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मोतीबाई - (एक तवायफ़ माँ की कहानी) - उपन्यास
Saroj Verma
द्वारा
हिंदी महिला विशेष
"माँ" मेरे हिसाब से ये एक ही ऐसा शब्द है,जिस पर दुनिया टिकी हुई है,मानव इतिहास के जन्म के समय से ही स्त्री माँ बनती आई है और मातृत्व को जीती आई है,ये अलग बात है कि स्त्री गर्भावस्था से लेकर प्रसवपीड़ा तक इतना कुछ झेलती है इसके बावजूद भी बच्चे को हमेशा पिता की सन्तान रूप में इंगित किया जाता है,माँ की सन्तान के रूप मे नही.... फिर भी वो कुछ नहीं बोलती,बस चुप्पी साधकर सालों साल वंश की बेल बढ़ाने की परम्परा को कायम रखती है और जमाना उसे दायित्व,फर्ज और कर्तव्य का नाम दे देता है,कितनी
"माँ" मेरे हिसाब से ये एक ही ऐसा शब्द है,जिस पर दुनिया टिकी हुई है,मानव इतिहास के जन्म के समय से ही स्त्री माँ बनती आई है और मातृत्व को जीती आई है,ये अलग बात है कि स्त्री ...और पढ़ेसे लेकर प्रसवपीड़ा तक इतना कुछ झेलती है इसके बावजूद भी बच्चे को हमेशा पिता की सन्तान रूप में इंगित किया जाता है,माँ की सन्तान के रूप मे नही.... फिर भी वो कुछ नहीं बोलती,बस चुप्पी साधकर सालों साल वंश की बेल बढ़ाने की परम्परा को कायम रखती है और जमाना उसे दायित्व,फर्ज और कर्तव्य का नाम दे देता है,कितनी
कमरें में बंद महुआ दिनभर रोती रहीं,शाम होने को आई लेकिन मधुबनी ने दरवाजा नहीं खोला,रात भी हो गई और रात को मधुबनी ने महुआ को ना खाना दिया और ना ही कमरें का दरवाजा खोला,दूसरे दिन भी महुआ ...और पढ़ेही भूखी प्यासी कमरें में पड़ी रही लेकिन निर्दयी मधुबनी ने कमरें के दरवाज़े नहीं खोले...... और फिर रात होने को आई थी,ना महुआ ने दरवाज़ा खोलने को कहा और ना मधुबनी ने दरवाज़े खोलें,ये देखकर उपेन्द्र को महुआ की कुछ चिन्ता हो आई क्योंकि करीब करीब दो दिन होने को आए थे ,महुआ को कमरें में बन्द हुए,ऐसा ना
कुछ ही दिनों में मोतीबाई उस कोठे की सबसे मशहूर तवायफ़ बन गई,अपनी गायकी और नाच से वो सबकी दिलअजीज बन गई,उसकी आवाज़ का जादू अच्छे अच्छो का मन मोह ले लेता,जो एक बार अजीजनबाई के कोठे पर मोतीबाई ...और पढ़ेठुमरी सुन लेता वो बार बार सुनने के लिए आता,अजीजनबाई के दिनबदिन ग्राहक बढ़ते ही जा रहे थें,अजीजनबाई की आमदनी भी बहुत बढ़ गई थी,जिससे वो मोतीबाई की हर इच्छा मान लेती,मोतीबाई जो भी कहती तो अजीजनबाई कभी भी उसकी बात नहीं काटती।। इस तरह मोतीबाई इस काम से खुश तो नहीं थी लेकिन उसके पास अब दौलत और
इसके बाद फिर कभी भी उपेन्द्र ने मोतीबाई पर शक़ नहीं किया,उसे प्रभातसिंह की बात अच्छी तरह समझ में आ गई थी कि प्रेम उथला नही गहरा होना चाहिए,अब मधुबनी कुछ भी कहती रहती और उपेन्द्र उसकी एक ना ...और पढ़ेतरह जिन्द़गी के दो साल और गुज़र गए,वक्त ने करवट ली और एक बार फिर मोतीबाई की गोद हरी हुई,इस तरह उसने एक बार फिर से एक और बेटी को जन्म दिया,उसका नाम मोतीबाई ने मिट्ठू रखा।। दो दो बेटियों को देखकर मधुबनी की नीयत खराब होने लगी,वो इन लड़कियों को भी कोठे पर बिठाने के सपने देखने लगी,अब
उपेन्द्र बिना देर किए हुए दोनों बेटियों को संगीत कला केन्द्र में प्रभातसिंह के साथ भरती करवाने ले गया,प्रभातसिंह की चचेरी बहन ही संगीत कला केन्द्र को चलातीं थीं इसलिए एडमिशन मे कोई दिक्कत ना हुई,बच्चियों के संगीत ...और पढ़ेचले जाने से अब उपेन्द्र और महुआ की परेशानी कुछ कम हो गई थी,फिर से उनका जीवन सुचारू रूप से चलने लगा, इसी बीच जब उपेन्द्र के पास बेटियों की जिम्मेदारी खतम हो गई तो उसने सोचा कोई काम शुरू किया जाए,वो पढ़ा लिखा तो था नहीं,इसलिए उसने एक डेरी खोलने का सोचा,शहर से बाहर उसने कुछ जमीन और कुछ गाय