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कामनाओं के नशेमन - उपन्यास
Husn Tabassum nihan
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
दरवाजे बहुत होते हैं, कुछ सहजता के साथ खुल जाने वाले और कुछ दरवाजे बहुत खटखटाने के बाद खुलने वाले। उतना अर्थ दरवाजे का नहीं होता जितना अर्थ चौखट का होता है। चौखट लांघ कर भीतर आना और चौखट लांघ कर बाहर जाना, दोनों ही स्थितियों में पांवों में बड़ा साहस चाहिए। वह भी मन के पांवों में ज्यादह साहस। शायद कुछ ऐसे ही हालात से जुड़े अमल अभी दुर्गम पहाड़ियों की यात्रा करके एक दरवाजे के सामने थके से खड़े हो गए। पता नहीं उनके मन के पांवों में इतना साहस है कि वे इस दरवाजे की चौखट को लांघ भी पाएंगे या नहीं। उन्होंने ट्राली बैग दीवार के सहारे खड़ा कर दिया है और इंतजार करने लगे हैं कि अभी दरवाजा खुलेगा, शायद अपने आप खुल जाए और सामने चौखट के उस पार, आश्चर्य से उसे निहारती हुई मोहिनी दिख जाए।
कामनाओं के नशेमन हुस्न तबस्सुम निहाँ 1 दरवाजे बहुत होते हैं, कुछ सहजता के साथ खुल जाने वाले और कुछ दरवाजे बहुत खटखटाने के बाद खुलने वाले। उतना अर्थ दरवाजे का नहीं होता जितना अर्थ चौखट का होता है। ...और पढ़ेलांघ कर भीतर आना और चौखट लांघ कर बाहर जाना, दोनों ही स्थितियों में पांवों में बड़ा साहस चाहिए। वह भी मन के पांवों में ज्यादह साहस। शायद कुछ ऐसे ही हालात से जुड़े अमल अभी दुर्गम पहाड़ियों की यात्रा करके एक दरवाजे के सामने थके से खड़े हो गए। पता नहीं उनके मन के पांवों में इतना साहस है
कामनाओं के नशेमन हुस्न तबस्सुम निहाँ 2 अमल फ्रेश हो कर ड्राइंग रूम में आकर बैठ गए थे। मोती से एक शीशे का गिलास मांगा। वह किचेन से स्टील का गिलास उठा लाया। अमल ने कुछ दबे स्वरों में ...और पढ़े‘‘स्टील का नहीं, शीशे का गिलास चाहिए।‘‘ वह दोबारा किचेन में चला गया। मोहिनी खुद शीशे का गिलास लेकर आई। मोती प्लेट लेकर आया था। सामने शीशे का गिलास रखते हुए मोहिनी ने बड़े कुतुहल के साथ अमल का चेहरा देखते हुए पूछा, ‘‘स्टील के गिलास पें पानी पीना कबसे छोड़ दिया है?‘‘ ‘‘थोड़ी सी व्हिसकी पियूंगा, बहुत थक गया
कामनाओं के नशेमन हुस्न तबस्सुम निहाँ 3 ‘‘हाँ...याद है‘‘ अमल ने कहा...‘‘और मैने तुम्हारे हाथों को परे कर दिया था...शायद एक उपेक्षा से।...यही याद दिलाना चाहती हो न...?‘‘ ‘‘नहीं, तुम्हें आहत करने के लिए याद दिलाना नहीं चाह रही ...और पढ़ेबस अभी तुम्हारे इस स्पर्श से वह पल याद आ गए।‘‘ मोहिनी ने कुछ आत्मीय स्वरों में कहा- ‘‘मेरे कंधे से हाथ हटा क्यों लिया। मैने तो ऐसा मना नहीं किया। सिर्फ पूछा भर है यह जानने के लिए कि तुममें यह विवशता आई क्यों,...लाओ मैं ही तुम्हें बांहों में भरे लेती हूँ‘‘ इतना कह कर एक पूरी उष्णता के
कामनाओं के नशेमन हुस्न तबस्सुम निहाँ 4 वह अभी तक बेड के पास खड़ा मोहिनी के पूरे आकार को हिंस्रता से घूर रहा था। उसकी नाईटी पर पड़ी सिलवटों के अर्थ को जैसे वह बड़े अशलील ढंग से सोचने ...और पढ़ेथा। स्त्री के चेहरे पर जो एक खुमारी वैसे पलों के बीत जाने के बाद चढ़ आती है, शायद वह उसे एक सुलगती चिंनगारियों सी महसूस करता जा रहा था। मोहिनी शायद उसकी आँखों में उस प्रतिक्रिया को गहराई से महसूस करना चाह रही थी। जिसके विस्फोट के लिए वह अपने आप को पूरी तरह तैयार कर ले। एक भयावह
कामनाओं के नशेमन हुस्न तबस्सुम निहाँ 5 अमल इस बार मोहिनी की ओर देख कर हँस कर बोले- ‘‘तुम्हारे पास आना जैसे मेरी एक मजबूरी थी, उसी तरह जाना भी मेरी एक आंतरिक मजबूरी है। अब वापस लौट जाने ...और पढ़ेमुझे।...रात तुम्हारे साथ बिताए पल जैसे मेरी एक पूरी यात्रा थी। मैं बहुत थक हार कर तुम्हारे पास आया था। तुमने मेरी रीती सी पुरूष लालसाओं में जो रंग भर दिया उसके लिए मैं तुम्हारा ऋणी रहूँगा। ‘‘ ‘‘कैसा ऋण?‘‘ उसने कुछ गंभीर स्वर में पूछा। फिर उसने सहसा अपने में वही रंग लाते हुए मुस्कुरा कर कहा- ‘‘स्त्री और