मेल - अंतिम भाग Jitin Tyagi द्वारा लघुकथा में हिंदी पीडीएफ

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मेल - अंतिम भाग

उन दिनों वक़्त ही तेज़ी से भाग रहा था। या बच्चें ही जल्दी बड़े हो गए थे। ये मुझे बिल्कुल पता नहीं चला। शायद मैं खुद में ज्यादा ही व्यस्त थी। और इसका कारण भी था। क्योंकि पापा की डेथ हो चुकी थी। और उनके बुक स्टोर से लेकर घर तक सब कुछ मुझे ही संभालना था। इस बीच महेश नाम के किसी शख्स से मैं मिली भी थी। अपनी ज़िन्दगी में, मुझे ये याद भी नहीं था। मैंने खुद को और अपने बच्चों को संभालना पुरी तरह सीख लिया था।

मुझे अपनी ज़िंदगी को इस नए रूप में ढालने में इतनी भी दिक्कत नहीं आई थी। जितना मैंने सोचा था। आखिर इतना समय गुजरने के बाद मुझे पहली मुश्किल तब आई थी। जब मैं बच्चों का एडमिशन कराने के लिए स्कूल गई थी। कितनी तैयारी की थी। मैंने सिंगल मदर वाली फ़िल्में देख-देखकर, और मुझे लगने भी लगा था। कि मैं सब कुछ बड़े अच्छे से करूंगी। जैसे फिल्मों में सिंगल मदर करती हैं। पुरे आत्मविश्वास से, लेकिन स्कूल में एडमिशन फार्म भरते वक़्त जानें क्यों मुझे बुरा लग रहा था। तकलीफ़ दे रहा था। स्कूल के स्टाफ की नज़रें जैसे मुझे ही घुर रही है। ऐसा लग रहा था। पर फिर मैडम ने जो, फार्म के करेक्शन चेक करती थी। उन्होंने कहा, कोई बात नहीं, तुम अकेली नहीं हो, जिसके साथ ये हो रहा है। बहुत लड़कियां है। ऐसी, और उनमें से एक मैं भी हूं।

उनकी इस बात से जैसे मुझे नई कोई ऊर्जा मिल गई थी। और उस दिन के बाद से मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। और ना, ही कभी बच्चों को ये महसूस होने दिया। कि तुम्हारे पापा नहीं है।

सुबह छः बजे के अलार्म की घंटी बज उठी हैं। जिस वजह से, कृति जिसका ध्यान पुरी रात यादों की उधेड़बुन में लगा हुआ था। वो अब एक बार फिर वर्तमान में आ गया है। वो काफी समय के बाद ऐसे रात को जागी है। लेकिन फिर भी उसकी आंखों में नींद का नामोनिशान नहीं है। वो अपनी दिनचर्या में उसी तरह लग गई है। जैसे हर दिन लगती है।

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सुबह के ग्यारह बजे हैं। कृति ने रोजाना कि तरह बुक स्टोर को खोला है। पर आज उसने पहला काम किताबों की सफाई ना करके, वो सीधी कंप्यूटर के सामने महेश को मेल लिखने के लिए बैठ गई है।

“महेश, यानि कि तुम जो कभी मेरे सब कुछ हुआ करते थे। तुम्हारे बिना जीना, मैं कभी सोचती भी नहीं थी। तुमने मुझे छोड़ दिया। एक पल में, तुम्हें क्या लगा। मुझे कभी मालूम नहीं होगा कि तुमने मुझे रीतिका के लिए छोड़ा….. आखिर कितना गलत सोचा तुमने, अफ़सोस है। मुझे

तुम जानते हो तुमने मेरी ज़िन्दगी के साथ कितना बड़ा और भद्दा मजाक किया; नहीं जानते; वैसे तुम्हारे पास वक़्त भी कहां था। इस बारे में सोचने के लिए कि तुमने क्या किया मेरे साथ; क्योंकि, मैं जानती हूं तुम्हारी पूरी उम्र उसकी ख़िदमत करने में ही गुजरी हैं। सच कहूं तो, हंसी आती है। तुम पर, वैसे मैं जानती हूं। तुम्हें अच्छी तरह से, तुमने कभी भी इतने सालों में, मेरे बारे में सोचा भी नहीं होगा। आखिर जरूरत क्या थी? है ना……पर जो हुआ। सो हुआ, हमारे बीच में, लेकिन अब मैं दोबारा तुम्हें खुद के और अपने बच्चों के साथ ऐसा नहीं करने दूंगी। इसलिए कोशिश करना, जो मेल है। तुम्हारे, उनकी गिनती आगे ना बढ़े, वरना फिर मुझे भी आगे बढ़ना पड़ जाएगा। और जो शायद, तुम्हारे लिए इस उमर में अच्छा नहीं होगा। खासकर तुम्हें जो बीमारी लगी हैं। उसके लिए तो बिल्कुल नहीं, वैसे क्या बताई थी? देखा, मुझे वो याद नहीं, तो समझ आ गया होगा अब तुम्हें, तुम मेरे लिए क्या मायने रखते हो, ओ माफ़ी चाहती हूं। कोई मायने नहीं रखते, इसलिए उम्मीद करती हूं। कि मेरी बात समझ में आ गई होगी। और आगे का तुम्हारा व्यवहार उसी समझ में आई बात के अनुरूप हो”

कृति ने मेल लिखकर send click कर दिया है। और उस लग रहा है। जैसे वर्षों का भार अपने कंधों से उतार दिया हो और वह दुकान से बाहर आकर आजाद होने की नई हवा को महसूस करने लगी।