Ye bhi ek jindagi book and story is written by S Bhagyam Sharma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Ye bhi ek jindagi is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अध्याय 1 तमिलनाडु से महादेव और उनकी पत्नी पार्वती महाराष्ट्र के होशंगाबाद शहर में नौकरी के लिए आए । हिंदी ना जानने के कारण उन्हें बहुत परेशानी हुई । पार्वती अड़ोसी-पड़ोसी से बातें कैसे करें? भाषा की समस्या। पार्वती ...और पढ़ेकैसे रहेगी? टूरिंग जॉब भी थी अतः पार्वती की छोटी बहन लाली को उनके साथ भेज दिया। महादेव जी अक्सर टूर पर ही रहते अतः दोनों बहनें ही साथ रहती थी। बाहर ठेले वाला कुछ बेचता तो छोटी बहन लाली जाकर क्या बोल रहा है और क्या चीज है देख कर आती और अपनी बहन को बताती तो उस चीज
अध्याय 2 एक दिन हमारे पिताजी भाइयों को बुला कर कुछ कह रहे थे और मेरे जाते ही चुप हो गए। मुझे तो यह बात बुरी लगी। मैं रोने लगी। पिताजी को मेरा रोना बिल्कुल पसंद नहीं। वे समझाने ...और पढ़े"रेणुका तुम बहुत सीधी हो। तुम मेरी प्यारी बेटी हो मैं जानता हूं। आज कोई सज्जन आने वाले हैं। मैं उनसे मिलना नहीं चाहता। मैं इन्हें कह रहा था वह आए तो ‘मैं घर पर नहीं हूं कह देना।’ "पर रेणुका तुम तो सीधेपन में कह देती हमारे पापा ने ऐसा कहा है कि वह घर पर नहीं हैं ।"अब
अध्याय 3 उस जमाने में लड़का-लड़की दिखाने का रिवाज था। उस रिवाज के मुताबिक लड़के वाले मुझे देखने आ रहें थे। मेरी नानी मुझे कुएं के पास पिछवाड़े में ले जाकर बार-बार समझाने लगी "देख रेणुका लड़के को देखकर ...और पढ़ेमना मत कर देना। तुम्हें पता हैं रेणुका वह कोने वाले घर की लड़की सीमा ने एक लड़के को देखकर मना कर दिया था और आज तक उसकी शादी नहीं हुई। ममता को तो तुम जानती ही हो रेणुका उसने भी लड़का काला है इसलिए मना कर दिया उसे उसके बाद और भी बुरा मिला।” मैं सिर्फ साढ़े अट्ठारह साल
अध्याय 4 मेरे पीहर में नल लगे हुए थे। गवर्नमेंट क्वार्टर्स थे। बाथरूम, रसोई और चौक सब में अलग-अलग नल। यहां पर नहाने के लिए नमकीन पानी कुंए से खींच कर भरना पड़ता था। ताजा पानी पीने के लिए ...और पढ़ेको हाथ से चलाकर पानी निकालना पड़ता था। बहुत ताकत लगती थी। ऐसे काम मैंने कभी किया नहीं था। मैं चुप रहती कुछ नहीं बोलती मां-बाप को भी कह नहीं सकती। ऐसे ही दिन गुजर रहे थे। मुझसे कुछ गलती हो जाती तो सासू मां पति से शिकायत करती तो वह कहते जो चप्पल पैर के लिए ठीक नहीं उसे
अध्याय 5 वहां मुझे रखने वाला भी कोई नहीं था। पर सासु मां ने मुझे पत्र लिखने के लिए कहा। ननद ने भी आते रहने को कहा। सब दिखावा मात्र था। खैर मुझे भोपाल ले आए । जितनी मुंह ...और पढ़ेबातें। सारे मिलने जुलने वाले पूछने आ गए। मैं किसी के सामने गई नहीं। सब अम्मा से कुरेद-कुरेद कर पूछ रहे थे। अम्मा बहुत परेशान हो गई। मुझे तो सोने के लिए कह दिया । मैं तो चादर ओढ़ कर लेटी रही। एक हमारे खास पहचान की औरत थी उसने राय दी "रेणुका को डॉक्टर बनाओ।" मेरी अम्मा ने कहा