अभिव्यक्ति.. - 3 ADRIL द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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अभिव्यक्ति.. - 3

आखिरी...

पहला ये इश्क था मेरा जो आखिरी हो गया,..
देहलीज़ पे अपनी दुल्हन का ख्वाब आखिरी हो गया,..

तेरे नाम का पहला हकदार अब आखिरी हो गया,..
तमाशा ये सरे आम, अब आखिरी हो गया,..

जिसको पा ना सके उसका खयाल आखिरी हो गया..
उसे भूल जाने का काम आखिरी हो गया..

उसकी रुखसत का जाम आखिरी हो गया
मयख़ानेको मेरा सलाम अब आखिरी हो गया,..

 

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पैगाम दिए थे,..

महेंदीवाले हाथोसे सलाम किए थे
यूँ अपना जनाजा उठाए हुए थे
बेगाने होकर भी हक़ जताए हुए थे
बड़ी ही तमीज़ से उसने पैगाम दिए थे

खामोशियोंकी वजह दबाए हुए थे
निग़ाहोंसे गुफ्त-गु किए जा रहे थे
खुदभी वस्ल की उम्मीदमे बेहाल हुए थे
बड़ी ही तमीज़ से उसने पैगाम दिए थे

महेफिलमे सबसे मिले जा रहे थे
चाहत का आसार दिए जा रहे थे
हिज्र की आरजू में खुद तड़प रहे थे
बड़ी ही तमीज़ से उसने पैगाम दिए थे

हमे दिलके आशियाँमे बसाए हुए थे
तन्हाई मिटाने को मेहरबां हुए थे
निगाहों से अपने पीछे बुलाए हुए थे
बड़ी ही तमीज़ से उसने पैगाम दिए थे

जबीं को सजदे मे झुका यु रहे थे
अश्कोंको अपने गिरा यु रहे थे
हमारे रहेंगे ये कहे जा रहे थे
बड़ी ही तमीज़ से उसने पैगाम दिए थे

हया से इस कदर नहाए हुए थे
निगाहों में फक्र यूँ समाए हुए थे
राज़-दा हो कहेकर कदम छुए जा रहे थे
बड़ी ही तमीज़ से उसने पैगाम दिए थे

आस्था से खुदा हमे बनाए हुए थे
वो लम्हा दुआओ में सजाए हुए थे
मुकद्दर को अपने वो एक सजा बनाकर
बड़ी ही तमीज़ से उसने पैगाम दिए थे


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परियोंकी कहानी,..

इन आंखोमे पानी होता, होठों पे चिंगारी होती
जिंदगी से यारी होती, मोत भी हमको प्यारी होती
इश्क़ मेरा जान पायी होती, मेरे साथ तू आयी होती
खुदा कसम, मेरा जीवन परियों की कहानी होती

शहर मेरे पैरोमे होता, जिसको ठोकर लगायी होती
तेरे दिलका में राजा होता, तू मेरी शहजादी होती,
तेरी बाहोंमे हमने ये जिंदगी बितायी होती
खुदा कसम, मेरा जीवन परियों की कहानी होती

तुम पर जान देने को हर घडी तैयारी होती
तुम पर लूट जाने की आदत आज भी जारी होती
ज़ुलेखा और युसूफ जैसी तेरी मेरी यारी होती
खुदा कसम, मेरा जीवन परियों की कहानी होती

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ज़ख्म,...

एक आहटके इंतज़ार में हर शाम मेरी सजाती हु
नया लिबास पा कर आपसे फिर जिन्दा हो जाती हु
बेफ़िक्र लौटते हो जब तुमतो तनहा फिर हो जाती हु
जिस मकान में रहती हु में उसे बंदीखाना पाती हु

तनहा थी अब और तनहा हु खुदसे ही उलझती हु
खुदसे लड़ती खुद झुलसती खुद ही खुद सुलझती हु
बेपरवाह सी बेफिकर सी बेहिजाब अब रहती हु
तेरे हर तरानो पे अब में नंगे पाँव थिरकती हु

"कोई नहीं हो मेरे तुम" - ये बार बार दोहराती हु
"क्यू मुझसे मिलने आओगे तूम ?" - दिलको ये समझाती हु
"ये कर दोगे ? वो कर दोगे ?" - बहानेसे बुलवाती हु
"एक झलक से दिल भर लुंगी.. " - ख़ुदको यु बहेलाती हु

शोहर सा हक़ जताते हो, जब घरवाली कहलाती हु
दिन ही नहीं रात के हर पहर दिल को यु जलाती हु
आसमान की चाह में तेरी हर रात प्यास बुझाती हु
रात का रिश्ता सुनकर सुबह नया ज़ख्म पा जाती हु