Shraap ek Rahashy - 15 books and stories free download online pdf in Hindi

श्राप एक रहस्य - 15

राजा के पुत्र को उनके पिता की बिगड़ी तबीयत और चोटों के विषय में कुछ नहीं बताया गया था। क्यूंकि इस वक़्त उनकी उम्र महज़ तेरह साल की थी और वे इन दिनों तरह तरह के महत्तवपूर्ण अभ्यासों में व्यस्त थे। उनके गुरु नहीं चाहते थे कि इस तरह की खबरें उसका ध्यान भंग करें। वो विचलित होकर यहां से चला जाएं। लेकिन दूसरे शिष्य ने जाकर जो बातें उसे बताई उसे सुनकर राजा का पुत्र उसी दिन गुरुकुल से नगर के लिए निकल पड़ा।

उसने अपनी वेशभूषा बदल ली थी। फकीरों की तरह वो महल में आया। उसके आने की ख़बर सिर्फ एक इंसान को ही थी, जिसने महल में घुसने और राजा से मिलने के लिए उसकी मदद की। गहरी रात थी....राजा अपने कक्ष में विश्राम कर रहे थे। उनका दर्द उन्हें वैसे भी सोने नहीं देता था....वे लेटे लेटे कराह रहे थे। तभी कमरे में उनका बेटा आया। राजा उसे देखकर पहले तो चौक गए फ़िर मरने से पहले एक बार उसे देखने की इच्छा को सम्पूर्ण होता देखकर ख़ुशी के आंसू बहाने लगे। राजा का बेटा भी पिता की ऐसी हालत देखकर भावुक हो गया। वो महज़ आठ वर्ष का था जब उसे गुरुकुल भेज दिया गया था ताकि वो पूरे दस साल बाद शिक्षित होकर नगर लौटे और राजा अपनी जगह उसे देकर चैन से जी सकें। लेकिन हालात कितने बदल गए थे। राजा का बेटा राजा श्रीकांत के पैरों के पास ही बैठा सुबकने लगा। फ़िर उसने अपनी झोली खोली और मिट्टी के भाड़ में से एक कटोरी खीर निकालकर राजा को खिलाने लगा। वो जानता था वो अपने पिता को मौत खिला रहा है, उस खीर में जहर उसने अपने हाथों से ही तो मिलाया था। खीर खिलाकर वो वापस गुरुकुल जाने के लिए निकल गया। नगर में किसी को कानों कान ख़बर नहीं हुई कि राजा के बेटे नगर आए थे।

खीर खाने के बाद राजा को नींद आने लगी। उन्हें अपना दर्द ज़रा कम महसूस हुआ और वे सो गए, कभी ना जागने के लिए। अगली सुबह नगर में अफरा तफरी मच गई। हर कोई विलाप कर रहा था। राजा की मौत ने जैसे पूरे सम्राज्य से उसकी रूह ही छीन ली थी। लेकिन कोई था, कोई जो राजा की मौत पर मंद मंद मुस्कुरा रहा था। ये राजा की इकलौती बहन के मंझले पुत्र थे। रिश्ते में वे राजा के भांजे थे। वे और उनकी मां को राजा से हमेशा ही शिकायत रही थी कि राजा ने उनकी इकलौती बहन कि शादी किसी बड़े राजघराने में ना करवाकर एक छोटे से राज्य के समान्य राजा से करवाई थी, और बहुत जल्द ही उन्हें दूसरे राज्य के राजा ने मारकर उनका राज्य हथिया लिया था। राजा का बचा खुचा परिवार अब एक निम्न वर्ग के मकान में रहता है।

उन्होंने ही गुरुकुल के उस दूसरे शिष्य को असरफियों का लालच देकर राजा के पुत्र को ये कहने को कहा था कि ....." राजा बेहिसाब दर्द में है, उनकी पीड़ा असहनीय है लेकिन वे तभी मर सकेंगे जब उनका अपना ही कोई खून उन्हें जहर देगा। उसके बाद ही जल्द राजा दूसरा जन्म लेंगे और एक नए रूप में परिवार के पास लौटेंगे। राजा का अपना खून के नाम पर एक उनका बेटा ही तो है। उनके बेटे को कहना वो वेशभूषा बदलकर रात में महल आए और अपने हाथों से बनाए किसी पकवान में जहर मिलाकर अपने ही हाथों से राजा को खिलाएं। नगर में किसी को ख़बर ना हो कि वो यहां आया था। अगली सुबह वो लौट जाएं गुरुकुल। महल में घुसने में मैं उसकी मदद कर दूंगा। तुम बस उसे इतना ही बता देना। "

दूसरे शिष्य ने भी वैसा ही किया। और राजा अपने ही बेटे के हाथों से खाए जहर की वजह से मारे गए। उनके भांजे को लगा कि उन्होंने सांप भी मार दी और लाठी भी नहीं टूटी। लेकिन वे कहां जानते थे.....प्रकृति से खेलना इतना आसान भी नहीं होता। जो सजा उन्हें सालों बाद मिलने वाली थी, उस श्राप की शुरुआत इसी जन्म में होने वाला था। राजा के बेटे को जब बाद में सब सच्चाई मालूम चली तो उन्हें बेहद पछतावा हुआ। बाद में अपने किए पाप का पश्चाताप करने के लिए वे सांसारिक मोह माया को त्याग कर कहीं दूर पर्वतों पर चले गए। राजा श्रीकांत के भांजे को नगरवासियों ने नियति के लिए ही छोड़ दिया था।

राजा श्रीकांत मारे गए। लेकिन उन्हें मारने वाले दो लोग थे। संयोग से दोनों ही उनके अपने थे। एक जिसने उनके साथ बेईमानी की थी वहीं दूसरे जिसने ख़ुद अपने हाथों से उन्हें जहर खिलाया था लेकिन उसके मन में पाप नहीं था। इस तरह राजा को वरदान के साथ जो श्राप उनके दुश्मनों को मिला था, वो इस तरह बंट गया कि बेईमानी करने वाला ही राजा के हिस्से का दर्द झेलेगा और जिन्होंने उसे जहर दिया था, वो ता उम्र राजा का ख्याल रखेगा बाकी के तमाम जन्मों में।

बग़ैर राजा के उस नगर की अर्थ्यवस्था धीरे धीरे चौपट होती गई। लेकिन इन सब में जो सबसे अजीब था, वो था की महल में ज़बरदस्ती रह रहे राजा के उसी भांजे के साथ इन दिनों कुछ अजीब हो रहा था। उनका शरीर पिघलता जा रहा था और वे कुरूप बनते जा रहे थे। वे अब महल से नहीं निकलते थे लेकिन उनकी कुरूपता के चलते ही धीरे धीरे उनके कुछ चेले चपाटी भी उन्हें छोड़कर भागने लगे। और एक समय ऐसा आया कि पूरा नगर ही खाली हो गया। सभी उस नगर को छोड़कर चले गए। लोगों का कहना था वो राजा के भांजे बिल्कुल राक्षस बन गए थे। वो किसी भी वक़्त अचानक चिल्लाने लगते ऐसा लगता जैसे कोई उसपर अनगिनत कोड़े बरसा रहा हो। दिन में तो वो नहीं निकलता था लेकिन रात के अंधेरे में वो अक्सर अपना भयानक रूप लोगों को दिखाकर सबको डरा देता था। सुनने में आया था वो लोगों से मदद मांगता था....लेकिन उसने जो घिनौना कृत्य राजा के साथ किया था उसके बाद नगर का कोई भी मनुष्य उसकी मदद करने की कल्पना भी नहीं कर सकता था। इस तरह एक विशाल सम्राज्य सिर्फ एक बेईमानी की वजह से ख़तम हो गया।

कहानी वर्तमान में:-

सोमनाथ चट्टोपाध्याय ये कहानी अखिलेश बर्मन को सुना रहे थे। और अखिलेश बर्मन पूरी तरह हैरत में थे। उन्हें यकीन नहीं हो रहा था कि डॉक्टरों ने उनके बेटे की जिस कमी को एक बीमारी का नाम दिया था वो विज्ञान को टक्कर देने वाली कितनी पेचीदा असलियत है। कहानी पूरी हो चुकी थी लेकिन अब जो शुरू होने वाला था वो ख़ुद अनेकों कहानियों का संग्रह बनेगा।

क्रमश :_Deva sonkar

अन्य रसप्रद विकल्प

शेयर करे

NEW REALESED