Surmayi Aankho wali book and story is written by Jyoti Prajapati in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Surmayi Aankho wali is also popular in महिला विशेष in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
सुरमयी आंखों वाली - उपन्यास
Jyoti Prajapati
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
महाराजाधिराज विक्रमादित्य का नगर उज्जयिनी ! यहां के राजा है भगवान महाकाल ! और मैं हूँ महाकाल भक्त , 'अर्चित' !!
प्रत्येक सोमवार को बाबा महाकाल के दर्शन करने आना मेरा नियम है..! जब तक बाबा के दर्शन ना कर लूं, मन को चैन नही पड़ता!! यहां आकर मन को एक सुकून और आनंद की प्राप्ति होती है ! एक सुखद अनुभूति, जो कहीं ओर नही मिलती ।
मैं पैदल ही आया करता था मंदिर, दर्शन के लिए..!! घर भी पास ही था तो बस निकल पड़ता, घूमता-फिरता दर्शन करने!!
उस दिन भी कुछ ऐसा ही था ! सोमवार का दिन ! मैं घर से पैदल ही निकल पड़ा दर्शन करने ! टहलना भी हो जाये और भगवान के दर्शन भी !!
दर्शन कर जब लौट रहा था, तो रास्ते मे दोस्त मिल गया !! मेरे बचपन का इकलौता जिगरी दोस्त 'दीप' ! मैंने ज़िन्दगी में दोस्तों की लाइन नही लगाई !! गिने चुने ही दोस्त सब के सब अनमोल नगीने ! दीप से हमेशा मैंने अपनी हर बात शेयर की...बचपन से ही !!
मैं उससे बात ही कर रहा था जब मेरी नज़र, "उसपर" पड़ी !!
चेहरा तो नज़र नही आया पास आंखे ही नज़र आई। इतनी के कातिलाना निगाहें पहली बार देखी थी मैंने..! एक तो काली आंखे उसपर भी काजल इतना गहरा की डूबे को पार नही।
महाराजाधिराज विक्रमादित्य का नगर उज्जयिनी ! यहां के राजा है भगवान महाकाल ! और मैं हूँ महाकाल भक्त , 'अर्चित' !! प्रत्येक सोमवार को बाबा महाकाल के दर्शन करने आना मेरा नियम है..! जब तक बाबा के दर्शन ना ...और पढ़ेलूं, मन को चैन नही पड़ता!! यहां आकर मन को एक सुकून और आनंद की प्राप्ति होती है ! एक सुखद अनुभूति, जो कहीं ओर नही मिलती । मैं पैदल ही आया करता था मंदिर, दर्शन के लिए..!! घर भी पास ही था तो बस निकल पड़ता, घूमता-फिरता दर्शन करने!! उस दिन भी कुछ ऐसा ही था ! सोमवार का
उस दिन प्रांजल का बर्थडे था..! पापा ने उसे नई ड्रेस लाने के लिए रुपये दिए थे और मम्मी ने भी उसे रुपये ही दिए थे, ताकि उसकी जो इच्छा हो वो खरीद सके !! अब हम लोग ठहरे ...और पढ़ेदेसी लोग ! हमारे यहां जन्मदिन पर पार्टी नही पूजा-पाठ होता है ! सुबह घर पर पूजा हुई उसके बाद हवन !! पूजा-पाठ के चक्कर मे प्रांजल को कोचिंग के लिए देर हो गयी !! पापा ने कहा,"जा इसे छोड़कर आ और ये प्रसाद इसके सर-मैडम को दे देना !!" पापा की जगह किसी ओर ने कहा होता तो मैं
बहुत दिनों तक मेरे दिल ओर दिमाग मे बस सुरमयी ही घूमती रही..!! मैंने एक दिन तय किया उस अनाथालय जाकर सुरमयी के बारे में पता लगाने का। दो दिन बाद मैं पहुँच गया बच्चो के लिए ढेर सारी ...और पढ़ेबुक्स और कलर पेंसिल्स लेकर। बच्चे बड़े खुश हुए ! मुझे भी बहुत आत्मिक सुख की अनुभूति हुई। मैं काफी देर तक बच्चो के साथ खेलता रहा ! वो इशारो से बाते करते और मैं उन्हें समझने का प्रयास ! इतने छोटे-छोटे बच्चे इतनी आसानी से इशारे कर अपनी बात समझा रहे थे, जैसे कोई टीचर अपने स्टूडेंट को समझाता
उस दिन सुरमयी कहीं गयी हुई थी ! उसकी डायरी बाहर डेस्क पर ही रखी हुई थी !! जब प्रांजल की नज़र उसपर गयी तो वो उठाकर ले आई !! प्रांजल झूमते हुए मेरे पास आकर बोली, " भाई, ...और पढ़ेमैं क्या लेकर आई ..??" उसकी खुशी देखकर ही मैं समझ गया कि ये डायरी लेकर आई है ! खुशी के मारे मैंने उसे उसका मुंहमांगे गिफ्ट देने का प्रॉमिस कर डाला !! प्रांजल ने डायरी खोली और पढ़ना स्टार्ट किया....... *************************** "मेरी मम्मी एक डायरी लिखती है तो बस में भी उनको देख कर तुम्हे मार्केट से खरीद लायी..!!
अबतक मैंने जिस सुरमयी को जाना था ये उससे बिल्कुल अलग थी ! इतना दुखद और भयावह अतीत ! सुनकर ही दिल मे अजीब सी घबराहट मच गई ! जब पढ़कर ही हम सबका ये हाल था तो सुरमयी ...और पढ़ेतो ये सब बीती थी! उसका क्या हाल हुआ होगा...??" मैं अपनी सोच में ही मगन था और प्रांजल ने मुझे झंझोड़ा ! मैं चौंककर अपनी सोच से बाहर आया ! प्रांजल ने पूछा, " क्या हुआ भाई..?? अब क्या करेंगे आप..??" मैं क्या जवाब दूं प्रांजल को समझ ही नही आ रहा था ! गलत तो हुआ था सुरमयी