स्वतन्त्र सक्सैना की कहानिया - 10 - पति देवता बेदराम प्रजापति "मनमस्त" द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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स्वतन्त्र सक्सैना की कहानिया - 10 - पति देवता

पति देवता


डॉ0 स्‍वतंत्र कुमार सक्‍सेना

-‘पति तो देवता होता है,पति की ही बेज्‍जती स्‍वागत सत्‍कार तो गया चूल्‍हे में ।पूंछ रही थी, अब तक कहां रहे ?और बीबी तो बीबी, लड़का भी बाप से सवाल कर रहा था।‘

श्‍याम लाल बहुत ही क्रोधित थे मुंह से फेन निकल रहा था आंखें लाल थीं । वे अपने आपे में नहीं थे,हांफ रहे थे,---‘ घनघोर कल जुग ,और कैसो होत? हे भगवान मर्दों की ऐसी दुर्दशा । मेरे ई घर में मेरी पूंछ नईं । मां बेटा दोनों बदल गए , तनक न सोची ।‘

असल में श्‍याम लाल लगभग बीस –पच्‍चीस साल पहले जब वे शहर में थे तब बीस साल के नौजवान थे ,उनकी मां सगुना बाई सरकारी अस्‍पताल में आया थीं । वे हायर सेकेन्‍डरी की परीक्षा में नकल करतssssss पकड़े गये ,लिहाजा परीक्षा ही गड़बड़ हो गई । मास्‍टर साहब के बहुत हाथ पैर जोडे ,एक स्‍थानीय नेता नत्‍थे लाल जी की सिफारिश भी लगवाई पर कुछ न हुआ । उन्‍होंने कई तर्क रखे—‘सबई तो कर रहे थे ?’

पर कुछ बड़े घरों के बेटे थे,कुछ स्‍वयं समर्थ थे , कुछ मास्‍टर साहबान के प्रिय छात्र।पर यह बात श्‍याम लाल को कौन समझाता ?

सगुना बाई ने कहा –‘बेटा अब बहुत पढ़ लिये ,कुछ काम धंधे की सोचते हैं फिर आगे देखेंगे ।‘

सगुना बाई ने डॉक्‍टर साहब के हाथ पैर जोड़े ,जिहाजा वे दैनिक वेतन भोगी के पद पर नियुक्‍त हो गए । अब वे अस्‍पताल में झाड़ू लगाते पोंछा लगाते स्‍टेचर लेकर दौड़ते ,डॉक्‍टर साहब के आदेश का पालन करते ,मरीजों व अस्‍पताल स्‍टाफ की झिड़कियां सुनते अत: अकुला जाते,ऐसे में वे शाम को एक बाबा जी के स्‍थान पर चले जाते ,जहां वे मधुर स्‍वर में रामायण का पाठ करते ,भजन गाते ,सत्‍संग करते । तभी मां ने उनके लिये लड़की ढूंढना शुरू कर दी । कुछ दिनों बाद उन्‍होने श्‍याम की शादी कर दी ।घर में एक सुन्‍दर सी बहू आ गई ,वह हायर सेकेन्‍डरी पास थी,एक विधवा मां की चौथी लड़की दहेज की कोई व्‍यवस्‍‍था न थी सम्‍मेलन में विवाह किया गया ।प्रभू की कृपा हुई और एक साल बाद वे एक पुत्र के लड़की पिता बन गए । वे अब प्रसन्‍न व संतुष्‍ट थे । चूकि वे धार्मिक थे अत: रोज शाम को बाबा जी के आश्रम जाते रामायण का पाठ करते भजन गाते सत्‍संग करते आरती के समय तक रूकते कभी देर भी हो जाती । देर हो जाने पर गांजे की चिलम मुख्‍य सत्‍संगियों को उपलब्‍ध रहती उन्‍होंने पहले तो बहुत न नqकुर की पर भगवान के प्रसाद की कब तक उपेक्षा करते फिर बाबा जी व अन्‍य सत्‍संगियों का स्‍नेहिल अनुरोध ,कभी कभी शामिल हो जाते ,धीरे–धीरे अंतराल कम होते चले गये । कभी– कभी वे सुबह भी भगवान के दर्शन को जाते यदि बाबा जी प्रसाद ले रहे होते या उन्‍हें आदेश देते

–‘ भैया नेक चिलम ले आओ तो वे(श्‍याम लाल ) आदेश का पालन करते ऐसे में दो चार फूंक तो लग ही जातीं । फिर वे धीरे धीरे शंकर जी की महिमा मय बूटी का निरंतर सेवन करने लगे। वे(श्‍याम लाल) अब निरंतर प्रभू के ध्‍यान में डूबे रहते ,उन्‍होने काम पर जाना कम कर दिया,उन्‍हें संसार से वैराग्‍य हो गया ।ड्यूटी पर अनियमित हो गये । घर का खर्चा तो मां के द्धारा चल जाता । वे अब अपने को प्रभू और बाबा जी की सेवा में लगाए रहते । बाबाजी विभिन्‍न उत्‍सव मनाते ,आस पास सत्‍संग करते , वे(श्‍याम लाल) उनके अनुचर होते ,भंडारे के आयोजन में उनकी प्रमुख भूमिका होती । वे अब माथे पर त्रिपुड लगाने लगे पीला कुरता पहिनते ,पत्‍नी से सम्‍पर्क कम हो गया, चख चख बढ़ गई । वे बाबा जी के मंत्र नारी नरक की खान से प्रभावित थे ,उसे संतुष्‍ट करना असंभव है । प्रभु से लौ लगा वे ही भला करने वाले हैं । और एक दिन जब बाबाजी पुण्‍य कमाने अयोध्‍या प्रस्‍थान करने लगे तो वे(श्‍याम लाल) भी साथ हो लिये ।

वे पांच साल बाद प्रगट हुए बुरी तरह खांस रहे थे दुबले हो गए थे ।तिलक लगाए लम्‍बी चोटी राम नामी दुपट्टा ओढे। मां देख कर न पहिचान पाई जब बोले तब पहिचाना। मां ने दौड़ धूप कर बहू को भी काम पर लगा दिया था ,जैसे- तैसे घर चल रहा था ।मां और पत्‍नी दोनों उन्‍हें डॉक्‍टर साहब पर ले गईं, उन्‍होंने उन्‍हें गम्‍भीर क्षय रोग बताया विभिन्‍न्‍ जांचें हुईं ,इलाज शुरू हुआ । पर वे(श्‍याम लाल ) कह रहे थे –‘कछू नाय ,गांजे से थोडी खांसी बढ़ गई है डॉक्‍टर तो बताई देत।‘ दो तीन महीने इलाज चला अब वे कुछ बेहतर थे ,डाक्‍टर साहब ने ज्‍यादा दिन का इलाज बताया ।मां ने अस्‍पताल के पास ही लकड़ी का ठेला लगवा दिया ,वे चाय बेचने लगे । अब वे बार बार कहते –‘ गांजा बंद ,कान पकरे,वो बाबा तो बदमाश हतो, मैं व के चक्‍कर में फंस गओ।‘

वे अब दूसरे संत जी के आश्रम में जाने लगे ,जीवन में धर्म जरूरी है, और धर्म के लिये सत्‍संग जरूरी है ।संत जी धीरे धीरे खुले –‘बच्‍चा, ध्‍यान में बूटी लगती है इसमें कोई बुराई नहीं ।‘

बाबा जी ने मंदिर में ही बूटी बो रखी थी ।बाबा जी स्‍वयं एक नेता जी के गुरू थे जो ‘ शराब के अवैध व्‍यापारी’ भी थे ।पर बुरा हो बाबा जी के आश्रम पर छापा पड़ा वे पकडे गये ,उनके मंदिर के बगीचे में लगे गांजे के पौधे सबूत के तौर पर पेश किये गये ।वे धरे गये ,कृष्‍ण्‍ मंदिर में निवास रहा । जैसे तैसे जमानत पर बाहर आए। बाबा जी बाहर आकर बोले –‘शहर में बहुत बदनामी हो गई ,लुच्‍चे तो पुलिस और नेताओं की चिलम भर कर राज कर रहे ,साधुओं को पुलिस पकड़ रही ।घनघोर कलजुग ,धर्म का नाश हो गया।‘

बाबा जी , कुछ दिन बुझे –बुझे से रहे फिर एक दिन अंर्तध्‍यान हो गये ।उन्‍हीं के साथ श्‍याम लाल भी अदृश्‍य हो गए ।

अब (श्‍याम लाल ) पंदरह साल बाद प्रकट हुए।अब तक मां स्‍वर्ग सिधार चुकी थी ।पत्‍नी को मां ने ए. एन. एम. का प्रशिक्षण दिलवा कर नौकरी लगवा दी थी । पत्‍नी दोनो संतानों को पाल रही थी । बेटा पच्‍चीस साल का हेाकर काम कर रहा था ,बेटी के विवाह की चर्चा चल रही थी ।कि एक दिन दो साधु उन्‍हें लेकर आए और घर पर छोड़ कर चले गए । वे (श्‍यामलाल)त्रिपुंड लगाए,दाढ़ी व जटा बढ़ी हुई,पीला कुर्ता व पीली लुंगी पहने , गले में ढेर सारी चित्र –विचित्र मालाएं डाले बहुत दुबले –पतले ,बुरी तरह खांस रहे थे ,ठीक से खड़े नहीं हो पा रहे थे ,बात करते में हांफने लगते, जबान लड़खड़ाने लगती।बेटा उन्‍हें देखते ही आपे से बाहर हो गया।उसने उन्‍हें घर में रखने से इनकार कर दिया। मां से बहस करने लगा। पत्‍नी उन्‍हें डाक्‍टर साहब के पास ले गई वे अब मुख्‍य चिकित्‍सा अधिकारी हो गए थे ।उन्‍हें देखते ही डॉक्‍टर साहब बोले –‘श्‍याम लाल ,क्‍या हालत बना रखी है ?’

तब उन्‍होने (श्‍याम लाल ने ) उपरोक्‍त वाक्‍य कहे ,फिर बोले –‘ डॉक्‍टर साहब ,मैं साधु,दुनिया चरन छुअत ,दक्षिणा देत ,बुला –बुला के भोजन कराउत ,तरह –तरह से सेवा करत बडो पुन्‍न मानत ,जोन घरे पोंच जाउं वे बडी किरपा मानत और घर को लरका अंट—संट बोल रओ ।‘

डॉक्‍टर साहब ने उनकी पत्‍नी की ओर प्रश्‍न वाचक दृष्टि से देखा –‘ सिस्‍टर ?’

पत्‍नी –‘डॉक्‍टर साहब ,बच्‍चा है ,गरम खून है ,गुस्‍सा में कछू निकर गई होगी। ,’

डॉक्‍टर साहब –‘श्‍यामलाल, तुम घर नहीं जाओगे ।भर्ती करे देते हैं जांचें होंगीं ,एक्‍स रे होगा ,तब इलाज होगा ,तुम वार्ड में रहो ।‘

पत्‍नी से सम्‍बोधित –‘सिस्‍टर ,इन्‍हें वार्ड में ले जाओ ,भर्ती और जांचों के पर्चें हैं, इन्‍हें सिस्‍टर मिथिलेश को दे देना, वे भर्ती कर लेंगी ,बेड बता देंगीं ,सुबह जांचें होंगी , तभी सही इलाज शुरू होगा अभी आराम हो इसके लिए दवा लिख दी है वे दे दें गी।

पत्‍नी –‘ डॉक्‍टर साहब ,घर में तो ये वैसे भी आराम नहीं कर पाएंगे । बाप- बेटे दोनों तब से निरंतर कलह कर रहे हैं ।‘

श्‍याम लाल –‘ डॉक्‍टर साहब ,घर तो अब परदेश हो गओ । साधु का वैसे भी कोई घर नहीं होता । न घर मेरा न घर तेरा चिड़िया रैन बसेरा ।

जय जय सिया राम हरि ओम । उन्‍होने जोर से हुंकार भरी ।

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सावित्री सेवा आश्रम डबरा