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मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--भाग(२)

कमरें में बंद महुआ दिनभर रोती रहीं,शाम होने को आई लेकिन मधुबनी ने दरवाजा नहीं खोला,रात भी हो गई और रात को मधुबनी ने महुआ को ना खाना दिया और ना ही कमरें का दरवाजा खोला,दूसरे दिन भी महुआ ऐसे ही भूखी प्यासी कमरें में पड़ी रही लेकिन निर्दयी मधुबनी ने कमरें के दरवाज़े नहीं खोले......
और फिर रात होने को आई थी,ना महुआ ने दरवाज़ा खोलने को कहा और ना मधुबनी ने दरवाज़े खोलें,ये देखकर उपेन्द्र को महुआ की कुछ चिन्ता हो आई क्योंकि करीब करीब दो दिन होने को आए थे ,महुआ को कमरें में बन्द हुए,ऐसा ना हो भूख प्यास से उसकी तबियत खराब हो गई हो,ये सोचकर उपेन्द्र ने मधुबनी से कमरें के दरवाज़े खोलने को कहा.....
माँ! बहुत हो चुका ,अब खोल भी दो दरवाज़ा।।
तुझे बड़ा तरस आ रहा है उस पर,मधुबनी बोली।
तरस क्यों ना आएगा? आखिर वो मेरी वीबी जो है,उपेन्द्र बोला।।
बड़ा आया बीवी वाला,मधुबनी बोली।।
कुछ तो इन्सानियत दिखाओ,माँ! उपेन्द्र बोला।।
ले चाबी! और दरवाजा खोलकर देख जिन्दा है कि मर गई,मधुबनी बोली।।
उपेन्द्र ने चाबी ली और कमरें का दरवाजा खोला तो महुआ जमीन पर पड़ी थी,उपेन्द्र ने उसे हिलाकर जगाने की कोशिश की लेकिन महुआ ना जागी,तब उपेन्द्र भागकर पानी ले कर आया उसके मुँह पर छिड़का लेकिन महुआ तब भी होश में ना आई,उपेन्द्र जोर से चीखा.....
माँ! देखो ! इसे कुछ हो गया है जल्दी से इसे अस्पताल ले जाना होगा।।
मेरे पास पैसे नहीं हैं,मरती है तो मरने दो,मधुबनी बोली।।
इतनी कठोर मत बनो माँ! तुम भी तो एक औरत हो उसका दर्द समझने की कोशिश करों,उपेन्द्र बोला।।
तो तू ये वादा कर कि इसके ठीक हो जाने पर ये अजीजनबाई के यहाँ रहेगी तभी इसका इलाज करवाऊँगी,मधुबनी बोली।।
ठीक है माँ! मुझे तुम्हारा हर वादा और हर शर्त मंजूर है,तुम जैसा कहोगी वैसा ही होगा,पहले इसका इलाज करवाने का बन्दोबस्त करो,उपेन्द्र बोला।।
ठीक है ये ले रूपए और एक ताँगा मँगा ,जल्दी से इसे अस्पताल लेकर चल,मधुबनी बोली।।
फिर महुआ को अस्पताल ले जाया गया कुछ देर के इलाज के बाद उसने आँखें खोलीं,डाक्टर ने आकर बताया कि इन्हें एक दो दिन अस्पताल में ही रखिए,बहुत कमजोर हो चुकीं हैं,मधुबनी भी चाहती थी कि महुआ जल्द से जल्द ठीक हो जाए और अजीजनबाई के यहाँ काम पर जाने लगे,इसलिए वो उपेन्द्र से बोली.....
तू इसके पास अस्पताल में रूककर इसकी देखभाल कर मैं घर जाती हूँ और हाँ मेरी शर्त तू भी याद रखना और उसे भी बता देना,इतना कहकर मधुबनी घर आ गई।।
उपेन्द्र दो रातें और तीन दिन तक महुआ के संग अस्पताल में रहा ,उसकी बराबर सेवा करता रहा, उसके खाने पीने का ख्याल रखता रहा,जिससे उपेन्द्र के मन में महुआ के लिए हमदर्दी पनप गई,प्यार तो वो महुआ से पहले भी करता था लेकिन मधुबनी उसे महुआ के पास कभी जाने ही नहीं देती थी।।
उपेन्द्र के सेवाभाव ने महुआ के दिल में भी जगह बना ली और वो उससे पूछ ही बैठी कि तुम कभी मुझसे मिलने मेरे पास क्यों नहीं आए?तब उपेन्द्र बोला....
माँ नहीं चाहती थी कि मैं तुमसे मिलूँ,वो नहीं चाहती थी कि हम दोनों के दिल में कभी भी एकदूसरे के लिए प्यार पनपे,क्योंकि वो तुम्हें इस घर में लाई ही इसी मक्सद थी कि तुम्हें तवायफ़ बनाकर वो पैसे कमा सकें,
उपेन्द्र की बात सुनकर महुआ स्तब्ध सी हो गई और कुछ देर बाद बोली....
तो तुमने और तुम्हारी माँ ने दोनों ने मिलकर मुझे और मेरे परिवार वालों को धोखा दिया....
मैं क्या करता महुआ? मजबूर था,मुझ पर मेरी माँ का एहसान था कि मुझ जैसे अनाथ को उसने सड़क से उठाकर पालपोसकर बड़ा किया था तो उसके इस घिनौने काम में मैं भी शामिल हो गया,उपेन्द्र बोला।।
तो अगर मैं कोठे पर नाचूँगी- गाऊँगी तो तुम्हें बुरा नहीं लगेगा,महुआ ने पूछा।।
माँ! तो इसी शर्त पर तुम्हें अस्पताल लाई थी कि तुम ठीक होने पर अजीजन बाई के यहाँ काम पर जाओगी,उपेन्द्र बोला।।
तो तुमने और तुम्हारी माँ ने फैसला कर ही लिया है मुझे इस नरक में धकेलने का,महुआ बोली।।
मेरी मजबूरी है,मैं क्या करूँ? उपेन्द्र बोला।।
तो इसका मतलब है कि तुम मुझसे प्यार नहीं करते,महुआ ने पूछा।।
महुआ! सच बताऊँ तो पहले तुमसे प्यार नहीं करता था,क्योंकि तुम्हारी अहमियत नही थी मुझको लेकिन अब मैं तुम्हें चाहने लगा हूँ,मुझे भी तुम्हारे साथ की जरूरत है,तुमसे पहले भी मैने कई बार मिलने की कोशिश की लेकिन माँ के डर से तुम्हारे करीब ना आया,उपेन्द्र बोला।।
तो अब तुमने क्या सोचा है? महुआ ने उपेन्द्र से पूछा।।
करना तो हमें वही पड़ेगा जो माँ ने कहा था,इसी शर्त पर तो मैं तुम्हारी जान बचा पाया लेकिन यकीन मानो,तुम अजीजनबाई के कोठे पर सिर्फ़ नाच और गाना ही करोगी,इसके सिवा कुछ नहीं ,मैं ये तुमसे वादा करता हूँ,उपेन्द्र बोला।।
तुम पर कैसे यकीन कर लूँ मैं?महुआ ने पूछा।।
मेरे प्यार पर यकीन करो,मैं तुम्हारा शौहर हूँ,मैं कभी नहीं चाहूँगा कि दूसरा और कोई भी तुम्हें हाथ लगाएँ,उपेन्द्र बोला।।
लेकिन तुम अब ये वादा करो कि तुम हमेशा मेरे साथ रहोगें,वहाँ अजीजनबाई के यहाँ भी,महुआ बोली।।
तुम और मैं हमारे घर में ही रहेंगें,तुम केवल वहाँ नाचने और गाने जाओगी,तुम्हें ले जाने और वहाँ से लाने की जिम्मेदारी मेरी होगी,मैं माँ से ये बात कहूँगा कि हम अपने घर पर ही रहेंगें,उपेन्द्र बोला।।
सच! कहते हो! महुआ बोली।।
हाँ! बिल्कुल सच! ये कहकर उपेन्द्र ने महुआ को पहली बार अपने सीने से लगाया।।

अब महुआ ठीक होकर घर आ गई थी लेकिन अभी भी वो कमजोरी महसूस कर रही थी,इसलिए उपेन्द्र अब घर से बाहर ना जाता ,घर में रहकर उसका ख्याल रखता था,वो मधुबनी को अब महुआ के पास फटकने भी नहीं देता था,ये देखकर मधुबनी खींझ उठती लेकिन अब वो कुछ नहीं कर सकती थी क्योंकि महुआ और उपेन्द्र ने उसकी शर्त जो मान ली थी.....
अब उपेन्द्र कहता कि वो उसकी पत्नी है इसलिए उसके दुख दर्द का ख्याल रखना उसका ही फर्ज है,तुम्हारा हमसे सिर्फ़ रूपए का नाता है जब महुआ कमाने लगेगी तो अपना हिसाब पूरा कर लेना और उसके कमरे मे तुम अब भूलकर भी कदम नहीं रखोगी।।
ये देखकर महुआ को तसल्ली हो गई थी कि चलो अब कोई तो है उसका मन पढ़ने वाला,उसके आँसू पोछने वाला ,उसका दर्द समझने वाला।।
कुछ दिन ऐसे ही बीते अब महुआ पूर्ण रूप से स्वस्थ हो चुकी थी और एक रोज शाम के वक्त मधुबनी उसे तैयार करके अजीजनबाई के यहाँ ले गई,साथ में उपेन्द्र भी गया,अजीजनबाई के कोठे पहुँचकर मधुबनी ने महुआ के रूख से परदा हटाते हुए अजीजनबाई से कहा.....
लो ले आई मैं तेरे कोठे के लिए एक और खूबसूरत चेहरा....
अजीजनबाई ने जैसे ही महुआ को देखा तो उसका रूप-लावण्य देखकर बोली......
मधुबनी बाई! यूँ तो तुम पहले भी हमारे कोठे पर नायाब खूबसूरत चेहरे लाती रही हो लेकिन ये सुन्दर मोती समुद्र की किस तलहटी से ढूढ़कर लाई हो?अल्लाह कसम क्या हुस्न पाया है? बला है बला!
अजीजन! ये मेरी बहु है,इस उपेन्द्र की बीवी,मधुबनी बोली।।
क्या कहती हो? इस बार बहु को ही दाँव पर लगा दिया,कुछ भी नहीं सोचा,अजीजन बोली।।
हम तवायफें इतना सोचने लगीं तो दुनिया के कोठे ना बंद हो जाएंगे अजीजन! ,मधुबनी बोली।।
सही कहती हो मधुबनी! अजीजन बोली।।
लेकिन एक शर्त मेरी भी है कि ये सिर्फ़ नाचेगी और गाएंगी,यहाँ रहेगी नहीं,मधुबनी बोली।।
ठीक है मधुबनी! इस नायाब मोती के लिए तो हमें हर शर्त मंजूर है,वैसे इसका नाम क्या है? अजीजन ने पूछा।।
इसका नाम महुआ है,मधुबनी बोली।।
तुम ही सबकुछ बोलोगी,जरा हमें भी तो इस हूर की आवाज़ सुनने का मौका दो,नहीं तो कैसे पता चलेगा हमें कि ये गाती भी है,अजीजन बोली।।
जी,मेरा नाम महुआ है,महुआ बोली।।
आवाज़ तो बहुत ही सुरीली है तेरी ,माशाल्लाह!और आज से तेरा नाम महुआ नहीं मोतीबाई होगा,तुम्हें कोई एतराज़ तो नहीं,अजीजनबाई बोली।।
एतराज कैसा अजीजन?मधुबनी बोली।।
अरे,मधुबनी! मैने तुझसे नही महुआ से पूछा है,अजीजनबाई बोली।।
जी,मुझे कोई एतराज़ नहीं,महुआ बोली।।
ठीक है तो आज ये तय हुआ कि तुम्हारा नाम मोतीबाई है और मुझे आज से तुम खालाज़ान बुलाओगी,अजीजनबाई बोली।।
ठीक है खालाज़ान! महुआ बोली।।
और उस दिन आखिर महुआ के पहले कदम कोठे पर पड़ ही गए।।

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....



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