Pratishodh book and story is written by Ashish Dalal in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Pratishodh is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
प्रतिशोध. - उपन्यास
Ashish Dalal
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
ढ़लती दोपहर को अपने कमरे की खिड़की के पास बैठे हुए श्रेया बाहर बरसती बारिश की बूंदो को अपलक निहार रही थी । पास रखे उसके मोबाइल पर जगजीत और चित्रा सिंह की आवाजें गूंज रही थी ।
‘ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो । भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी ।
मगर मुझको लौटा दो । बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी ।’
आशीष दलाल (१) ढ़लती दोपहर को अपने कमरे की खिड़की के पास बैठे हुए श्रेया बाहर बरसती बारिश की बूंदो को अपलक निहार रही थी । पास रखे उसके मोबाइल पर जगजीत और चित्रा सिंह की आवाजें गूंज रही ...और पढ़े। ‘ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो । भले छीन लो मुझसे मेरी जवानी । मगर मुझको लौटा दो । बचपन का सावन, वो कागज की कश्ती, वो बारिश का पानी ।’ असंख्य बूंदों का धरती पर गिरते ही अपना स्वरूप मिटा कर पानी की पतली सी धारा में एकाकार होते हुए देखना श्रेया को बचपन
(२) नैतिक का सवाल सुनकर श्रेया चुप थी । फिर खुद ही बोलने लगी, ‘तुम्हें यह तो पता ही है कि रोहन के पापा मेरे पापा के बहुत करीबी दोस्त रहे है । मेरी और रोहन की शादी होने ...और पढ़ेएक कारण उनकी दोस्ती भी रही है ।’ नैतिक को श्रेया की बात का विश्वास नहीं हुआ और वह हंसते हुए बोला, ‘तुम ये फिल्मी बातें बनाकर मुझे सुनाओगी और मैं मान जाऊंगा ? रहने दो श्रेया.... तुम्हें पता है न मुझे झूठ पसंद नहीं ।’ ‘मेरी बात का यकीन करो नैतिक । तुम्हें सबकुछ पता होगा लेकिन एक बात
(३) अंधेरें में दोनों कुछ देर तक आपस में लिपटकर एक दूसरे की देह की गर्माहट को अनुभव करते रहे । तभी लाईट आ गई और पूरा कमरा फिर से रोशनी से भर गया । नैतिक की पकड़ अचानक ...और पढ़ेश्रेया पर ढ़ीली पड़ गई । ‘आय एम सॉरी ! मैं बहक गया था ।’ कहते हुए नैतिक श्रेया से दूर हट गया । श्रेया अनिमेष दृष्टि से नैतिक को निहार रही थी । क्षणभर के लिये आया नैतिक का आवेग अब थम चुका था । बारिश अब रुक रूककर धीमे धीमे बरस रही थी । अचानक ही आगे बढ़कर
(४) रात को वन्दना ने याद कर नैतिक की पसन्द की चीजें खाने में बनाई थी । श्रेया ने काफी दिनों से खाली पड़े फ्लावर पॉट में रजनीगंधा के फूलों के बीच दो लाल गुलाब की कलियां सजाकर डाइनिंग ...और पढ़ेके बीच रख दी थी । फ्लावर डेकोरेशन श्रेया का शौक था लेकिन जिन्दगी की आपाधापी में कब उसका यह शौक पीछे छूट गया वह खुद ही नहीं जान पाई थी । आज वह बहुत खुश लग रही थी । लाईट ग्रीन कलर के सलवार पर काले रंग की चुनरी उसके ऊपर खूब फब रही थी । अपने चौड़े माथे
(५) चार महीनों बाद दीवाली के बाद एक सादे समारोह के रूप में करीबी रिश्तेदारों की हाजरी में नैतिक और श्रेया की शादी सम्पन्न हो गई । श्रेया को इस बार अपनी मम्मी का घर छोड़कर अपने अरमानों के ...और पढ़ेमें गृह प्रवेश करते वक्त न रुलाई फूटी और न कुछ पीछे छूट जाने का अहसास हुआ । उसके लिए नैतिक के घर आना उतना ही आसान था जितना की किसी का एक ही मोहल्ले में एक घर खाली कर दूसरे घर जाना । ‘नैतिक, दस दिन हो गए पर तुमने अभी तक नहीं बताया कि हम अपना हनीमून कहां