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मेल - उपन्यास
Jitin Tyagi
द्वारा
हिंदी लघुकथा
आज एक बार फिर उसका मेल आया है। मरहम का रूप धरकर, पर जिस घाव के लिए आया है।, कृति उस घाव के दर्द से कब का निजात पा चुकी है।… पिछले तीन महीनों में ये उसका बारहवाँ मेल आया है।
कृति मेल पढ़कर गुस्से में खुद से ही बात करती है। 'आखिर वो मेल भेजता ही क्यों है? जब उसका हमसे अब कोई सम्बन्ध, हैं ही नहीं है। क्या जताना चाहता है। वो कि, उसको हमारी फिक्र है पर दस साल पहले जब वो हमें छोड़ कर गया था। तब क्यों नहीं दिखाई ये फिक्र… जो आज दिखा रहा है। अब वो अपने हर मेल में माफ़ी मांगता है। उन दिनों के लिए, जो उसके बिना हमने बिताए हैं पर वो तब, कैसे मुझे और दोनों बच्चों को छोड़ कर चला गया था? क्या जब नहीं लगा था? उसे, कि मैं गलती कर रहा हूं। मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए। लेकिन आज अपने मेल में लिख कर भेजता है।
आज एक बार फिर उसका मेल आया है। मरहम का रूप धरकर, पर जिस घाव के लिए आया है।, कृति उस घाव के दर्द से कब का निजात पा चुकी है।… पिछले तीन महीनों में ये उसका बारहवाँ मेल ...और पढ़ेहै। कृति मेल पढ़कर गुस्से में खुद से ही बात करती है। 'आखिर वो मेल भेजता ही क्यों है? जब उसका हमसे अब कोई सम्बन्ध, हैं ही नहीं है। क्या जताना चाहता है। वो कि, उसको हमारी फिक्र है पर दस साल पहले जब वो हमें छोड़ कर गया था। तब क्यों नहीं दिखाई ये फिक्र… जो आज दिखा रहा
सूरज दिनभर अपनी ड्यूटी करकर थक गया है। इसलिए उसने अपनी किरणों की समेटना शुरू कर दिया है। मौसम वैज्ञानिक इस स्थिति को शाम कहते है। जिसका बच्चों के लिए मतलब सिर्फ बाहर खेलने जाना है। अब एक बार ...और पढ़ेकृति घर में अकेली हो गई है। जिस कारण उसका ध्यान फिर एक बार महेश की यादों में चला गया है। पर अबकी बार ध्यान उन अच्छे पलों की तरफ गया है। जिनमें वे एक दूसरे से मिले थे। अब से करीब चौदह साल पहले कॉलेज के दिनों में………कितने अच्छे और खुशनुमा दिन थे। वो हम दोनों के लिए, साथ-साथ
बच्चों के लिए खाना बनाने, खिलाने, और होमवर्क कराकर उन्हें सुलाने में करीब दस बज गए। इन सबके बाद जब वो अपने कमरे में आयी तो उसका लैपटॉप पर एक मेल आया हुआ था। जो महेश का था।महेश के ...और पढ़ेको पढ़ने के लिए कृति वहीं टेबल के पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गई। और मेल पढ़ने के बाद एक बार फिर कृति पुरानी ख़ुशी और टीस भरी यादों के भंवर में गोते लगाने लगी।कितने प्यारे दिन थे। शुरुआत के वो, जब हमने एक साथ लिव इन में रहना शुरू किया था। महेश सुबह-सुबह बड़े प्यार से किस करकर मुझे
उन दिनों वक़्त ही तेज़ी से भाग रहा था। या बच्चें ही जल्दी बड़े हो गए थे। ये मुझे बिल्कुल पता नहीं चला। शायद मैं खुद में ज्यादा ही व्यस्त थी। और इसका कारण भी था। क्योंकि पापा की ...और पढ़ेहो चुकी थी। और उनके बुक स्टोर से लेकर घर तक सब कुछ मुझे ही संभालना था। इस बीच महेश नाम के किसी शख्स से मैं मिली भी थी। अपनी ज़िन्दगी में, मुझे ये याद भी नहीं था। मैंने खुद को और अपने बच्चों को संभालना पुरी तरह सीख लिया था। मुझे अपनी ज़िंदगी को इस नए रूप में ढालने