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कातिल - उपन्यास
Monty Khandelwal
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
अरे सुनो काका जी आज ये रास्ते में जाम कीस बात का लगा हे और ये सब लोग भाग - भाग कर क्यों जा रहे हैं क्या हुआ हैं वहा सड़क किनारे लोगो क्या देख रहे हैं मत पूछो भाई ये बात मुझे तो इंसान होने पे भी शर्म आरही है कैसे कोई ऐसा कर सकता है हा काका जी पर हुआ क्या है एक लड़की का किसी ने बलात्कार कर उसे मारने के बाद उसका न्गन सरीर सड़क किनारे फेक दिया है सब लोग यही देखने के लिए भाग रहे हे लेकिन इन लोगो में इतनी भी सम॔ नहीं की कोई उसका सरीर
अरे सुनो काका जी आज ये रास्ते में जाम कीस बात का लगा हे और ये सब लोग भाग - भाग कर क्यों जा रहे हैं क्या हुआ हैं वहा सड़क किनारे लोगो क्या देख ...और पढ़ेहैं मत पूछो भाई ये बात मुझे तो इंसान होने पे भी शर्म आरही है कैसे कोई ऐसा कर सकता है हा काका जी पर हुआ क्या है एक लड़की का किसी ने बलात्कार कर उसे मारने के बाद उसका न्गन सरीर सड़क किनारे फेक दिया है सब लोग यही देखने के लिए भाग रहे हे लेकिन इन लोगो में इतनी भी सम॔ नहीं की कोई उसका सरीर
इतने में जोर से आवाज़ करते हुए पुलिस और एंबुलेंस आ गई पुलिस ने भी आते ही अपना काम शुरू कर दिया था चारों तरफ घेराबंदी कर दी गई हमें पीछे धकेला गया मगर मैं सुनन खड़ा था ...और पढ़ेमे वाहा जम सा गया हो उसके आजू-बाजू चारों तरफ कुछ सबूत ढूंढ रहे थे ताकि वह मुजरिम का पता कर सके कि वह किसने किया है पुलिस ने कई लोगों से पूछताछ भी की की आप मै से कोई जानता है काफी देर छानबीन करने के बाद में जब कुछ पता ना लगा तो उन्होंने अस्पताल के कर्मचारियों को ले
एक दिन की बात थी जब में बाजार में सामान खरीदने गया था | तब वोभि वहां सामान खरीदने ही आई थी तो वही पर उस से मेरी पहली मुलाक़ात हुई मुलाकात भी थोड़ी है अलग ...और पढ़ेथी लेकिन वोतो दुकान वाले को जबरदस्त डांट रही थी वह भी कुछ पैसो के लिए मैं-( मन में सोचते हुए ) अरे यह तो अपने जैसी है एकदम सेम टू सेम इसके साथ तो खूब जमने वाली है तेरी सपना देखते हुए - वह हाथ में चाकू नहीं कर शर्ट के अंदर गांठ लगाकर एक रुमाल गर्दन में डाल कर दुकानदार से
अब तो में हर रोज़ समाज सेवा का काम है बता कर उससे बातें दिन दुखियारे लोगों की मदद के बहाने उसे मिलने बुलाता वोभी मुझे Social work के लिए बुलाया करती अब हम रोज फ़ोन पर बात ...और पढ़ेकरते मैं उससे मिलने के लिए किसी न किसी कारण बुला लिया करता था कभी कभी मूवी तो कभी जाया करते थे | उसे घुमने का तो बहोत शोक था तो इसलिए मैं और रितु दोनों कार लेकर घुमने गये रास्ते में वो खूब बच्चों की तरह मस्तीया कर रही थी बाए फैलाकर प्रकृति का आनंद ले रही थी . मैं
सारे लोगो इकट्ठा हो गये रितु ने कहा देख क्या रहे हो जाओ ..जाओ उनकी मदद करो उनको बाहर निकालो और मशक्कत चालू हो गए कभी मोटे व्यक्ति को खींचकर तो कभी खुशी के ...और पढ़ेचढ़कर उनको बाहर निकालने की कोशिश की जारी थी मैनेजर अरे मेरी कुर्सी जरा संभाल के कहीं टूट ना जाए मोटे की पत्नी - अरे कोई इनको बाहर निकालो मैनेजर अपनी कुर्सी के लिए रो रहा था और पत्नी उसके पति के लिए अर्जुन - चिल्लाते हुए अरे रुको थोड़ा कम खिलाया होता तो आज यह नौबत ना आती खा कर मोटे हो गए हैं