कातिल - 4 Monty Khandelwal द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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कातिल - 4

अब तो में हर रोज़ समाज सेवा का काम है बता कर उससे बातें दिन दुखियारे लोगों की मदद के बहाने उसे मिलने बुलाता
वोभी मुझे Social work के लिए बुलाया करती

अब हम रोज फ़ोन पर बात किया करते
मैं उससे मिलने के लिए किसी न किसी कारण बुला लिया करता था कभी कभी मूवी तो कभी जाया करते थे |
उसे घुमने का तो बहोत शोक था

तो इसलिए मैं और रितु दोनों कार लेकर घुमने गये रास्ते में वो खूब बच्चों की तरह मस्तीया कर रही थी बाए फैलाकर प्रकृति का आनंद ले रही थी .

मैं तो बस उसी को ही देख रहा था मैंने पहली बार उसे इतना खुश देखा था
जब उसकी नजर मेरे ऊपर पड़ी तो कहने लगी क्या हुआ मैंने सिर हिलाते हुए ( कुछ भी नहीं)

हमने सेहर के शॉपिंग मॉल की दुकानें मैं शॉपिंग की
चाट पकौड़ी खाई और नजारों का फोटो भी लिया

कुछ देर बाद हम एक होटल मैं खाना खाने गये

मैंने रितु को आर्डर देने के लिये कहाँ ..

वेटर को बुलाया - उसने जो आर्डर दिया 2 plate Idli
चटनी थोड़ा ज्यादा डालना
मैं सवाल पूछते हुए - तुमने इटली का ही ऑर्डर क्यों दिया
और भी कुछ मंगवा लेती ...

उसका जवाब आता है - तुम्हारी फेवरेट है ना !
मेरी फेवरेट यह बात तुमको कैसे पता ?

ऋतू- मैंने तुमको कई बार अन्ना की इडली खाते हुए देखा है वहां जो तुम हरकतें करते थे तुम्हारी उन्ही हरकतों को देखकर मैं हंसा करती थी

तुम्हारा अन्ना को जोर से आई लव यू बोलना मुझे बहुत अच्छा लगता था

और मैं तो यह भी जानती हूं कि तुम गुंडागर्दी का काम करते हो और कोई सोशल वर्कर नहीं हो
उस दिन में मैंने तुमको जब लोगों गुंडागर्दी करते देखा तो मैंने दफा सोचा था कि मैं गलत हूं तुम से कैसे प्यार कर सकती हूं

लेकिन एक दिन ट्राफिक में जब तुम्हें एक प्रेग्नेंट औरत के मदद करते हुए देखा तो उस दिन के बाद मुझे तुमसे सच्चा प्यार हो गया था

अचानक से मैं जोर-जोर से हंसने लगा उसने मेरी ओर देखा मेरी नजरें पीछे थी उसने भी पीछे मुड़कर देखा
तो एक मोटा आदमी चलते हुए आ रहा था
मैं उसी को देख कर हंस रहा था

मेरे हंसने पर वो कहने लगी ऐसे किसी के ऊपर ऐसा नहीं करते भगवान ने उसे ऐसा ही बनाया है

ऐसा कहा इतना मोटा बनाया है बनाया है

अपनी बड़ी आंखें करते हुए उसके अर्जुन कहते ही मैं चुप हो गया

शायद मैं उस दिन पहली बार किसी के कहने से चुप हो गया था वरना जिसने भी मुझे चुप कराया है वह हमेशा के लिए चुप हो जाता था |

क्योंकि मेरे आगे शहर का एक भी गुंडा मेरे आगे बोलने की हिम्मत नहीं करता था इतना खौफ था

हम दोनों खाना खाते हुए बातें ही कर रहे थे की
किसी औरत के चिल्लाने की आवाज आई
अरे कोई तो इनको निकालो बाहर अरे कोई है

साइड में देखा तो नजर आया कि वह मोटे भाई कुर्सी के अंदर फस गए थे बैठ तो गए लेकिन बाहर नहीं निकल रहे थे

यह चौथा भाग है और मैं जितनी भी कहानी लिख रहा हूं आप लोगों को पढ़ने के लिए अपलोड कर रहा हूं अगर आप लोगों को यह कहानी पसंद आ रही है तो मुझे स्टार देखकर बताएं और उसके पहले दूसरे और तू सिर्फ आपको भी पढ़ें ताकि आप लोगों को यह मालूम पड़े की स्टोरी क्या है

आप जब भी मुझे स्टार देंगे मुझे मालूम पड़ेगा कि आप आप लोगों को मेरी स्टोरी कैसी लग रही है हो सके तो कमेंट मैं लिखकर भी जरूर बताएं बहुत-बहुत धन्यवाद