Jivan ka Ganit book and story is written by Seema Singh in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Jivan ka Ganit is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
जीवन का गणित - उपन्यास
Seema Singh
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
शाम तक पूरा घर चमाचम हो जाना चाहिए नीतू! अवंतिका ने फिर से दोहराया। नीली सलवार, पीला कुर्ता, गुलाबी स्वेटर के साथ लाल दुपट्टा कंधे से ओढ़ कर कमर तक लपेटे, नीतू ठुमकती सी दरवाजे के पास आ खड़ी हुई, "आप कल से कितनी बार बता चुकी हो आंटी, समझ गई अच्छी तरह सफाई करनी है कर लूंगी।"नीतू के स्वर की तेज़ी देख अवंतिका की हंसी निकल गई। "ठीक है, तुझे याद है अच्छी बात है। मैं ऑफिस से देर में आऊंगी बिट्टू पहले आ जाएगा।"अवंतिका आगे कुछ और भी कहती उससे पहले ही नीतू शुरू हो गई,
भाग - 1"शाम तक पूरा घर चमाचम हो जाना चाहिए नीतू!" अवंतिका ने फिर से दोहराया। नीली सलवार, पीला कुर्ता, गुलाबी स्वेटर के साथ लाल दुपट्टा कंधे से ओढ़ कर कमर तक लपेटे, नीतू ठुमकती सी दरवाजे के पास ...और पढ़ेखड़ी हुई, "आप कल से कितनी बार बता चुकी हो आंटी, समझ गई अच्छी तरह सफाई करनी है कर लूंगी।"नीतू के स्वर की तेज़ी देख अवंतिका की हंसी निकल गई। "ठीक है, तुझे याद है अच्छी बात है। मैं ऑफिस से देर में आऊंगी बिट्टू पहले आ जाएगा।"अवंतिका आगे कुछ और भी कहती उससे पहले ही नीतू शुरू हो गई,
भाग - 2"सारा प्यार यहीं लुटा देंगी क्या?" नीतू की शरारत भरी आवाज़ कानों में पड़ी तो अवंतिका का ध्यान गया… उसकी आंखों से से आंसुओं की धारा बह रही थी।एक सजग अधिकारी होने के साथ ही बेहद संवेदन ...और पढ़ेमां भी थी वह।वैभव ने मां को एक हाथ से कंधे से पकड़ा और दूसरे हाथ में उसकी शॉल और बैग थामा और दोनों कमरे में भीतर आ गए।अवंतिका ने आज घर आकर हमेशा की तरह कपड़े नहीं बदले थे। बिट्टू के साथ आकर सोफे पर बैठ सेंटर टेबल पर पैर टिका लिए।बिट्टू मां की बगल में ही बैठ गया।
भाग - 3"पहाड़ों पर रात बड़ी जल्दी हो जाती है दस बजते ना बजते ऐसा लगने लगता है जैसे आधी रात हो गई हो।" वैभव ने कहा तो अवंतिका मुस्कुराने लगी।"तू है तो जग रही हूं नहीं तो नौ ...और पढ़ेतक बिस्तर में पहुंचकर विथ इन टेन मिनिट्स सो जाती हूं।" कहकर अवंतिका खुद ही अपने ऊपर हंस पड़ी।"रियली?" वैभव ने अचंभे से पूछा तो अवंतिका ने हंसते हुए सिर हिलाकर हामी भरी।"याद है मां हम देहरादून में थे तो कभी ग्यारह बजे से पहले तो डिनर भी नहीं करते थे।" वैभव पुरानी बात याद करके खुश हो रहा था।"वहां
भाग - 4सुबह अवन्तिका जब वैभव के पास आई तो वह गहरी नींद में था। एक लाड़ भरी नज़र अपने सोते हुए बिट्टू पर डाल कर अवन्तिका बाहर निकल आई, किचन में नीतू नाश्ते की तैय्यारी कर रही थी। ...और पढ़ेबना रही है, नीतू?” अवन्तिका ने किचन में आकर उससे पूछा तो वह एकदम से चौंक गई।“अरे आंटी आप तैयार भी हो गईं?” अवन्तिका को ऑफिस के लिए तैयार देख अचरज भरे स्वर में नीतू ने पूछा । उसे शायद उम्मीद थी कि अवन्तिका छुट्टी ले लेगी आज। कोई और समय होता तो वह पक्का यही करती मगर मंथ क्लोजिंग
भाग - 5घर पहुंचते ही अवंतिका ने सबसे पहले वैभव से पूछा, “आज तुझे बैंक आने की क्या सूझी बिट्टू?"मां को घर आया देख बिट्टू ने अपना लैपटॉप बंद कर एक किनारे रख दिया और उठकर बाहर हॉल में ...और पढ़ेके लिए उठने वाला ही था, तब तक अवंतिका उसके पास आ गई उसके ही कमरे में।"बोर तो नहीं हुआ घर में?""नहीं बिलकुल भी नहीं आपका बेटा हूं, अपनी कंपनी बहुत एंजॉय करता हूं।"हंसते वैभव ने लैपटॉप दूसरी तरफ रख कर अवंतिका को अपने बैड पर बैठने की जगह दे दी। "वैसे तुझे सूझी क्या जो मेरे ऑफिस पहुंच गया