की सीढ़ियों पर - यहाँ वहा देख - वो मुझे खोज रहा था 

जिसने आज तक हर रोज मुझे खिलखिलाते हुए देखा था  

वो आज मेरा नया रूप देख कर बेचैन और गुमसुम हो रहा था 

 

ना वो मुझे छोड़कर जा रहा था और ना ही वो रुकनेका फेंसला कर रहा था 

फिर भी मुझे देख कर लग रहा था - जैसे वो कोई हिसाब कर रहा था  

 

उस रोज मेरा अलग सा रूप देख कर पहले तो वो डर गया था 

पर ना जाने क्यू मेरा हाल देखकर मुझसे बात करने को तरस गया था 

 

मुझे भी उसको  तड़पता देख कर सच कहु बहोत बुरा लग रहा था 

फिर जब दूरसे उसको देखा मेने - तो वो वापस मुझे घूर रहा था 

 

मेरा भी कबसे यहाँ दम घूट रहा था और रोना छूट रहा था 

और तब वो मेरी आवाज की और धीरे धीरे से मुड रहा था 

 

बर्फीली उस रात में कुछ इस तरह अँधेरा बढ़ रहा था

क्या हुआ होगा मेरे साथ ? अपना शक वो मेरी नजरमे पढ़ रहा था 

 

फिर अपनी खुली जीप से नीचे उतरकर वो मेरी तरफ चल रहा था 

पास से मेरा हाल देखकर उसका खौफ और भी ज्यादा बढ़ रहा था 

 

मेरा वो धुंधला चहेरा अब नजदीक से उसे साफ़ नजर आ रहा था

मुझे सुनने की तड़प से खिंचा हुआ वो मेरी और करीब आ रहा था

 

सफ़ेद सलवार में - मेरी सिस्कियों के साथ - मेरा दिल रोए जा रहा था 

और मेरी बिखरी ज़ुल्फोंसे वो मेरी बिखरी जिंदगी की झलक पा रहा था 

 

दुखी क्यों हो ? परेशान क्यों हो ? क्यों संसार से रूठी हुई हो ?

क्यू तनहाइ को गले लगाती हो ? रौशनी से दूर क्यों खो चुकी हो ? 

- वो पूछे जा रहा था  

 

अपना हाथ चहेरे से हटा कर में जवाब देनेका मन बना रही थी 

बहोत रो रही थी, में बहोत सोच रही थी, और परेशान सी लग रही थी 

 

वैसे तो में रोती हुई भी बहारों की फ़िज़ा लग रही थी  

लेकिन उस वक़्त उसे मेरी सूरत मुफ्त में मिली हुई कोई सजा लग रही थी

  

सफ़ेद दुपटा सिरपे डाले हुए में उसे ज़हर लग रही थी   

मगर फिर थोड़ी देर के लिए में उसे अनारकली की मूरत लग रही थी

 

 

**

 

माथा खुजलाता हुआ वो अपने मनमे - कुछ न कुछ सोच रहा था 

कुछ तो बात थी मुझमे - वो मेरी दुनिया में से - कुछ न कुछ खोज रहा था 

 

अब जैसे ही मेरा रोना धोना धीरे धीरे रुक रहा था, ...  

हमारे आसपास का हलका सा सन्नाटा तब उसे चूभ रहा था

   

पर हाँ, अब मेरे बारे में उसके मनमे कोई शक नहीं था 

वहाँ अकेले में मेरे लिए रुकने का अब उसे गम नहीं था

 

फिर अपनी लड़खड़ाती जुबान में मेने उस से एक सवाल किया था 

और तब मेरा ख्याल उसने उसी वक्त अपने जहेन से निकाल दिया था 

 

में पूछे जा रही थी की कभी उसने किसीसे प्यार किया था ? 

या फिर प्यार की दुहाई देते हुए किसीकी याद में एक लम्हा भी जिया था ? 

 

फिर उसने कहा - 

प्रेम, प्रीत, चाहत, को छोड़ो - तुमने इश्क का कोनसा ज़हर पीया था ? 

जब मोहोब्बत ने छोड़ दिया तुमको तो क्या दोस्तों से मिलकर जिया था ?  

 

फिर मेरे कदम उसके कदम से मिलने लगे थे 

दोस्त बन कर जब हम दोनों साथ साथ चलने लगे थे 

 

चलते चलते मेने उसे अपनी पूरी कहानी सुनाई 

पर मुझे पता है की वो उसकी समज में कुछ नहीं आयी 

 

चलते चलते हम रेल-वे स्टेशन तक पहुँच गए थे  

और रेल के इंजिन को आते देख हम ठहेर गए थे  

 

फिर उसने पूछा -  क्या तुम इतना चलके थक गयी हो ?

और इस वजह से यहाँ आकर तुम रुक गयी हो ? 

 

फिर मेने अपना एक हाथ हवा में उठाया 

उस इंजिन की तरफ इशारा करते हुए मेने उसे ये बताया 

 

की कल इसी जगह हिन्दू और मुसलमान के नाम से दो कॉम बंट गयी थी  

जब ठीक दोपहर के बारह बजे में इसी इंजिन के नीचे कट गयी थी 

 

 **

  

मगर अब हाल उसका बेहाल होने लगा था 

अँधेरे में उस जगह ठहरने के उसके फैंसले से दिल उसका रोने लगा था 

 

वो समज गया था की क्यों उस रेल-वे ट्रेक पर मेरे कटने की बात आयी थी  

सुबहके अखबारकी सुर्खियोमे में मेरे कटनेकी खबर तब उसे याद आयी थी