स्वतंत्र सक्सेना की कहानियाँ - उपन्यास
बेदराम प्रजापति "मनमस्त"
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
कहानी स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कहानीकार के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे को उड़ाते हुए सजग कहानीकार अपनी ...और पढ़ेको अद्यतन करता रहता है, प्रासंगिक बनाता रहता है|
स्वतंत्र ने समाज को अपने तरीके से समझा है | वे अपने आसपास पसरे यथार्थ को अपनी कहानियों के लिए चुनते हैं| समाज व्यवस्था, राज व्यवस्था और अर्थव्यवस्था की विद्रूपताओं को सामने लाने में स्वतंत्र सन्नद्ध होते हैं| राम प्रसाद, किशन और दिलीप के चरित्र हमारे लिए जाने-पहचाने हैं | ये चरित्र शासनतंत्र से असंतुष्ट हैं और संघर्षशील हैं| उन्हें पता है कि लड़ाई बड़ी कठिन है| एक तरफ पूरी सत्ता है और दूसरी तरफ एकल व्यक्ति |
स्वतंत्र सक्सेना की कहानियाँ संपादकीय ...और पढ़े स्वतंत्र कुमार सक्सेना की कहानियाँ को पढ़ते हुये वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ कहानी स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कहानीकार के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे
स्वतंत्र सक्सेना की कहानियाँ swatantr saxena ki kahaniyan ...और पढ़े संपादकीय स्वतंत्र कुमार सक्सेना की कहानियाँ को पढ़ते हुये वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ कहानी स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कहानीकार के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे को उड़ाते हुए सजग कहानीकार अपनी स्मृतियों को अद्यतन करता रहता है, प्रासंगिक बनाता रहता है| स्वतंत्र ने समाज को अपने तरीके से समझा है | वे अपने आसपास पसरे यथार्थ को अपनी
स्वतंत्र सक्सेना की कहानियाँ swatantr saxena ki kahaniyan ...और पढ़े संपादकीय स्वतंत्र कुमार सक्सेना की कहानियाँ को पढ़ते हुये वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ कहानी स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कहानीकार के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे को उड़ाते हुए सजग कहानीकार अपनी स्मृतियों को अद्यतन करता रहता है, प्रासंगिक बनाता रहता है| स्वतंत्र ने समाज को अपने तरीके से समझा है | वे अपने आसपास पसरे यथार्थ को अपनी
स्वतंत्र सक्सेना की कहानियाँ swatantr saxena ki kahaniyan ...और पढ़े संपादकीय स्वतंत्र कुमार सक्सेना की कहानियाँ को पढ़ते हुये वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ कहानी स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कहानीकार के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे को उड़ाते हुए सजग कहानीकार अपनी स्मृतियों को अद्यतन करता रहता है, प्रासंगिक बनाता रहता है| स्वतंत्र ने समाज को अपने तरीके से समझा है | वे अपने आसपास पसरे यथार्थ को अपनी कहानियों के लिए चुनते
बंझटू ...और पढ़े स्वतंत्र कुमार सक्सेना आज नौनी बऊ की बहू आई राम रती। नौनी बऊ के एक पुत्र है श्रीलाल। वे बड़ी चिंतित रहती थीं पर बहू को देख कर बड़ी संतुष्ट थीं। ‘बऊ। तुमाई बहू तो बड़ी नौनी है।‘ सभी बऊ का भाग सिहा रहे थे। बहू ने आकर सब काम सम्हाल लिए, भैंस के लिये खेत से चारा काट कर लाना, कुएं से पानी भरना, रोटी बनाना, सबके कपड़े ले जाकर तालाब पर धोना, घर आंगन बुहारना, ये सब काम वह बड़ी फुरती से करती फिर संझा को बऊ के पैर दबाना यह भी उसकी
अरे दौरियो बचाईयो। ...और पढ़े स्वतंत्र कुमार सक्सेना अरे दौरियो बचाईयो। ओ पनबेसुर।। कक्कू का घर गिर गया था दो तीन दिन की घनघोर वर्षा का आज यह परिणाम था । सारे मोहल्ले वाले दौड़े कक्कू तथा नाईन कक्को दोनों बाहर सिर पकड़े बैठे थे। राम किशन सोता रह गया था उसे गम्भीर चोट आई थी जल्दी ही अस्पताल भेजा गया। दो-तीन दिन बाद रहस्य खुला यह मकान कक्कू के चाचा का था जो रियासत के समय के एक अच्छे नाई थे। रईसों की बैठकों में उठक-बैठक थी कहा जाता था कि उन्होंने धन घर में गाड़
संपादकीय ...और पढ़े स्वतंत्र कुमार सक्सेना की कहानियाँ को पढ़ते हुये वेदराम प्रजापति ‘मनमस्त’ कहानी स्मृति की पोटली होती है| जो कुछ घट चुका है उसमें से काम की बातें छाँटने का सिलसिला कहानीकार के मन में निरंतर चलता रहता है| सार-तत्व को ग्रहण कर और थोथे को उड़ाते हुए सजग कहानीकार अपनी स्मृतियों को अद्यतन करता रहता है, प्रासंगिक बनाता रहता है| स्वतंत्र ने समाज को अपने तरीके से समझा है | वे अपने आसपास पसरे यथार्थ को अपनी कहानियों के लिए चुनते हैं| समाज व्यवस्था, राज व्यवस्था और अर्थव्यवस्था की विद्रूपताओं को
समीक्षा - काव्य कुंज-स्व.श्री नरेन्द्र उत्सुक समीक्षक स्वतंत्र कुमार सक्सेना पुस्तक का नाम- काव्य कुंज कवि -नरेन्द्र उत्सुक सम्पादक- रामगोपाल भावुकसहसम्पादक- वेदराम प्रजापति ‘मदमस्त’ धीरेन्द्र गेहलोत ’धीर‘प्रकाशक-परमहंस मस्तराम गौरीशंकर सत्संग समिति ,डबरा(भवभूति नगर)475110एवं मुक्त मनीषा साहित्यिक एवं सांस्कृतिक समिति ...और पढ़ेनगर )जिला ग्वालियर( मध्य प्रदेश)475110 श्री नरेन्द्र कुमार जी उत्सुक से मेरा परिचय सन्1976 में हुआ तब मैं अपनी शिक्षा पूर्ण करके डबरा आया था ।यह शहर मेरे लिए नया था। मेरी मां यहां शासकीय सेवा में थीं। हम सरकारी क्वार्टर में निवास करते थे उत्सुक जी हमारे पड़ौसी थे।वे कवि गोष्ठियां आयोजित करते मैं श्रोता की तौर पर उसमें
वेद प्रकाश डॉ0 स्वतंत्र कुमार सक्सेना वेद प्रकाश जी उस दि न बड़े प्रसन्न थे। कई दिनों से चिंतित थे, निराशा जनित आतंक ने उनकी नींद हराम कर रखी थी। सोचा भी न था वातावरण ...और पढ़ेबदल जाएगा । मंचों पर गुरुओं की भारतीय परंपरा के आज भी गुणगान किये जाते हैं। पर मास्टर का नाम आते ही अफसर कैसे मुंह बिचका देते हैं । सारे काम ही तो गुरु जनों पर लाद दिए हैं जन गणना गुरुजी करें, चुनाव गुरु जी करवाएं ,और साक्षरता आंदोलन चला तो उसका ठीकरा भी घूम फिर कर गुरु जनों के ही सर
पति देवता डॉ0 स्वतंत्र कुमार सक्सेना ...और पढ़े -‘पति तो देवता होता है,पति की ही बेज्जती स्वागत सत्कार तो गया चूल्हे में ।पूंछ रही थी, अब तक कहां रहे ?और बीबी तो बीबी, लड़का भी बाप से सवाल कर रहा था।‘ श्याम लाल बहुत ही क्रोधित थे मुंह से फेन निकल रहा था आंखें लाल थीं । वे अपने आपे में नहीं थे,हांफ रहे थे,---‘ घनघोर कल जुग ,और कैसो होत? हे भगवान मर्दों की ऐसी दुर्दशा । मेरे ई घर में मेरी पूंछ नईं । मां बेटा दोनों बदल गए , तनक न