Surmayi Aankho wali - 1 books and stories free download online pdf in Hindi

सुरमयी आंखों वाली - 1

महाराजाधिराज विक्रमादित्य का नगर उज्जयिनी ! यहां के राजा है भगवान महाकाल ! और मैं हूँ महाकाल भक्त , 'अर्चित' !!
प्रत्येक सोमवार को बाबा महाकाल के दर्शन करने आना मेरा नियम है..! जब तक बाबा के दर्शन ना कर लूं, मन को चैन नही पड़ता!! यहां आकर मन को एक सुकून और आनंद की प्राप्ति होती है ! एक सुखद अनुभूति, जो कहीं ओर नही मिलती ।

मैं पैदल ही आया करता था मंदिर, दर्शन के लिए..!! घर भी पास ही था तो बस निकल पड़ता, घूमता-फिरता दर्शन करने!!
उस दिन भी कुछ ऐसा ही था ! सोमवार का दिन ! मैं घर से पैदल ही निकल पड़ा दर्शन करने ! टहलना भी हो जाये और भगवान के दर्शन भी !!

दर्शन कर जब लौट रहा था, तो रास्ते मे दोस्त मिल गया !! मेरे बचपन का इकलौता जिगरी दोस्त 'दीप' ! मैंने ज़िन्दगी में दोस्तों की लाइन नही लगाई !! गिने चुने ही दोस्त सब के सब अनमोल नगीने ! दीप से हमेशा मैंने अपनी हर बात शेयर की...बचपन से ही !!

मैं उससे बात ही कर रहा था जब मेरी नज़र, "उसपर" पड़ी !!
चेहरा तो नज़र नही आया पास आंखे ही नज़र आई। इतनी के कातिलाना निगाहें पहली बार देखी थी मैंने..! एक तो काली आंखे उसपर भी काजल इतना गहरा की डूबे को पार नही।

इसके बाद एक दो बार और नज़र आई वो मुझे उसी रास्ते पर ही !! एक आकर्षण बन चुकी थी वो मेरे लिए जिसमे मैं खींचता ही चला जा रहा था।

उसके बाद तो रोज़ देखता था मैं उसे उस रास्ते पर आते-जाते !! कभी वो अपना चेहरा स्टॉल से कवर कर के रखती तो कभी बिना फेस कवर किये ही रहती! पर हाँ, रहती हमेशा टॉप टू बॉटम पैक !! फुल आस्तीन की लॉन्ग अनारकली कुर्ती, पैरों में मौजे और जूती, दोनो कंधों पर बाकायदा सलीके से डाला हुआ दुपट्टा।

जब भी वो फेस कवर कर के निकलती तो सिर्फ उसकी आंखें ही नज़र आती थी..! बड़ी-बड़ी झील सी गहरी आंखे । उन आंखों में जाने ऐसा क्या था ..? मैं बस देखता ही रह जाता । लेकिन समझ नही पाता। एक खालीपन, दर्द, खामोशी पता नही क्या था लेकिन जो भी था मुझे हमेशा ही उसकी ओर आकर्षित करता ।

एक दिन मैं घर के बाहर बाइक पर बैठा हुआ था !! दीप आने वाला था तो उसी का इंतज़ार कर रहा था ! मेरी छोटी बहन "प्रांजल" का एडमिशन करवाना था कोचिंग क्लास पर ! बहुत दिन से जान खा रही थी !! पहले तो मैं टालता रहा, फिर उसने जाकर पापा से कह दिया !! मरता क्या ना करता?? जाना ही पड़ेगा अब तो !

मैं दीप का इंतज़ार ही कर रहा था कि फिजायें महक उठी !! लेडीज़ परफ्यूम की स्मेल थी। एक लड़की मेरे बगल से होकर निकली !!
अचानक ही मेरे मुंह से निकल गया,"एक्सक्यूज मी..??"

उसने पलट कर देखा !

मैंने उससे कहा,"नाइस फ्रीग्रेन्स ..! परफ्यूम अच्छा है आपका !!"

उसने अपनी बड़ी बड़ी आंखे और बड़ी करके मुझे देखा ! मेरी तो सिट्टी पिट्टी ही गुम हो गयी !!

वो तो वापस चली गयी। पर साथ मे मेरा सुख चैन भी ले गयी। क्यों आज वो सिर से पैर तक काले कपड़ों में थी !! मुझे लगा हो गयी लव स्टोरी शुरू होने से पहले ही खत्म !! दो दिलो के एक होने में अब धर्म आड़े आने वाला था !! मुझे लगा मैं हिन्दू और किसी ओर धर्म की !! कसम से दिल टूटने की इतनी तेज आवाज़ आयी ! दिल जुड़ा तो नही था लेकिन टूट चुका था !!

मैं मुंह लटकाते हुए वापस गाड़ी पर आकर बैठ गया ! दीप का फ़ोन आया !! उसने कहा,"मैं तुझे वही मिलुंगा सेंटर पर, तु आजा प्रांजल को लेकर !!"

मैं प्रांजल को लेकर कोचिंग सेंटर पहुंचा ! मैंने उससे पूछा तक नही की वो किस चीज़ की कोचिंग कर रही है, क्यों कर रही है..? कोई मतलब नही था मुझे !!"

प्रांजल ने एडमिशन फॉर्म भरा, फीस जमा की और अगले दिन कितनी बजे से क्लास लेना है सब पता करके वापस घर के लिए निकल आये हम !!

शाम को मैं दीप के साथ वहीं रोड साइड अपनी बाइक पर टिक कर खड़ा हुआ था ! वो वही सुबह वाली महक आयी फिर से ! मेरा दिल जोरों से धड़क उठा ! मैं समझ गया,वही सुरमयी आंखों वाली लड़की है !!
मैं बाइक पर से उठा और उसका हैंडल पकड़ कर खड़ा हो गया ! हौले से मैंने नज़रें उठाकर देखा,सुबह तो उसका चेहरा कवर था पर अब बिना स्कार्फ़ के ही आ रही थी वो !!
उसे देख के दिल के तार फिर झंकृत हो उठे ! मंदिर के घंटे, घंटियां सब बज उठी उसे देखकर ! मन प्रसन्न हो गया अचानक से ही ! क्योंकि उसके माथे पे दो बड़ी बड़ी बिंदी लगी हुई थी ! एक कुमकुम की और दूसरी शायद चंदन या अष्टगंध की !!
मैंने तो खुशी के मारे दीप को गले लगा लिया ! दीप के गले लगे ही मैं उस लड़की को देख बडबडाया,"आज मोहतरमा मंदिर से आ रही है लगता है..!!"

आज तो भगवान पर श्रद्धा और बढ़ गयी थी मेरी ! उनसे मेरा टूटा दिल देखा नही गया !! एक बहुत बड़ी समस्या दूर कर दी थी भगवान जी ने मेरी !! लेकिन एक समस्या दूर होते ही मुझे दूसरी समस्या नज़र आ गई !!

अरे मैं तो जानता तक नही ये लड़की है कौन..? पिछले तीन महीने से देख रहा हूँ उसको !!बस, देख ही तो रहा हूँ ! इतने दिनों में मैं ना उसका नाम जान पाया और ना ही वो कहां रहती है ये..!!

उस दिन वो वापस लौट रही थी शाम के समय !! में भी मोबाइल हाथ मे पकड़ कर धीरे धीरे चलने लगा ! दीप को कॉल किया और उससे बात करने लगा !! उसने पूछा मुझसे,"कहाँ पर है भाई..??" मैंने सामान्य से थोड़ी ऊंची आवाज में कहा,"कुछ नही एक जरूरी काम से जा रहा हूँ..!!"

थोड़ी देर बाद वो लड़की एक होस्टल के अंदर चली गयी। होस्टल के बाहर नाम लिखा था,"कस्तुरबा गांधी बालिका छात्रावास..!"
मैंने खुद से ही कहा,"ओह तो मोहतरमा यहां रहती हैं..!!"

आज मुझे उसका पता ठिकाना पता चल चुका था। अब किसी तरह उसका नाम जानना था !

वो काम अब इतना कठिन नही था। क्योंकि मैं उसका पता तो जान ही चुका था। और कुछ दिन उसका पीछा करने के बाद ये भी जान गया था कि वो लड़की मेरी बहन की कोचिंग सेंटर पर ही पढ़ने या पढ़ाने जाती है।
अब पढ़ने जाती है या पढ़ाने ये नही जानता था। क्यों कि मेरी हिम्मत ही नही हुई कभी अपनी बहन से इस बारे में पूछने की या कुछ भी बात करने की।

मेरी बहन से इस सम्बंध में कुछ पूछना यानी, "आ बैल मुझे मार", वाली कहावत को चरितार्थ करना..!!

अब दिमाग भिड़ाकर, कैसे भी कर के मैं उसके बारे में इतना भी जान ही लूंगा ये तो निश्चित है।

(जारी)


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