प्रतिशोध - 2 Ashish Dalal द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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प्रतिशोध - 2

(२)

नैतिक का सवाल सुनकर श्रेया चुप थी । फिर खुद ही बोलने लगी, ‘तुम्हें यह तो पता ही है कि रोहन के पापा मेरे पापा के बहुत करीबी दोस्त रहे है । मेरी और रोहन की शादी होने का एक कारण उनकी दोस्ती भी रही है ।’

नैतिक को श्रेया की बात का विश्वास नहीं हुआ और वह हंसते हुए बोला, ‘तुम ये फिल्मी बातें बनाकर मुझे सुनाओगी और मैं मान जाऊंगा ? रहने दो श्रेया.... तुम्हें पता है न मुझे झूठ पसंद नहीं ।’

‘मेरी बात का यकीन करो नैतिक । तुम्हें सबकुछ पता होगा लेकिन एक बात की खबर बिलकुल भी नहीं होगी ।’ श्रेया ने नैतिक की तरफ देखा । नैतिक श्रेया की बात ध्यान से सुन रहा था ।

‘आज मैं और मम्मी जिन्दा है तो रोहन के पापा की वजह से ही है । इसलिए पापा रोहन के पापा की हर जायज बात आंखें बंदकर मान लेते थे । उन्होंने रोहन के साथ मेरी शादी की बात रखी तो उन्होंने उसी विश्वास के रहते बेझिझक मान ली थी ।’ श्रेया ने आगे कहा ।

‘क्या हुआ था तुम्हें और आंटी को ?’ नैतिक के मन में तरह तरह के सवाल उठ रहे थे ।

‘मेरा बर्थ प्रीमेच्योर था । मम्मी को सेवन्थ मंथ में ही डिलीवरी हो गई थी । उस वक्त पापा मुम्बई में जॉब करते थे और महीने में दो बार ही घर आते थे । मेरे बर्थ के समय भी वे मुम्बई में ही थे । रोहन के पापा और मम्मी ने ही सबकुछ सम्हाला था । डॉक्टर्स ने मेरे बर्थ के बाद मम्मी की बिगड़ती तबियत देखकर अपने हाथ ऊंचे कर दिए थे । मेरी कंडिशन भी स्टेबल नहीं थी । तब रोहन के पापा ने अपने कोंटेक्ट्स का उपयोग करके बड़ी मुश्किल से शहर की सबसे काबिल गायनेक डॉ. अंजलि मल्होत्रा के अस्पताल में मम्मी और मुझे एडमिट करवाकर हमारी जान ही नहीं बचाई बल्कि उस महंगे अस्पताल का बिल कन्सेशन करवाने के बाद बिना हिचकिचाहट के खुद ही भर दिया था और पापा से कभी उस खर्च की बात सामने होकर नहीं कही थी । पापा तो मेरे बर्थ के उस वक्त के खर्च को दो सालों में रोहन के पापा को चुका पाये थे ।’ श्रेया अपनी बात कहकर चुप हो गई ।

‘जिंदगी में कहीं न कहीं हर कोई किसी की मदद करता है लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता श्रेया कि अपनी जिंदगी उस मदद के बदले में किसी और के लिए कुर्बान कर दी जाये । तुम्हारी ये बात मेरी समझ से तो बाहर है । वैसे दाद देनी पड़ेगी तुम्हारी कुर्बानी को । अपने पापा की दोस्ती का अहसान उतारने की खातिर तुमने अपने पहले प्यार को ही कुर्बान कर दिया । मैं अगर गलत नहीं हूं तो तुम अपने लिए लेने वाले हर फैसले के वक्त स्वार्थी हुआ करती थी । फिर उस वक्त परहित करने की कैसे सूझी ? कहीं रोहन की आर्थिक समृद्धि तो ....’

‘शटअप नैतिक ।’ नैतिक की बात को बीच में काटते हुए श्रेया चीखी ।

‘हो सकता है न ! सालभर पहले तो मैं अपनी नौकरी को लेकर संघर्ष ही कर रहा था और तुम्हें शादी करने की जल्दी थी । रोहन तो उस वक्त पूरी तरह से सेट था । बाप का बिजनेस था । घर में दो दो कार थी, नौकर चाकर थे । गलती तुम्हारी नहीं है । मैं तुम्हारी जगह होता तो मैं भी ऐसा ही करता । प्यार से न तो पेट भरता है और न ही शौक पूरे होते है ।’

‘मुझे और जलील मत करो नैतिक । यह सच है रोहन के पास वह सबकुछ था जो एक एलिजिबल बेचलर में होना चाहिए लेकिन मैंने उससे शादी इस वजह से नहीं की थी ।’ नैतिक की बात इत्मीनान से सुनकर श्रेया उसके पास आ गई ।

‘अच्छा !!!’ नैतिक ने ताना कसा ।

‘मेरा यकीन करो नैतिक । मैं सच कह रही हूं । रोहन के पापा ने जब रिश्ते की बात डाली थी तो पापा मना नहीं कर सके ।’ 

‘बड़ी अच्छी कहानी है । एकदम फिल्मी ।’ श्रेया की बात सुनकर नैतिक एक फीकी सी हंसी हंस दिया ।

‘कहानी नहीं बना रही हूं । पापा तो मेरे लिए सुखी सम्पन्न परिवार के काबिल लड़के का रिश्ता सामने से पाकर अपने आपको बहुत ही भाग्यशाली समझने लगे थे और मेरी इच्छा जाने बिना उन्होंने हां कर दी थी ।’

‘तुम अपनी बात रख अंकल को मना भी तो सकती थी न ?’ नैतिक ने सवाल किया ।

‘कैसे मना करती ? उस वक्त तुम खुद आर्थिक तंगी से गुजर रहे थे और खुद तुमने भी तो रोहन के रिश्ते वाली बात उठने पर मुझसे दूरी बनाना शुरू कर दी थी ।’ श्रेया ने नैतिक को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा ।   

‘मेरे लिए उस वक्त इस मामले में दखलंदाजी करने के लिए ठोस धरातल नहीं था । तुमने तुम्हारी शादी का कोई विरोध नहीं किया तो मुझे लगा था कि उस फैसले में तुम्हारी भी सहमति थी ।’ नैतिक ने जवाब दिया ।

‘एक बार ...सिर्फ एक बार मेरे पास आकर कहा तो होता नैतिक कि श्रेया ये शादी मत करो । मैं तुम्हें जिन्दगीभर के लिए सम्हाल लूंगा । लेकिन अफ़सोस न तुम बोल सके और न मैं शादी के लिए मना कर पाई ।’  श्रेया ने कहा और अपनी आंखों में उभर आये आंसुओं को साड़ी के पल्लू से पोंछते हुए कहा । 

‘माना कि मैं नहीं बोल सका लेकिन तुमने एक बार भी उस वक्त मुझसे कोई शिकायत नहीं की श्रेया । बचपन से लेकर अब तक कितनी बार हम एक दूसरे से रूठे और फिर एक भी हुए । उस वक्त तुमने एक बार मुझे मना लिया होता तो ?’

‘अभी मना रही हूं न !’ नैतिक ने महसूस किया श्रेया की आंखों में एक आमन्त्रण छिपा हुआ था ।

‘नहीं श्रेया ! मैं जानता हूं तुम्हारें और रोहन के बीच तकरार चल रही है पर वह अब तुम्हारा वर्तमान है और मैं भूतकाल ।’ नैतिक ने श्रेया के मन की बात समझते हुए समझदारीपूर्ण तरीके से जवाब दिया और श्रेया से दूर हट गया ।

‘तकरार !!’ कहते हुए श्रेया फीकी सी हंसी हंस दी ।

‘तुम इस तकरार की वजह नहीं जानते नैतिक इसी से यह बात इतनी आसानी से बोल गए । मैं रोहन से डायवोर्स ले रही हूं ।’

‘व्हाट ? पागल हो गई हो क्या ?’ श्रेया की बात सुन नैतिक चौंक गया ।

‘हां, बिस्तर पर साथी के होते हुए भी करवटे बदलते हुए लम्बी रातें गुजारते हुए पागल ही हो गई हूं ।’

‘श्रेया !!! ये तुम्हारा और रोहन का निजी मामला है । घर की चारदीवारी से इसे बाहर न निकालो । आपस में बात कर मैटर सॉल्व कर लो ।’ नैतिक से सलाह देते हुए श्रेया को समझाने का यत्न किया ।

‘कान पक गए है नाते रिश्तेदारों की सलाह सुन सुनकर । मुझ पर क्या बीत रही है वह मैं ही जानती हूं । कैसे गुजार पाऊंगी रोहन के संग सारी जिन्दगी । वह पुरुष नहीं है । शादी के बाद एक बार भी सम्बन्ध नहीं बन पाया हम दोनों के बीच ।’ तड़पते हुए श्रेया चीख उठी । तभी बाहर से बिजली के कड़कने की जोरदार आवाज आई । 

नैतिक समझ नहीं पा रहा था कि श्रेया की इस बात का क्या जवाब दे ।

‘नैतिक । मेरे एक फैसले से दोनों तरफ से खोया मैंनें ही है । शादी के बाद खुशी के पल सम्हाल पाती इससे पहले ही तो वो सारे पल बह गए । न तुम्हें पा सकी और न ही रोहन को ।’ भावुक होते हुए श्रेया नैतिक से लिपट गई । 

‘नहीं श्रेया ! अब बहुत देर हो चुकी है । अब मैं तुम्हारा भूतकाल हूं । मुझे पूरी तरह से भूल जाने में ही तुम्हारी भलाई है ।’ नैतिक ने श्रेया के मन की बात समझते हुए समझदारीपूर्ण तरीके से जवाब दिया और श्रेया से दूर हट गया ।

‘ये तुम कह रहे हो नैतिक ? यह जानते हुए भी कि मेरी आगे की जिंदगी अब कोरे कागज की तरह है फिर भी तुम कह रहे हो कि मैं तुम्हें भूल जाऊं ?’ कहते हुए श्रेया फीकी सी हंसी हंस दी ।

‘हां । सच कड़वा है पर इसे बदला नहीं जा सकता ।’ नैतिक ने जवाब दिया ।

‘क्यों नहीं बदला जा सकता नैतिक ? मेरी तरफ देखो । अब किसके लिए जियूं नैतिक ?’ कहते हुए श्रेया फफक फफककर रोने लगी ।

‘श्रेया !!! प्लीज । समझने की कोशिश करो । जिंदगी हर वक्त एक सी नहीं होती । अब तुम्हें ऐसे ही जीना है । स्वीकार कर लो यह बात ।’ नैतिक से सलाह देते हुए श्रेया को समझाने का यत्न किया ।

‘नैतिक । मेरे एक फैसले से दोनों तरफ से खोया मैंनें ही है । शादी के बाद खुशी के पल सम्हाल पाती इससे पहले ही तो वो सारे पल बह गए । न तुम्हें पा सकी और न ही रोहन को ।’ भावुक होते हुए श्रेया नैतिक से लिपट गई । 

नैतिक का अपने आप पर संयम रखना मुश्किल हो रहा था । श्रेया का यह वर्तन नैतिक के लिय अप्रत्याशित था । उसने श्रेया को अपने से दूर करने का यत्न किया । श्रेया ने उसके खुले बदन को और कसकर पकड़ लिया ।

‘श्रेया, प्लीज । भावुकता में इतना मत बहो कि मुझसे कोई गलती हो जाएं ।’ श्रेया की गरम सांसों को अनुभव कर पा रहा था नैतिक । उसके ठण्डे बदन में गर्मी की एक लहर फैल गई । वह मदहोश होने लगा । उसके हाथ श्रेया की पीठ पर हरकत करने लगे । सहसा श्रेया को धक्का देकर अपने से अलग कर दिया ।

‘मैंनें अब भी तुम्हारीं आंखों में अपने लिए वही चाहत देखी है । पहले वाला प्यार देखा है । स्वीकार क्यों नहीं कर लेते कि तुम अब भी मुझे ही चाहते हो ।’ श्रेया ने व्याकुल होते हुए पूछा । 

‘इस बात को यहीं खत्म कर दो । यह तुम्हारा भ्रम है ।’ नैतिक का स्वर सहज ही ऊंचा हो गया ।

‘क्यों खत्म कर दूं ? नैतिक, बस एक बार अपने मुंह से कह दो कि तुम मुझे अब भी उतना ही चाहते हो जितना पहले चाहते थे । फिर मैं तुमसे कुछ नहीं मांगूगी ।’ श्रेया ने विनती भरे स्वर में कहा ।

‘मैं तुमसें प्यार करता था लेकिन अब नहीं ।’ आंखें चुराते हुए नैतिक ने कहा ।

‘यही बात मेरी आंखों में देखकर बोलो ।’ श्रेया ने नैतिक के कन्धों पर हाथ रखते हुए उसे झिंझोड़ डाला ।

जवाब में नैतिक कुछ न बोल सका ।

‘तुम्हारी खामोशी कह रही है कि तुम अब भी मुझे उतना ही चाहते हो जितना पहले चाहते थे । तुम्हारी चाहत अब भी बरकरार है नैतिक ।’ तभी एक बार फिर से बिजली जोर से कड़की और अचानक ही लाईट भी चली गई । कमरे में अंधेरा घिर आया । बाहर बारिश होने का शोर और भी तेज हो गया । श्रेया बिजली की गर्जना सुनकर घबराकर अचानक ही नैतिक से लिपट गई । नैतिक श्रेया की देह का स्पर्श पाकर उत्तेजित होने लगा । स्त्री देह का गर्म अहसास नैतिक के शरीर में रोमांच पैदा कर गया । उसके हाथ सहज ही श्रेया की साड़ी के पल्लू के अन्दर से होते हुए उसकी कमर को छू गए । वह श्रेया के बेहद करीब आ चुका था । श्रेया की उठती गर्म सांसों को वह महसूस कर रहा था । उसने एक हाथ से श्रेया के बंधे हुए बाल खोल दिए और अपना चेहरा झुकाते हुए उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए ।