प्रतिशोध - 8 Ashish Dalal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रतिशोध - 8

(८)

दो सप्ताह के भीतर ही श्रेया और नैतिक के डायवोर्स पर कोर्ट की मोहर लग गई । कोर्ट से बाहर निकलते हुए नैतिक के चेहरे पर श्रेया को देखकर एक फीकी सी हंसी छा गई । कोर्ट की सीढ़ियां उतरकर अपने से दूर जाते हुए नैतिक को देखकर श्रेया को वह दिन याद आ गया जब वह अपने घर का सामन ट्रक में रखवा कर खाली मकान को ताला लगाकर सभी से विदा ले रहा था । राधिका गांव जाने के बाद फिर वापस आई ही नहीं । नैतिक मकान बिक जाने के बाद आखरी बार आकर वापस लौटते हुए भीगी हुई आंखों से आस पड़ौसियों से मिला । वन्दना को उसने दूर से ही हाथ जोड़कर प्रणाम कर उनके पास खड़ी श्रेया पर तिरछी नजर डाली और फिर एक गहरी सांस छोड़ते हुए मुस्कुरा दिया ।

श्रेया अब भी उम्मीद लगाये थी कि नैतिक वापस मुड़कर एक बार जरुर उससे बात करेगा लेकिन नैतिक ने न तो पीछे मुड़कर देखा और न ही श्रेया उसे रोक सकी ।

तेजी से कोर्ट की सीढ़ियां उतरकर शीघ्र ही नैतिक श्रेया की आंखों से ओझल हो भीड़ में कहीं खो गया । श्रेया काफी देर तक कोर्ट के पास के कॉफ़ी शॉप में बैठी रही और फिर वहीं से एक बजे के लगभग ऑफिस चली गई ।  

ऑफिस पहुंचकर रिसेप्शन डेस्क पर खड़ी स्नेहा से उसकी नजर मिली तो वह उसे देखकर मुस्कुराई और आगे बढ़ गई ।

‘श्रेया !’ तभी स्नेहा ने उसे आवाज दी ।

‘सुबह ये कोरियर तुम्हारें नाम से आया है ।’ श्रेया ने पीछे मुड़कर देखा तो स्नेहा ने एक सफेद लिफाफा उसके हाथ में रखते हुए कहा ।

श्रेया ने आश्चर्य से उस लिफाफे को देखा । नैतिक की लिखावट पहचानने में उसे देर न लगी ।

‘नैतिक भला अब मुझे पत्र क्यों लिखेगा ?’ सोचते हुए वह लिफाफा लेकर अपनी डेस्क पर आ गई ।

श्रेया,

जब यह पत्र तुम्हारें हाथ में होगा तब तक शायद हम दोनों की जिन्दगी की राह कानूनी तौर पर भी अलग अलग हो चुकी होगी । तुम सोच रही होगी कि अब सबकुछ खत्म हो जाने के बाद मैं यह पत्र क्यों लिख रहा हूं लेकिन पत्र लिखकर तुम्हें अहसास करवाना चाहता हूं मेरा प्यार, मेरी चाहत तुम्हारें लिए कभी भी खत्म नहीं हुई । आज भी दिल के एक कोने में बचपन से लेकर अब तक साथ बितायें हुए हर एक लम्हें सहेजकर रखें हुए है मैंने । उन यादों को मिटाने की बहुत कोशिश की लेकिन सच्चा प्यार पत्थर की लकीर की तरह होता है न ! खींचने के बाद लाख चाहने पर भी उसे मिटाया नहीं जा सकता । इसलिए अपने अब अपने दिल को ही पत्थर का बना लिया है ताकि अब कोई चोट न लगे । 

नि:सन्देह तुम मेरी बहुत अच्छी और करीबी दोस्त रही हो । प्रेमिका बनकर भी तुमने मेरी जिन्दगी के उदास पलों को रोशन किया लेकिन इन सबके बावजूद तुम एक अच्छी पत्नी न बन सकी । बुरा मत लगाना लेकिन इसमें तुम शादी लायक मटेरियल हो ही नहीं । जिन्दगी में हमेशा से तुम्हें तुम्हारी जीत ही पसन्द रही और तुम्हारें हारने पर भी तुम्हें मैंने उस जीत का अहसास हर बार करवाया । जब तक तुम मेरी दोस्त और प्रेमिका बनकर रही तब तक न तो मेरा इगो तुम्हारी खुशियों के आड़े आया और न ही तुम्हारें इगो ने मुझे परेशान किया । लेकिन श्रेया, शादी के बाद हमारी जिन्दगी के सारे समीकरण बदल गए । तुम उड़ना चाहती थी, मैं भी तुम्हें बांधकर नहीं रखना चाहता था पर अनायस ही हमारी जिन्दगी में आई हुई खुशियों को तुमने अपने पैरों की बेडियां समझ लिया । तुमने जब हमारा बच्चा गिराने की बात कही थी तो मुझे बुरा लगा था । बहुत बुरा लगा था । मैं शायद तुम्हारी खुशियों के आगे अपनी हार मानकर तुम्हारें फैसले को स्वीकार कर भी लेता लेकिन जब तुमनें मुझे अन्धेरें में रखकर अपनी जीत हासिल कर ली तो जिन्दगी में तुम्हारें साथ मुझे पहली बार अहसास हुआ कि मैं हार गया । जाने अनजाने में तुमने मेरे इगो पर चोट की थी श्रेया । हमारे रास्तें तो उसी दिन से अलग होना शुरू हो गए थे लेकिन मैं फिर भी तुमसे मिलकर बात करना चाहता था और शायद तुम भी मुझसे बात करना चाहती थी । तुम मेरी राह देखती रही और मैं तुम्हारी राह देखता रहा । न तुम अपना इगो सम्हाल पाई और न ही मैं । मम्मी के समझाने पर मैं तुमसे तुम्हें मारे गए उस एक चांटे के लिए माफी मांगने को भी तैयार हो गया था लेकिन यहां भी तुमने ही जीत हासिल कर ली थी । जिन्दगी में स्वाभिमानी इन्सान सबकुछ झेल सकता है लेकिन अपनी बदनामी झेलकर उसके जीने की सारी वजह खत्म हो जाती है । थाने से लौटने के बाद उस रात मैं सुसाइड कर ही लेता अगर उस वक्त गांव से मामी के स्वर्ग सिधारने की खबर न आती । लेकिन शायद तुम्हारी किस्मत में मेरी विधवा होकर जीना नहीं लिखा था ।   

विधवा से ज्यादा मार्डन शब्द डायवोर्सी है । उम्मीद है अपने इस नये स्टेट्स को पाकर खुश होगी । 

जब तक जियूंगा तुम्हें भूल तो नहीं पाऊंगा । तुम्हारें दिए गए एक एक जख्म तुम्हारें होने के अहसास की याद दिलाते रहेंगे मुझे । तुम भी अगर अपनी जिन्दगी की खुशियां चाहती हो तो प्लीज अब किसी से दोबारा शादी मत करना । तुम शादी लायक मटेरियल नहीं हो ।

ऑल द बेस्ट !

नैतिक 

पत्र पढ़कर श्रेया की आंखें गीली हो गई और वह और ज्यादा उदास हो गई । न चाहते हुए किसी अति प्रिय चीज के हाथ से छीन जाने का अहसास होने पर वह रो पड़ी । तभी उसकी नजर अपनी डेस्क पर पड़े एक गुलाबी लिफाफे पर पड़ी । उस पर नीले रंग से उसका नाम प्रिंट था । अचरज के साथ उसने लिफाफा खोला ।

खूबसूरती क्या पाई है तुमनें । कमबख्त जी ही नहीं भरता ।

पास आ जाओ एक बार । वादा करते है दूर न करेंगे कभी ।

अभी वह नैतिक का पत्र पढ़कर पुरानी यादों और की गई भूलों के अहसास के भार को सम्हालने की कोशिश ही कर रही थी इस पत्र के अन्दर लिखी गई पंक्तियां पढ़कर उसका चेहरा गुस्से से लाल हो गया । उसने ऑफिस में चारों ओर नजरें दौड़ाई । सभी अपने अपने कामों में व्यस्त थे । गुस्से से उसने कागज के कई टुकड़े किए और डस्टबिन में डाल दिए ।

दो दिनों के बाद ऑफिस बॉय श्रेया के हाथों में वैसा ही एक और गुलाबी लिफाफा थमा गया । श्रेया ने जब उससे इस बारें में पूछपरख की तो उसने बेपरवाह होते हुए जवाब देकर उसे घूरा ।

‘मैडम, कोई लड़का आया था । आपका नाम देकर यह दे गया । मुझे लगा आपको जानता होगा वह । आप नहीं जानती उसे ?’

‘शटअप ! माइंड योअर ओन बिजनेस ।’ श्रेया उस पर झल्ला उठी । श्रेया के बिगड़े हुए तेवर देखकर वह वहां से रफूचक्कर हो गया ।

श्रेया ने वह लिफाफा लेकर ड्रोअर में रख दिया लेकिन फिर काम में उसका मन न लगा तो अंततः उसने वह लिफाफा खोला ।

श्रेया स्वीट हार्ट !

सुना है तुम्हें दो दो मर्दों को फंसाकर उन्हें लूटने का अच्छा खासा अनुभव है । पार्ट टाइम जॉब ऑफर है फोन पर रोमांटिक मर्दों से बात करने का । इच्छा हो और हां हो तो कल लाल रंग का सूट पहनकर आना ऑफिस । ठीक है, बाकी की बातें कल ।’

तुम्हारा ही शुभचिंतक 

श्रेया पत्र पढ़कर आगबबूला हो गई । उसे लगा ऑफिस का ही कोई कर्मचारी उसे परेशान कर रहा था । उसका मन हुआ कि यह अनाम पत्र लेकर वह बॉस के पास जाकर शिकायत कर दे लेकिन फिर वह यही सोचकर रुक गई कि ऐसा करने से उसे परेशान करने वाला सतर्क हो जाएगा और पकड़ में नहीं आएगा । उसने एक नजर फिर से उस पत्र पर डाली और गुस्से से पत्र के टुकड़े कर उसे डस्टबीन के हवाले कर दिया । 

खुद को मिल रहे अनाम पत्रों को भेजने वाले को पकड़ने के इरादे से अगले दिन श्रेया लाल रंग का सूट पहनकर ऑफिस गई । सारा दिन उसकी नजरें किसी को खोजती रही । शाम को ऑफिस छूटने तक वह पूरा दिन दुविधा में रही । उस पत्र के बारें सोच सोचकर वह परेशान हो चुकी थी । 

घर पहुंचकर कपड़े बदलकर जैसे ही वह सोफे पर सुस्ताने के लिए बैठी, सामने टेबल पर पड़े अखबार के नीचे उसे एक गुलाबी रंग का लिफाफा झांकता हुआ नजर आया । 

‘मम्मी ! मम्मी !’ वह लिफाफा हाथ में लेकर जोर से चिल्लाई ।

‘क्या है ? क्यों चिल्ला रही है ?’ वन्दना ने उसके पास आकर पूछा ।

‘ये लिफाफा कौन दे गया ?’ 

‘अरे ! तुझे बताना ही भूल गई । शर्मा जी का चिन्टू दे गया । कह रहा थी उसे कोई दाढ़ी वाले भैया तुम्हें देने के लिए देकर कह गए थे ।’ श्रेया के हाथ में लिफाफा देखकर वन्दना ने जवाब दिया ।

‘व्हाट !!!’

‘क्या चल रहा है श्रेया ये सब ?’ वन्दना ने चिन्ता व्यक्त करते हुए श्रेया की तरफ देखा ।

‘तो तुमने इसे खोलकर पढ़ लिया ?’ श्रेया घबरा उठी ।

‘नहीं । तेरी चीजों को हाथ लगाना ही बंद कर दिया है मैंने अब । कब किस बात पर गुस्सा हो जाती समझ ही नहीं आता ।’ कहते हुए वन्दना वहां से जाने लगी ।

‘आपकी चंडीगढ़ की टिकिट कन्फर्म हो गई है । वहां से मनाली के लिए टैक्सी कल बुक करवा दूंगी ।’ तभी श्रेया को याद आया ।

‘शुक्र है ! मेरी थोड़ी बहुत चिन्ता तो है तुझे ।’ वन्दना ने श्रेया की बात सुन कहा और कीचन में चली गई ।

वन्दना के वहां से जाते ही श्रेया ने डरते डरते लिफाफा खोला ।

आज बड़ी सुन्दर लग रही थी लाल ड्रेस में लाल परी ! पर माफ करना, कल वाली बात तो एक मजाक ही थी । तुम्हारी परीक्षा ले रहा था । वाकई दम तो है तुममें । अच्छा तो कल पक्का मिलते है ऑफिस में । पहचान तो लोगी न मुझे ? ऑफ व्हाइट और ब्लू जींस पहनकर आऊंगा कल । 

पत्र पढ़कर श्रेया और भी ज्यादा परेशान हो उठी । अब तक वह पूरी तरह समझ चुकी थी कि उसे परेशान करने वाला शख्स ऑफिस का ही कोई व्यक्ति है जो उसका घर का पता भी जानता है ।

अगली सुबह श्रेया समय से पहले ही ऑफिस पहुंच गई । अपने महत्वपूर्ण ईमेल्स चैक करने के बाद वह इत्मिनान से बाकी का काम करने लगी लेकिन काम से ज्यादा उसका ध्यान आज ऑफिस के पुरुषों पर था । वह बार बार अपनी जगह पर खड़े होकर पुरुष कर्मचारियों ने पहन रखे कपड़ों पर नजर रख रही थी । अब तक ऑफिस का पूरा स्टॉफ आ चुका सिवाय बॉस के । ऑफिस में अब तक हाजिर सभी पुरुष कर्मचारियों में से किसी को भी ऑफ व्हाइट शर्ट और ब्लू जींस में न पाकर वह परेशान हो उठी । 

‘गुड मोर्निंग श्रेया !’

गुड .. गुड मोर्निंग सर !’ पीछे से जाना पहचाना पुरुष स्वर सुनकर श्रेया पीछे मुड़कर खड़ी हो गई ।

‘कैसी हो ? ऑल सैटल्ड इन योअर लाइफ नाऊ ! राइट ?’

‘जी.. जी सर !’ अचकाते हुए श्रेया ने अपने सामने खड़े बॉस को जवाब दिया । 

‘करण सर, ये ऑफ व्हाइट शर्ट और ब्लू जींस आप पर बहुत जंच रहा है ।’ श्रेया ने जानबूझ कर अपने शब्दों पर भार देते हुए अपने बॉस पर नजर डाली ।

‘थैंक्स । मेरी वाइफ की चाइस है । मोहतरमा रोज सुबह जो कपड़े निकाल कर दे देती है पहन लेते है । वेल... अब तुम्हें अपने काम पर अच्छी तरह से फोकस करना होगा श्रेया । अब तक तुम्हारी परेशानियों को ध्यान में रखते हुए तुम्हारी काफी गलतियों को नजरअंदाज किया है पर अब परफेक्शन की उम्मीद है तुमसें ।’ बॉस ने श्रेया की बात का उत्तर देते हुए अपनी अपेक्षायें भी बता दी । 

श्रेया अनमनी सी वापस अपनी जगह पर बैठ गई । अब वह बिल्कुल भी अपने काम पर ध्यान नहीं दे पा रही थी । जिस ऑफिस में वह काम कर रही थी वहां का मालिक इतनी घटिया सोच वाला भी हो सकता है । वह बार बार यही बात सोच सोचकर और ज्यादा परेशान हो उठी । उसे लगा अब अगर यह बात उसने किसी के साथ शेयर नहीं की तो वह खुद पागल हो जाएगी । अपने मन की बात व्यक्त करने के लिए उसके दिमाग में एक नाम कौंध गया । सुनीता अक्सर उससे अपनी समस्याओं के बारें में बतियाती रहती और उसकी उसके संग बनती भी खूब थी । लंच अवर में बातों ही बातों में उसने सारी बात विस्तार से सुनीता को बता दी ।

‘तू गलत भी तो हो सकती है । हो सकता है करण सर का ऑफ व्हाइट शर्ट और ब्लू जींस पहनकर आना महज एक संयोग हो ।’

‘ये महज संयोग कैसे हो सकता है सुनीता ? और आज तो खास मुझसे बात करने के लिए वे मेरी डेस्क पर भी आये थे ।’ श्रेया ने अपनी शंका व्यक्त करते हुए सुनीता से कहा ।

‘वो तो कल मैंने उन्हें रिपोर्ट देते हुए तुम्हारें बारें में बताया था कि तुम अब कोर्ट कचहरी के चक्कर से छूट गई हो तो इसलिए ही शायद तुम्हें अच्छा महसूस करवाने आये हो ।’ सुनीता की बात सुनकर श्रेया एक बार फिर से सोच में पड़ गई ।

‘अरे ! आप दोनों अभी तक यहां बैठी है । ये लीजिये मुंह मीठा कीजिए ।’ 

परेश को अचानक से अपने सामने खड़ा देख श्रेया और सुनीता दोनों ही चौंक उठी । सुनीता ने परेश ने हाथ में थाम रखे मिठाई के बॉक्स से मिठाई का एक टुकड़ा उठाया और बोली, ‘किस बात की मिठाई खिला रहे हो परेश ?’

‘गांव से कल रात ही खबर आई । मैं बाप बन गया हूं । आप भी लीजिये न श्रेया ।’ जवाब देते हुए परेश ने मिठाई का बॉक्स श्रेया की तरफ बढ़ा दिया । श्रेया ने मिठाई का छोटा सा टुकड़ा उठाया और सुनीता की तरफ देखने लगी ।

‘बधाई हो । अब तो पैटरनीटी लिव भी मिलने लगी है । कब जा रहे हो अपने बेटे का मुंह देखने ?’ सुनीता ने श्रेया को आंखों के इशारे से चुप रहने को कहा और परेश से बातें करने लगी ।

‘आज आधे दिन की ले ली न । वैसे हमारें में रिवाज है । एक महिना तक बाप बेटे का मुंह नहीं देख सकता तो जाएंगे एक महीने बाद ।’ परेश ने जवाब दिया ।

‘ग्रेट ! वैसे तुम्हारें पर यह ऑफ व्हाइट शर्ट और ब्लू जींस बहुत अच्छा लग रहा है परेश ।’ श्रेया से रहा न गया और वह परेश को घूरते हुए बोल पड़ी ।

‘थैंक्यू श्रेया ! एक महिना पहले से खरीद कर रखे थे आज के दिन के लिए । नए कपड़े पहनने से खुशी दुगनी हो जाती है न !’ परेश ने जवाब दिया और वहां से चला गया ।

‘नो वे श्रेया ! परेश हो ही नहीं सकता । उसे तो ठीक से लड़कियों से बात करना भी आती तो वह तेरे साथ फ्लर्टिंग करेगा ? इम्पोसिबल ।’ परेश के जाते ही सुनीता श्रेया को देखकर हंस पड़ी ।

‘लल्लू टाइप के लड़के ही ऐसे कामों में माहिर होते है । वैसे भी उसकी बीबी तो यहां है नहीं । अकेला रहता है तो आजाद है । कुछ भी कर सकता है ।’ श्रेया ने सुनीता की बात पर असहमति जताई ।

‘तू बिना प्रूफ के कैसे किसी पर इतना संगीन इल्जाम लगा सकती है यार ? अभी थोड़ी देर पहले करण सर को भी कटघरे में खड़ा कर दिया था तूने !’

‘मैंने तुझे वो लेटर बताया न ! साफ साफ शब्दों में लिखा है उसमें इस ड्रेस कोड के बारें में ।’ सुनीता की बात सुनकर श्रेया ने अपनी बात रखी ।

‘कम ऑन श्रेया ! ऑफ व्हाइट शर्ट और ब्लू जींस कॉमन पेयर है जेंट्स के लिए । वैसे भी बेचारों के पास लिमिटेड चाइस ही होती है ।’

‘मैं सच में पागल हो जाऊंगी सुनीता । हर लेटर में वो लफंगा मेरे बारें में इतनी वाहियात बातें लिखता है कि उसे पढ़कर मेरा खून खौल उठता है । जो कोई भी है वह है तो अपने ऑफिस का ही जो मुझे जानबूझकर परेशान कर रहा है ।’ श्रेया ने अपना सिर पकड़ लिया ।

‘तू सीसीटीवी फुटेज चैक करवा ले न ? जो भी ये पत्र तुझे ऑफिस में पहुंचा रहा है, उससे पकड़ा जाएगा ।’ सुनीता ने श्रेया को सुझाव दिया ।

‘उसके लिए कोई ठोस कारण चाहिए । इन पत्रों के बारें में एडमिन में उस शेखर को पता चला तो पूरी ऑफिस में बात फैल जाएगी । सीसीटीवी के फुटेज उसके पास ही होते है ।’ श्रेया ने सुनीता की बात नकारते हुए जवाब दिया ।

‘तो फिर रोज हवा में तीर चलाती रह और परेशान होती रह ।’ कहते हुए सुनीता अपनी जगह से खड़ी हो गई । लंच अवर खत्म होने से श्रेया भी सुनीता के पीछे खड़ी होकर अपनी डेस्क पर आ गई । 

जैसे तैसे बचा हुआ दिन पूरा कर जब वह ऑफिस से निकली तो पार्किंग में अपनी स्कूटी की आगे की डिक्की में एक और गुलाबी लिफाफा देखकर चौंक गई । उसने इधर उधर नजर दौड़ाई । सभी कर्मचारी अपने अपने व्हीकल निकालकर घर को रवाना हो रहे थे । श्रेया ने हिम्मत कर वह लिफाफा खोला ।