Shraap ek Rahashy book and story is written by Deva Sonkar in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Shraap ek Rahashy is also popular in डरावनी कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
श्राप एक रहस्य - उपन्यास
Deva Sonkar
द्वारा
हिंदी डरावनी कहानी
ये लगातर तीसरी रात थी, जब शहर में झमाझम बारिश बेसुध होकर बरसती ही जा रही थी। यातायात के तमाम साधन लगभग ठप्प हो चुके थे। पतले,संकरे शहर के सड़को में लबालब पानी भर चुका था। दूसरी तरफ़ शहर से सटा वो एक सरकारी अस्पताल था, उसी के बगल में एक सरकारी मोर्ग भी था। जहां पोस्टमार्टम भी होता था। शायद इसलिए सामने ही एक सरकारी देशी शराब की दुकान भी थी। पोस्टमार्टम होने से पहले बॉडी को चीर फाड़ करने वाले लोग बग़ैर शराब के नशे के ये काम नहीं कर पाते थे। बड़ा दुसाध्य काम भी तो था श्राप एक रहस्य
ये लगातर तीसरी रात थी, जब शहर में झमाझम बारिश बेसुध होकर बरसती ही जा रही थी। यातायात के तमाम साधन लगभग ठप्प हो चुके थे। पतले,संकरे शहर के सड़को में लबालब पानी भर चुका था। दूसरी तरफ़ शहर ...और पढ़ेसटा वो एक ...श्राप एक रहस्य
तीन दिनों तक एन.आई.सी.यू में रहने के बाद "कुणाल बर्मन" एक अजीब से रिपोर्ट के साथ घर लौट रहा था। कुणाल बर्मन तीन दिनों पहले बरसात की एक झमझमाती रात में,एक समान्य से सरकारी अस्पताल में जिसका जन्म हुआ ...और पढ़ेअब अस्पताल के कागजों में उसका नाम कुणाल और पिता से मिला उपनाम बर्मन यानी कुणाल बर्मन दर्ज़ हो चुका था। उसके पिता एक बहुत बड़े बिज़नेस मेन थे लेकिन माँ गृहणी थी। शादी के लगभग चौदह वर्ष बाद इन्हें बच्चे को जन्म देने का सौभाग्य मिला था। कुणाल के पिता अखिलेश बर्मन बहुत अधिक पढ़े लिखें नहीं थे, डॉक्टरों
शहर के इस हिस्से में पानी की कोई कमी नहीं थी। छोटे छोटे कई सारे झील थे यहां। ये पुराना कुआं वैसे भी जर्जरता के आख़िरी चरम पर था। पास के ही मकान में, जो कि अब बस खंडहर ...और पढ़ेतब्दील होने ही वाला था, किसी समय में यहां एक बंगाली परिवार रहा करता था। माँ, पिता और एक सात आठ वर्ष की उनकी बेटी, प्रज्ञा नाम था उसका। माँ और पिता की लाड़ली थी। कोई कमी नहीं थी इस परिवार को, संपन्नता से भरा था सबकुछ। लेकिन....तक़दीर भी आख़िर कोई चीज़ होती है। बात कोई बीस वर्ष पुरानी होगी,
कहानी बीस वर्ष पीछे :-क्या ये उम्र मौत के लिए थी..? मतलब वो महज़ सात या आठ वर्ष की ही तो थी। नाज़ुक सी उम्र, अभी तो ढंग से जीना भी शुरू नहीं किया था उसने। लेकिन वो मर ...और पढ़ेकी असीम भक्ति में डूबा उसका परिवार उसे बचाने तक नहीं आया। क्या वो पूजा उसकी जिंदगी से भी ज़्यादा अनमोल था..?एक मासूम सी रूह मौत के बाद भी ईश्वर से बेइंतहा नफ़रत करने लगी थी। लाश तो जला दी गयी थी उसकी, लेकिन उसकी रूह जुड़ी थी उसके ही बालों से जो कुएं की सीढ़ियों में कहीं फंसी रह
ये पहली बार नहीं था। शकुंतला देवी ने कई बार घर से भागने की कोशिश पहले भी की थी। पहले भी वे नन्हें कुणाल को लेकर दूर कहीं वीराने में चल जाना चाहती थी। लेकिन नौकर चाकरों से भरे ...और पढ़ेमें उन्हें ये मौका कभी मिला नहीं। देखते ही देखते डेढ़ साल बीत गए। कई कई बार कुणाल की चोटों से परिवार दहल उठता, लेकिन चोट लगने वाले को कोई फ़र्क ही नहीं पड़ता था। अभी बीते कल की ही बात है, कुणाल के लिए रोटी ख़ुद ही पकाने गयी थी सकुंतला जी। किचन के लंबे चौड़े सेल्फ़ पर एक