Jivan ka Ganit - 5 books and stories free download online pdf in Hindi

जीवन का गणित - भाग-5

भाग - 5

घर पहुंचते ही अवंतिका ने सबसे पहले वैभव से पूछा, “आज तुझे बैंक आने की क्या सूझी बिट्टू?"

मां को घर आया देख बिट्टू ने अपना लैपटॉप बंद कर एक किनारे रख दिया और उठकर बाहर हॉल में आने के लिए उठने वाला ही था, तब तक अवंतिका उसके पास आ गई उसके ही कमरे में।

"बोर तो नहीं हुआ घर में?"

"नहीं बिलकुल भी नहीं आपका बेटा हूं, अपनी कंपनी बहुत एंजॉय करता हूं।"

हंसते वैभव ने लैपटॉप दूसरी तरफ रख कर अवंतिका को अपने बैड पर बैठने की जगह दे दी।

"वैसे तुझे सूझी क्या जो मेरे ऑफिस पहुंच गया लंच लेकर?"अवंतिका ने अपना सवाल दोहराया क्योंकि अभी तक उसे वैभव की ओर से कोई जवाब नहीं मिला था।

"आपकी शिकायत मिली थी कि आप लंच नहीं करते हो!" वैभव ने गंभीर मुख मुद्रा बनाते हुए कहा।

"किसने की? नीतू ने कहा होगा!"अवंतिका ने हंसते हुए पूछा।

"और किसको पड़ी है यहां?आप खाओ ना खाओ, सबकी बला से। एक मैं ही तो हूं जो आपकी चिंता में मरी जाती हूं।" चाय की ट्रे लेकर आती हुई नीतू ने ऐसा मुंह बनाकर कर कहा कि उसकी सूरत देखकर वैभव और अवंतिका दोनों हंसते हंसते लोट पोट हो गए। उन दोनों को ऐसे हंसता देख पहले तो नीतू ने मूर्खों की तरह पलकें झपकाते हुए बारी बारी से उन्हें देखा और फिर खुद भी उन्ही की तरह ज़ोर ज़ोर से हंसने लगी।

थोड़ी ही देर में नीतू ने खाना लगा दिया। खाने के तुरंत बाद नीतू दो मग कॉफी और एक कटोरी में गुनगुना करके तेल ले आई थी।

"लाइए आंटी आपके पैरों में लगा दूं थोड़ा सा आराम मिल जाएगा। सारा दिन पैर लटका कर बैठी रहती हैं, कितनी सूजन हो गई है।" कॉफी के मग वैभव के पास को रखकर नीतू अवंतिका के पैरों की मालिश करने के लिए उसके पैरों की तरफ फर्श पर ही बैठ गई।

कुछ थकान और कुछ मालिश के असर से अवंतिका को नींद आने लगी ।

वैभव ने हौले से गाल पर उंगलियां लगा कर अवंतिका को जगाया और उसके कमरे में भेज दिया।अवंतिका ने जैसे-तैसे साड़ी उतरकर फेंकी और नाइटी लटका कर बेड में धस गई। पांच मिनट में ही कमरे में अवंतिका के हौले हौले गूंजते खर्राटे उसके गहरी नींद में डूब जाने की पुष्टि कर रहे थे।

अगली सुबह अवंतिका जगकर वैभव के कमरे में गई तो वह अपने बैड पर नहीं था। थोड़ा अचंभा तो हुआ इतनी जल्दी जग गया आज तो, उसे बाथरूम में देर लगाता देख वह वापस अपने कमरे में अपने बाथरूम में चली गई उसे भी ऑफिस के लिए रेडी होना था। अवंतिका तैयार होकर बाहर आई तब तक नीतू भी दोनों के लिए चाय बना लाई थी।

वैभव अपने बैग में अपना सामान पैक कर रहा था। उसे तैयार देख अवंतिका को याद आया कि उसने पहले ही बताया था कि वह उसके पास सिर्फ दो दिन ही रुकेगा। उसे तो दिल्ली भी जाना है। "शिट, वह कैसे भूल गई?" अवंतिका ने होठों में ही बुदबुदाते हुए अपना माथा ठोंका। आहट होने पर वैभव ने पीछे मुढकर देखा सामने मां को देख प्यार से मुस्कुराया।

" ग्यारह बजे निकलूंगा मैं, सोचा जाने से पहले आपके साथ ब्रेक फास्ट कर लूं।"

" तेरा आज ही जाना जरूरी है बिट्टू ? एक दिन और नहीं रुक सकता क्या!" अपनी बात खत्म करते करते अवंतिका का स्वर भीग सा गया था।

"मॉम... क्या हुआ यार?" बैग में सामान डालते हुए हाथ रुक गए थे गहरी नज़र से मां की आंखों में झांकते हुए आश्चर्य भरे से स्वर में पूछा और मां को अपनी बांहों में भर लिया।

"तेरे आने के बाद मुझे ऑफिस से फुर्सत ही नहीं मिली। कल छुट्टी है एक दिन तेरे साथ फ्री होकर बिताना चाहती थी।"

अवंतिका ने अपने स्वर को संयत करने की नाकाम कोशिश की थी, पर उसके स्वर की लरज बेटे ने पहचान ली थी।

" नॉट ए बिग डील मॉम! दो दिन और रुक जाता हूं! ट्यूज डे की टिकिट करवा लूं? उससे ज्यादा नहीं, और रुकूंगा तो दिक्कत हो जाएगी।"

बेटे की बात सुन उदास अवंतिका चहक उठी, “रुक सकता है?फिर रुक जा मैं आज हाफ डे और और मंडे की फुल लीव ले लेती हूं।"

मां को हमेशा खुशियां देने की चाहत रही है वैभव की। उसके रुक जाने की बात भर से मां के चेहरे पर आई खुशी अनमोल थी उसके के लिए।

"मैं लंच तक या उससे थोड़ा देर तक घर आ जाऊंगी आज ऑफिस मत आना लंच लेकर।" कहते कहते अवंतिका की आंख फिर भर आई थी।

"ठीक है घर पर ही आपका वेट करूंगा। खाना साथ ही खायेंगे।" वैभव ने मुस्कुराते हुए मां पर ढेर सा प्यार उड़ेल दिया।

भरी आंखों और चेहरे पर मुस्कान ओढ़े मां के ऑफिस जाते ही, वैभव ने सबसे पहला काम किया अपने बदले हुए प्रोग्राम से पिता को सूचित करना करने का। उन्हे भी जानना जरूरी है, बस यही सोचकर तुरंत कॉल मिलाई।

"हैलो!"

"हैलो यंग मैन! कितनी देर में निकल रहे हो?"

"मैं आज नहीं निकल रहा हूं डैड, इसीलिए कॉल किया है आपको!"

"अरे,पर तुम्हारा तो फिक्स प्लान था, तुम दो दिन मेरे पास रुककर लखनऊ निकलने वाले थे!" पिता के स्वर में कुछ हताशा सी थी।

"हम्म्म, था तो, पर मॉम चाहती थी कि दो दिन और रुक जाऊं उनके साथ, मैंने उनको हां बोल दिया है। प्लीज नेक्स्ट टाइम आपके पास दो दिन एक्स्ट्रा रुक जाऊंगा।"

उसने डैड को मस्का लगाते हुए कहा और दोनों खिलखिलाकर हंस पड़े।

"ओके सन, मेरी मीटिंग हैं! मैं निकलूंगा। हम बाद में बाद करेंगे।"

"ओके, बाय डैड!"

फोन कटते ही वैभव ने अपने लैपटॉप पर रेलवे की साइट ओपन कर अपना पुराना टिकट कैंसिल करवाया और अब काठ गोदाम से दिल्ली के बजाय सीधे लखनऊ के लिए टिकिट बुक करवानी थी।



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