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मोतीबाई--(एक तवायफ़ माँ की कहानी)--भाग(१)

"माँ" मेरे हिसाब से ये एक ही ऐसा शब्द है,जिस पर दुनिया टिकी हुई है,मानव इतिहास के जन्म के समय से ही स्त्री माँ बनती आई है और मातृत्व को जीती आई है,ये अलग बात है कि स्त्री गर्भावस्था से लेकर प्रसवपीड़ा तक इतना कुछ झेलती है इसके बावजूद भी बच्चे को हमेशा पिता की सन्तान रूप में इंगित किया जाता है,माँ की सन्तान के रूप मे नही....
फिर भी वो कुछ नहीं बोलती,बस चुप्पी साधकर सालों साल वंश की बेल बढ़ाने की परम्परा को कायम रखती है और जमाना उसे दायित्व,फर्ज और कर्तव्य का नाम दे देता है,कितनी अजीब बात है ना कि इतनी सदियांँ बीत जाने के बाद भी आज तक लोगों की मानसिकता नहीं बदली।।
हाँ तो माँ रूपी हाथ दुनिया का वो हाथ है जो जिसके सिर पर रहता है तो उसकी दुनिया सँवर जाती है,ऐसा ही एक हाथ था मेरे ऊपर ,वो मेरी माँ थी लेकिन दुनिया के नज़रो में वो एक तवायफ थी,जिसे समाज ना जाने कैसे कैसे नामों से पुकारता है,वैश्या,कोठेवाली,धंधेवाली और भी बहुत से नाम है जो शायद बोलने और लिखने मे मुझे अच्छे नहीं लगते इसलिए नहीं लिखे.....
वो जमींदारी और रजवाड़ों का जमाना था,मेरे नाना जी आदिवासी परिवार से ताल्लुक रखते थे,राजासाहब ने ऐसे परिवारों को एक अलग से छोटा सा गाँव दे रखा था,वें समय समय पर उस गाँव का दौरा करने जाते अगर उन परिवारों में से कोई खूबसूरत और जवान लड़की उन्हें पसंद आ जाती तो वो उनके राजभवन की शोभा बनती और जिसे नाचने गाने का शौक होता तो राजा उन्हें तालीम दिलवाकर अपने शाम की मनोरंजक महफिलों के लिए चुन लेते थे।।
और यही डर मेरे नाना नानी के मन में बैठ गया गया था क्योंकि बेटे की चाह में उन्होंने पाँच बेटो को जन्म दे दिया था,लेकिन तब भी छठी बेटी ही हुई,उनकी बेटियाँ सुन्दर थीं क्योंकि नानी भी सुन्दर थीं,उन्हें राजा का डर था कि कहीं राजा उनकी बेटियों को राजभवन ना ले जाए,इसी अफरातफरी में उन्होंने एक एक करके सभी बेटियों का बाल-विवाह करना शुरू कर दिया।।
जो भी जैसा लड़का मिला चाहें उम्र में दुगना ही क्यों ना हो,चाहे कुछ भी काम ना करता हो बस उन्हें तो अपनी बेटियों को जल्द से जल्द पराए घर भेजना था और इस जल्दीबाजी में कुछ को तो भले घर नसीब हो गए लेकिन कुछ को तो ऐसा जीवन मिला जो शायद किसी ने उसकी कल्पना भी ना की हो.....
तो ऐसी ही नानी की सबसे छोटी बेटी यानि की मेरी माँ जिसका नाम उन्होने महुआ रखा था,तो महुआ जब नौ दस साल की रही होगी तो उसका ब्याह एक उन्सीस-बीस साल के लड़के साथ कर दिया गया क्योंकि महुआ के पिता के पास इतने पैसे ही नहीं थे कि वो अपनी बेटी के लिए ढंग का घर ढ़ूढ़ सकें,उस लड़के के परिवार में केवल उसकी माँ और वो ही थे,वो लड़का महुआ के संग ब्याह करके ,अपनी माँ और महुआ के संग कलकत्ता चला गया,बाद में महुआ को पता चला कि वो औरत उसके पति की सगी माँ नहीं है,उसने उसके पति को सड़क से उठाकर पाला था, उस औरत ने महुआ को अच्छे फनकारों के यहाँ संगीत और नृत्य की तालीम दिलवाई,महुआ ने सोचा चलो उसे माँ बाप के घर में कुछ सीखने को नहीं मिला,कम से कम यहाँ वो कुछ तो सीख पा रही है......
उसे नहीं मालूम था कि आगें चलकर विधाता उसके संग कितना बड़ा मज़ाक करने वाला है,उसकी जिन्द़गी में तूफान लाने वाला है....
महुआ के चौदह पन्द्रह तक का होने तक उसके पति उपेन्द्र को उसकी सास मधुबनी ने उसके करीब भी नहीं आने दिया,वो महुआ का बहुत ध्यान रखती थी उसे अपनी बेटी की तरह चाहती थी लेकिन ये बात महुआ कभी नहीं सोच पाई कि मधुबनी जो उसका ख्याल रखती है उसके पीछे उसका कोई स्वार्थ छिपा है,
मधुबनी नहीं चाहती थी की महुआ की खूबसूरती में कोई भी कमी आएं,वो उसके खाने का ख़ास ख्याल रखती थी,जिसे महुआ का बदन हृस्ट-पुष्ट और सुन्दर दिखाई देता था,उसकी साज सज्जा का भी वो बहुत ध्यान रखती थी,रोज नए गहने और कपड़ो से उसे सजाती रहती थी।।
अब महुआ पन्द्रह की होने आई थी उसके संगीत और नृत्य की तालीम भी पूरी हो चुकी थी,तो एक दिन मधुबनी ने महुआ से कहा....
अब वक्त आ गया है कि तुझे तेरी मुनासिब जगह पहुँचा दिया जाएं.....
मुनासिब जगह ! आपका मतलब क्या है माँ? महुआ ने पूछा।।
इतने सालों से तेरे ऊपर इतना बेहिसाब पैसा कर रही हूँ,तुझे संगीत की तालीम दिलवाई,तेरे हर शौक पूरे किए,वो इसलिए कि अब तेरी बारी है मेरा हिसाब चुकाने की,मधुबनी बोली।।
मैं समझी नहीं माँ कि तुम क्या कहना चाहती हो? महुआ ने पूछा।।
यही कि अब तू मुझे कमाकर देगी,मधुबनी बोली।।
मुझे क्या कोई नौकरी करनी होगी? महुआ ने पूछा।।
नौकरी नहीं! अब तुझे नाचना गाना होगा,वो भी कोठे पर,मधुबनी बोली।।
कोठे पर! क्यों? मगर! ऐसा मैने क्या गुनाह किया है? महुआ ने पूछा।।
तूने गुनाह तो उसी दिन कर दिया था जब तूने गरीब माँ बाप के घर जन्म लिया था वो भी उनकी बेटी बनकर,मधुबनी बोली।।
तो क्या उस गुनाह की सजा तुम मुझे दोगी?महुआ ने पूछा।।
अरे,एहसान मान की तुझ जैसे गरीब घर की लड़की को उपेन्द्र ब्याह कर लाया नहीं तो बैठी होती राजा के राजभवन में उसकी रखैल बनकर,मधुबनी बोली।।
तो तुम भी तो मुझसे वही करवाना चाहती हो,इसे एहसान मत कहो,मजबूरी का फायदा उठाना कहो,महुआ जोर से चीखी।।
चीख मत! अपनी आवाज पर काबू रख नहीं तो ठुमरी ,दादरा गाकर लोगों का जी कैसे बहलाऐगी?मधुबनी बोली।।
मै तो समझती थी कि तुम मेरी माँ हो लेकिन तुमने तो मुझे कहीं का ना रखा,महुआ बोली।।
तवायफें किसी की माँ,बहन और वीबियाँ नहीं होतीं,वो तो केवल गैर मर्दों का जी बहलाने का सामान होतीं हैं,मैं भी पहले एक तवायफ हुआ करती थी,लेकिन जब तक उम्र थी तो लोंग इन्हीं कदमों पर गिरकर मेरी गजलों और नाच के कायल हो जाते थे लेकिन उम्र ढ़ली तो फिर कोई नहीं पूछता और तेरी तरह मेरा तो कोई पति भी नहीं था,ना कोई घरवाले,तेरा पति एक रात लावारिस सड़क के किनारे पड़ा था तो उठा लाई और उसे अपना बेटा बना लिया......मधुबनी बोली।।
तुम तवायफ थी तो मुझे क्यों तवायफ बनाने पर तुली हो? हम इज्जत की जिन्दगी भी तो बसर कर सकते हैं,कोई काम कर लेते हैं,मैं बहुत मेहनत करूँगी,महुआ बोली।।
नहीं! तेरा सौदा तय हो चुका है,अजीजनबाई के यहाँ,तू अब से वहीं रहेगी और मैं भी,मधुबनी बोली।।
लेकिन मैं ये धन्धा करने को तैयार नहीं,महुआ बोली।।
देख जिद मत कर मेरे पास और भी बहुत रास्ते हैं तुझे मनवाने के,मधुबनी बोली।।
मैं जिद नहीं कर रही ,मैं तुम्हारी बेटी जैसी हूँ,जब कोई मेरा जिस्म छुएगा तो तुम्हें ये अच्छा लगेगा,महुआ ने पूछा।।
ये धन्धा नहीं है तुझे वहाँ सिर्फ़ गाना और नाचना होगा,मैं तुझसे वादा करती हूँ कि कोई भी तेरे जिस्म को हाथ नहीं लगाएगा,मधुबनी बोली।।
मैं इस घर से कहीं भाग जाऊँगी,लेकिन ये काम नहीं करूँगी,महुआ बोली।।
भागकर भी कहाँ जाएगी? उस माँ बाप के यहाँ ,जहाँ वहाँ का राजा भी लड़कियों का सौदा करता है,कहीं भी चली जा लेकिन अपनी आबरू नहीं बचा पाएगी,मधुबनी बोली।।
तो तुमने ठान ही लिया है कि मुझे तवायफ बनाकर रहोगी,महुआ बोली।।
तुम्हें ये काम करना ही पड़ेगा,अब और मेरे बस में नहीं है तेरा और तेरे पति का खर्चा उठाना,मधुबनी बोली।।
तो तुम ये सब मुझसे पैसे के लिए करवाना चाहती हो,महुआ बोली।।
पैसा ही सबकुछ होता है इस दुनिया में,दौलत के आगे ही दुनिया झुकती है,मधुबनी बोली।।
तुम बहुत गिरी हुई औरत हो जो पैसों के लिए ये सब करवाना चाहती है,महुआ बोली।।
एक दिन मैं भी इसी तरह किसी के आगे गिड़गिड़ाई थी और मेरी भी उसने एक भी नहीं सुनी थी,मधुबनी बोली।।
तो तुम भी मेरे साथ यही करोगी,महुआ बोली।।
हाँ और कल तैयार रहना अजीजनबाई के कोठे पर जाने के लिए और इतना कहकर मधुबनी ,महुआ को कमरे में कैद़ कर के चले गई....

क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....


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