अभिव्यक्ति.. - 1 ADRIL द्वारा कविता में हिंदी पीडीएफ

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अभिव्यक्ति.. - 1

इज़ाज़त...

आज मुझे ये शाम सजाने की इज़ाज़त दे दो
दिल-ओ-जान तुम पर लुटानेकी इज़ाज़त दे दो
मिले जो दर्द या मिले सुकून - कुबूल है हमें
कभी रिहा ना हो पाए वैसे क़ैद होनेकी इज़ाज़त दे दो

कोई ख्वाब सजाने की इज़ाज़त दे दो
अब तो मुझे अपना बनाने की इज़ाज़त दे दो
अब भी चुभा करते है तेरे इश्क़ के ज़ख़्म
इस वीरान से गुलको खिलाने की इज़ाज़त दे दो

कर्ज उतारने की मेरे हमदम हमें इज़ाज़त दे दो
वफ़ा का फर्ज निभाने की अब तो इज़ाज़त दे दो
लूंटती हुई दुनिया की तमन्नाओ की कसम
मुकद्दर अपना बनाने की बस आज इज़ाज़त दे दो

टूटती साँस बचाले अपनी ये इज़ाज़त दे दो
जिस्मसे रूह का रास्ता बना दे ये इज़ाज़त दे दो
बयां करने है जो है दफ़न जज्बात मेरे
अब तो हमें जिन्दा रहने की आखिरी इज़ाज़त दे दो

 

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वक्त नहीं है...

डालकर आदत बेपनाह मोहोब्बत की, अब कहते वो वक्त नहीं है
हरदम मरते थे जिसके लिए, उन अपनों को भी अब वक्त नहीं है

पाल रख्खी है गम की दौलत, मगर रोने को भी वक्त नहीं है
खुशियाँ सारी उधार की है, जो खोने का कोई वक्त नहीं है

इंतज़ारकी आग आंखोमे, और सोने को भी वक्त नहीं है
अंधी दौड़ में भागते रहते, पर थकने का अब वक्त नहीं है

बेरहम क़त्ल हर रिश्तों का करके, उन्हें दफ़नाने का वक्त नहीं है
पल पल मरते इंसानो को, जीने के लिए भी वक्त नहीं है ... !

 

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नहीं हो सकता...

अब मोहोब्बत से इशारा नहीं हो सकता
चाहकी मुराद मै गुजारा नहीं हो सकता
मेरी आवाज़ आवाजोंमें दब जाती है
क्यों तुजे लगता है की तेरे सिवा कोई और सहारा नहीं हो सकता

खुदा का वास्ता दे कर भी इंसान प्यार से जुदा नहीं हो सकता
शम्मा पर जान लुंटा कर भी परवाना कोई खुदा नहीं हो सकता
अब तो ये आलम है की कहे दे तुमको
यकीं नहीं आता की ख़ामोश लफ्ज़ तेरे इश्क की दास्तान नहीं हो सकता

बेजान पथ्थर साँस लेकर भी हम जैसा हूर नहीं हो सकता,
नुमायां है की अब आपके जहाँ में कोई नूर नहीं हो सकता
खुदा ने खुद आ कर दी इम्तिहान इश्क़ की तब भी
खुदा हम जैसा आपके इश्क़ में कभी चूर नहीं हो सकता

ये तय है मेरी जान, की अगर तू मेरे बराबर नहीं हो सकता
तो आज भी तू मेरे प्यार के काबिल नहीं हो सकता
अब तो एलान-ए-वक़्त ही बताएगा ज़माने को की,
तुझ पर तरस खाने के सिवा मेरे प्यार का जिक्र नहीं हो सकता

 

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सजा..

है मोहोब्बत दिलमे फिरभी, जुबानसे कभी कहा नहीं 

निगाह पढनेमे हम है माहिर, शायद उसे पता नहीं 

 

घर जमीं और सब कुछ गायब, खुद का भी तो पता नहीं 

क्यों है वैसा, कोन समझाए, अभी तलक कोई मिला नहीं 

 

कट रही है, कट जाएगी, गम-ए-जिंदगी गिला नहीं 

मिले खुदा तो पूछे उनसे जो चाहा वो क्यों मिला नहीं 

 

जान लुँटा दे आप की तरह, हमने कभी कहा नहीं 

तुमसे अलग जो जीना पड़े तो कहो क्या ये सजा नहीं  

 

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